क्या रानी पद्मिनी का जौहर एक कल्पित कथा है या ऐतिहासिक सत्य?
कवि मालिक मोहम्मद जयसी की कविताओ में रानी पद्मिनी की झलकियाँ सहज ही मिल जायेगी। सिंघल द्वीप के राजा गंधर्वसेन् और रानी चम्पावती की पुत्री पद्मिनी बचपन से ही बहुत सुन्दर थी। बचपन में उनका समय हीरामणि नाम के एक बोलने वाले तोते के साथ बीतता था।
जैसे-जैसे पद्मिनी बड़ी होने लगी, वैसे-वैसे उनकी खूबसूरती भी बढ़ती गई। सिंघल की राजकुमारी का यह तोता एक दिन उड़ते-उड़ते चितौर के राजा रतन सेन के महल पहुँच गया। जब नागमणि ने अपने मुंह से पद्मिनी की सुंदरता की इतनी तारीफ की, तब ही राजा रतन सेन ने सिंघल प्रदेश रवाना होने की ठान ली। वैसे भी उनकी बड़ी रानी साहिबा की कई वर्षों से इच्छा थी सिंघल द्वीप के मोतियों से हार बनवाने की।
संयोगवश उसी दौरान राजकुमारी पद्मिनी के पिता ने उनका स्वयंवर आयोजित करने का ऐलान कर दिया। रतन सेन ठीक समय सिंघल पधार भी गए और स्वयंवर जीत पद्मिनी को चित्तोड़ की रानी बनाने में सफल भी हो गए।
रानी पद्मिनी चित्तोड़ आ गई और अपने महल में सुख से रहने लगी। राजा रतन सिंह के दरबार में अनेक फनकार मौजूद थे, जिनमे से एक था राघव चेतन। जो संगीतकार होने के साथ-साथ जादूगर भी था और वो अपनी प्रतिभा का गलत उपयोग करता था। राजा रतन सेन इस बात से अनजान थे। लेकिन जब उन्हें इस बात का पता चला तो फ़ौरन उन्होंने राघव चेतन को अपने दरबार से निष्काषित कर उसका मुँह काला करवाकर उसे राज्य में गधे पर घुमवाया।
इस घटना के बाद राघव चेतन राजा रतन सेन का दुश्मन बन गया। दिल्ली जाकर उसने अलाहुद्दीन ख़िलजी को चित्तोड़ पर आक्रमण करने के लिए उकसाना शुरू कर दिया और रानी पद्मिनी की सुंदरता के गुणगान करने लगा। जिससे ख़िलजी के मन में भी वासना जाग उठी। उसने चित्तोड़ में प्रवेश किया और धोखे से रानी को देखना चाहा। वह अपने इस षड़यंत्र में कामयाब हो गया और फिर उसने छल के साथ राजा को बंधी बनाया । लेकिन वीर सैनिको के साहस से राजा मुक्त हो गए।
लेकिन खिलजी आसानी से हार मानने वालों में से नहीं था। उसने दोबारा चित्तोड़ पर आक्रमण किया और लड़ते-लड़ते राजा रतन सेन वीरगति को प्राप्त हुए। यह ख़बर जैसे ही रानी पद्मिनी के कानों तक पहुंची, तो उन्होंने जौहर करने का निर्णय लिया। केवल उन्होनें ही नहीं, राजमहल की सैकड़ों रानियों, राजकुमारियों, दासियों ने यह सामूहिक निर्णय लिया। आक्रांताओं के हाथों होने वाले यौन शोषण से स्वयं को सुरक्षित करने के लिए। उनका जौहर उनकी अस्मियता को बचाने के लिए था।
कई इतिहासकार कहते हैं कि यह कहानी मन गढ़ंत है और राजपुताना शौर्य को उत्तेजित करने के लिए लिखी गई है। अब सत्य क्या है, ये तो इतिहास के पन्नों में कहीं कैद है। लेकिन रानी पद्मावती के जौहर पर अविश्वाश करने वाले यह भूल जाते हैं कि मलिक मोहम्मद जयसी न तो राजस्थान के थे, न ही राजपुत। वे तो अवध में रहने वाले एक सूफी कवि थे!
अंग्रेज़ लेखक जेम्स टोड का नजरिया
19वीं शताब्दी में जेम्स टोड ने राजस्थान से जुड़ी अनेक कथाओं का एक वर्षक्रमिक इतिहास लिखा। इस में टोड ने रानी पद्मावती का भी जिक्र किया है। अंग्रेज़ लेखक जयसी की कविताओं से अनभिज्ञ थे। उन्होनें अनेक जैन मुनियों और हिन्दू स्रोतों का सहारा लिया। पर दिलचस्प बात यह है कि उनकी कहानी भी जयसी की कहानी से अत्यधिक मेल खाती है।
जेम्स टोड के अनुसार भी आखिर में जब खिलजी के हाथों पद्मिनी के पति राजा रतन सेन की मौत हो गयी, तब रानी ने जौहर करने का निर्णय लिया।
राजस्थान की लोक कथाएँ
राजस्थान में सदियों से मौखिक रूप से प्रचलित लोक कथाओं में भी कई जगह रानी पद्मिनी के जौहर का जिक्र है।
राजस्थान से कोसों दूर बंगाल के लेखक भी जौहर की बात का समर्थन करते हैं।
सन 1884 में यग्नेश्वर बंधोपाध्याय ने ‘मेवार’ नामक एक ऐतिहासिक पुस्तक लिखी। इसमें भी पद्मिनी और अन्य रानियों और दासियों ने कैसे आग में कूद स्वयं को खिलजी और अन्य आक्रांताओं से बचाया, इस बात का जिक्र है।
चित्रकार और लेखक अबानींद्रनाथ ठाकुर (गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर के भांजे) ने 1909 में अपनी रचना ‘राजकहानी’ में रानी पद्मिनी की पूरी कहानी लिखी। उन्होनें भी जौहर की बात को अपनी पुस्तक में दोहराया।
रानी पद्मिनी का जौहर: क्या सत्य कथा है?
हमने आपके समक्ष एक से एक प्रतिष्ठित स्रोतों के जरिये चितौर की रानी पद्मिनी के जौहर की बात की पुष्टि की। कुछ आधुनिक इतिहासकारों को छोड़ दिया जाये, तो यह कथा पूर्ण रूप से सत्य लगती है। वैसे भी यह इतिहासकार किसी भी तरह का कोई सबूत नहीं दे रहे, बिन बात का संदेह जता रहे हैं।
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