रजत और शिवानी एक दूसरे को पिछले छह सालों से जानते हैं। दोनों के परिवार वालों ने भी उनके इस रिश्ते को खुशी-खुशी अपना लिया। मगर शादी के डेढ़ साल बाद ही दोनों का तलाक हो गया। वर्तमान में, ऐसे न जाने कितनी ही शादियां, फिर चाहे वह लव मैरिज हो या फिर अरेंज मैरिज, टूट रही हैं। ऐसे में प्री-मैरिटल काउंसलिंग बहुत जरूरी विषय बन जाता है।
शादी किसी भी व्यक्ति के जीवन का एक बहुत बड़ा पड़ाव होता है। यह एक ऐसा कदम है जो आपके जीवन को पूरी तरह से बदल देता है। असल में दाम्पत्य जीवन में शादी के बाद हनीमून पीरियड तक अक्सर किसी तरह की परेशानी नहीं होती है। मगर हनीमून पीरियड खत्म होते ही परेशानियां, टकराव और समझ में फासले की कहानी शुरू हो जाती है। ऐसे में यदि आप प्री-मैरिटल काउंसलिंग के साथ अपने रिश्ते की शुरूआत करते हैं तो आपकी बहुत सी समस्याएं समय रहते ही निपट जाती हैं।
क्या है यह प्री-मैरिटल काउंसलिंग?
सबसे पहले इस बात को समझें कि काउंसलिंग केवल तभी नहीं ली जाती जब आप किसी तरह के तनाव या समस्या का सामना कर रहे होते हैं। काउंसलिंग तब भी ली जाती है जब आप भविष्य की समस्या के लिए अपने आपको पूरी तरह से तैयार कर रहें होते हैं।
प्री-मैरिटल काउंसलिंग भी समस्या से पहले उठाया गया एक सावधानी भरा कदम है जो कि आपकी शादी की लंबी उम्र को मजबूती देता है। प्री-मैरिटल काउंसलिंग आपको अपने जीवनसाथी को बेहतर ढंग से समझने का अवसर देता है। यह आपको प्यार और उमंग भरे काल्पनिक शादी की सोच से जीवन के वास्तविक पक्ष से परिचय कराने में मदद करता है। हम सभी जानते हैं कि वास्तविकता हमारी सोच और कल्पना से बहुत अलग होती है। प्री-मैरिटल काउंसलिंग इसी पक्ष को समझने में मदद करती है।
किन विषयों पर चर्चा होगी ?
आर्थिक स्थिति, पारिवारिक मूल्यों, दाम्पत्य जीवन में भूमिका, पारिवारिक संबंध, भविष्य में होने वाले बच्चों के विषय में चर्चा, परिवार में जिम्मेदारियों का बंटवारा, किसी भी निर्णय लेते समय दोनों की भूमिका आदि। यह कुछ ऐसे विषय हैं जिन पर शादी से पहले ही अगर वास्तविक चित्र की परिकल्पना कर ली जाएं तो आगे चलकर बहस होने की आशंकाएं ही खत्म हो जाएं। संक्षेप में, यह वास्तविकता से रूबरू कराने और किसी विषय के बारें में आप और आपके जीवनसाथी की सोच के धुंधले या अनदेखे चित्र को साफ व स्पष्ट करने में मदद करता है।
क्यों है जरूरी?
याद रहें कि हम सभी एक दूसरे से एकदम अलग है। हमारी पारिवारिक पृष्ठभूमि, हमारी परवरिश, शिक्षा, सोचने की क्षमता और विचारधारा आदि सभी कुछ एक-दूसरे से अलग हैं। ऐसे में यदि आप किसी नए परिवेश में जीवन बिताने का सोच रहें है तो यह आपके लिए बहुत जरूरी है कि आप उसकी सोच और पृष्ठभूमि व उस परिवार की विचारधारा को समझ लें। कई बार इन्हीं कमियों के कारण अक्सर दाम्पत्य जीवन में टकराव हो जाता है और स्थिति इतनी खराब हो जाती है कि शादी टूटने तक की नौबत आ जाती है।
प्री-मैरिटल काउंसलिंग के लाभ:
संचार कौशल (कम्युनिकेशन स्किल)
अक्सर हर व्यक्ति का किसी भी बात को दूसरे के सामने रखने का एक तरीका होता है। प्री-मैरिटल काउंसलिंग आपके संवाद को सुधारता है और उसकी क्षमता को मजबूत बनाता है। जिसकी मदद से आप अपनी बात को दूसरे के सामने ज्यादा बेहतर और सरल शब्दों में रखने में सफल होते है।
विचारधारा समझने का अवसर
यह आपको एकदूसरे की विचारधारा को बेहतर ढंग से समझने का अवसर देता है। यह आपको इस बात का अवसर भी देता है कि कैसे आप दोनों किसी समस्या या परिस्थिति से बिना घबराएं पूरी शांति के साथ निपटते है। साथ ही यह आपको यह भी समझने का अवसर देता है कि आप विषय से निपटने की कितनी समझ रखते है।
भविष्य की योजना
यह आपको अपने वर्तमान के साथ भविष्य की योजना बनाने में भी मदद करता है। यह आपको एक ऐसा अवसर देता है कि शादी से पहले ही आप दोनों अपने भविष्य की योजनाओं और लक्ष्यों का निर्माण कर पाएं।
नए पहलू समझने का अवसर
पति-पत्नी अक्सर एकदूसरे को जानने लगते है। मगर समय के साथ हमें इस बात का अहसास होता है कि हम किसी नए व्यक्ति के साथ रह रहें है। प्री-मैरिटल काउंसलिंग आपको एक-दूसरे के बहुत से नए पहलूओं को जानने में मदद करता है। जोकि किसी भी रिश्ते को मजबूत बनाने में आगे चलकर बहुत लाभकारी साबित होता है।
घबराहट दूर करता
यह शादी से जुड़ी घबराहट को दूर करने में सहायक साबित होता है। अक्सर हम यह मानकर चलते है कि शादी की घबराहट केवल लड़कियों को होती है जबकि वास्तविकता यह है कि यह घबराह पुरूषों में भी उतनी ही होती है जितनी महिलाओं में। ऐसे में यदि आप काउंसलिंग में आपस में बात करते है तो आपकी इस घबराहट और हिचक के स्तर में कमी आती है।
कमजोरियां
हम सभी किसी न किसी पक्ष में कमजोर होते है। यह काउंसलिंग एक तरह का सैल्फ डिस्क्लोज़र है। जिसमें आपको एक-दूसरे की कमजोरियां और उसके अनदेखे पहलू को समझने का वह सुनहरा अवसर मिलता है जिसे अनदेखा करना गलत है।
भावनात्मक और आध्यात्मिक पहलू
हम सभी एक दूसरे से अलग होते हैं और यही कारण है कि कोई ज्यादा भावनात्मक होता है तो कोई प्रैक्टिकल। कोई ज्यादा आध्यात्मिक होता है तो कोई कम। यह प्री-मैरिटल काउंसलिंग आपको यह अवसर देता है कि आप अपने जीवनसाथी के भावनात्मक और आध्यात्मिक पहलू को समझ सकें।
हम अक्सर इस पहलू को सबसे कम महत्व देते हैं। जबकि यह दोनों ही पहलू दाम्पत्य जीवन में बहुत बड़ी भूमिका निभाते है। भारतीय परिवारों में कई बार इन विषयों को लेकर भी दाम्पत्य और पारिवारिक जीवन में कलह होती है।
कुल मिलाकर प्री-मैरिटल काउंसलिंग आपको एक-दूसरे की रोजमर्रा की आदतों से लेकर आपकी विचारधारा को करीब से जानने का अवसर देता है। जिसकी मदद से शादी के बाद आप इस बात की शिकायत नहीं करेंगे कि आपके जीवनसाथी शादी के बाद एकदम बदल गए है। याद रहें जिस तरह ‘सावधानी में ही बचाव ‘ होता है, ठीक उसी तरह प्री-मैरिटल काउंसलिंग आपकी शादी को बचाने का एक सावधानी भरा कदम है। इसलिए अपने दाम्पत्य जीवन को शुरू करने से पहले यह सावधानी भरा कदम अवश्य उठाएं और अपने जीवन का भरपूर आनंद उठाएँ।
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