भोजन में स्वाद का तड़का लगाने वाला लहसुन औषधीय गुणों से भी परिपूर्ण है। हालांकि ब्राह्मण, जैन समेत अन्य कई समुदाय में लहसुन का सेवन वर्जित माना गया है।
लहसुन प्राकृतिक तत्व के साथ- साथ एक औषधि भी है। यह भोजन के स्वाद को बढ़ाने का काम भी करता है। गुणों की खान होने के बावजूद कई समुदाय के लोगों में लहसुन का सेवन करना वजिर्त माना गया है। इसके पीछे कोई न कोई कारण अवश्य ही है।
कुछ लोग इसके पीछे धार्मिक कारण मानते हैं तो वहीं कुछ इसे वैज्ञानिक आधार पर सत्यापित करते हैं। आइये जानते हैं उन कारणों के बारे में जो ब्राम्हण, जैन समेत अन्य समुदाय के लोगों को लहसुन का सेवन करने से रोकते हैं।
आयुर्वेद में भोजन को तीन प्रकार का बताया गया है : सात्विक भोजन, राजसिक भोजन और तामसिक भोजन। सात्विक भोजन से संयम और मन की शांति एवं ध्यान में सहायता मिलती है। राजसिक भोजन से लगन और जोश में वृद्धि होती है। वहीं तामसिक भोजन व्यक्ति को वासनाओं की ओर ले जाता है और व्यसनों की ओर आकर्षित करता है।
लहसुन को तामसिक प्रवृत्ति का आहार माना गया है इसलिए अनेक लोग इसके भोजन से दूरी बनाए रखते हैं।
जैन धर्म के अधिकतर लोग यह भी मानते हैं कि लहसुन जमीन के नीचे उगाया जाता है, जिससे इसका साफ-सफाई करना आवश्यक होता है। इस दौरन कई सूक्ष्म जीवों की न चाहते हुए भी हत्या हो जाती है। हम जानते हैं कि जैन धर्म हिंसा का पक्षधर नहीं है इसलिए इस धर्म में लहसुन को न खाने को ही श्रेष्ठ माना जाता है।
वहीं दूसरे कई समुदाय के लोग लहसुन को भोजन में शामिल करना ठीक नहीं मानते हैं। यह मान्यता है कि इसका अधिक सेवन क्रोध, चिड़चिड़ापन आदि बढ़ाता है और व्यक्ति के स्वभाव में परिवर्तन लाता है।
वहीं सनातन धर्म के ग्रंथों में भी प्याज और लहसुन जैसे पदार्थों को सबसे निचली श्रेणी का भोज्य पदार्थ माना गया है। कहा गया है कि इससे व्यक्तिगत दुराचार की भावना बढ़ती है। यह भी एक वजह है कि अनेक लोग लहसुन का सेवन नहीं करते हैं।
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