वर्ष 2011 से पूर्व 11 सितंबर भारत के लिए एक महत्वपूर्ण तिथि के रूप में याद की जाती थी। 11 सितंबर 1893 में प्रसिद्ध समाज सुधारक स्वामी विवेकानंद ने शिकागो की एक धर्म संसद में एक भाषण दिया था। कल, 12 जनवरी 2019 को, स्वामीजी की 156वीं वर्षगांठ मनाई जाएगी। पर सौ वर्ष से भी पहले दिया गया यह भाषण दुनिया आज भी याद करती है।
यह भाषण उस समय भी क्रांतिकारी माना गया और 175 वर्ष से अधिक समय बीतने के बाद आज भी पूरी तरह से प्रासंगिक माना जाता है। इस भाषण में कही गई बातें और उनकी प्रासंगिकता क्या है, आइये देखते हैं:
1. नारी-पुरुष का संभव:
विवेकानंद ने भाषण की शुरुआत में सम्बोधन दिया था, “मेरे अमरीकी भाइयों और बहनों”। जो इस बात का सूचक है कि वो उस समय भी नारी को पुरुष के बराबर ही मानते थे। उस समय नारी मुक्ति जैसे शब्द किसी ने सोचे भी नहीं थे।
लेकिन विवेकानंद ने न केवल सोचे, बल्कि डंके की चोट पर कहे भी। इस कथन से यह सिद्ध होता है कि नारी-मुक्ति या नारी स्वतन्त्रता का भाव केवल नारी समाज में ही नहीं, पुरुष वर्ग में भी होता है, लेकिन उसे बाहर लाने का साहस वो नहीं कर पाते हैं। आज के पुरुष को यह साहस विवेकानंद से लेना होगा।
2. सर्व-धर्म समभाव:
स्वामी विवेकाननद ने अपने भाषण में सर्व-धर्म सम्मान को अनिवार्य बताते हुए इसे देश की अखंडता और शांतिप्रियता के लिए अनिवार्य तत्व बताया था। वर्तमान समय में, जब हर ओर धार्मिक कट्टरता के कारण विश्व के अनेक देश युद्ध समान वातावरण झेल रहे हैं, इस सच्चाई को पहचानना अत्यंत अवशयक है।
विवेकानंद का यह कथन “हम सिर्फ़ सार्वभौमिक सहिष्णुता पर ही विश्वास नहीं करते बल्कि, हम सभी धर्मों को सच के रूप में स्वीकार करते हैं”, आज भी भारतभूमि पर उतना ही सत्य है जितना तब था। आज के माहौल में जब धार्मिक असहिशुंता को विवाद का मुद्दा बनाया जा रहा है तब स्वामी विवेकानंद का यह कथन सूर्य-प्रकाश की भांति मार्ग दिखाने के लिए काफी है।
3. धर्म और विज्ञान एक ही सिक्के के दो पहलू:
स्वामी विवेकानंद ने अपनी भाषण में वेदों की चर्चा करके उसमें बताए गए वैज्ञानिक तथ्यों को भी उजागर करने का प्रयास किया था। इस प्रकार उन्होनें वैदिक ज्ञान को आधुनिक विज्ञान के समकक्ष ला खड़ा किया था।
स्वामी विवेकानंद ने विज्ञान के अध्ययन को इसलिए अनिवार्य माना जिससे धार्मिक तथ्यों को तर्कसंगत रूप में सिद्ध किया जा सके न की उनका विरोध किया जाये। इस प्रकार आज का समाज जो धर्म को अंधविश्वास से जोड़ने का प्रयास कर रहा है उन्हें स्वामी जी के उस कथन को याद करना चाहिए जिसमें उन्होनें स्पष्ट कहा है कि वेदों में यह सिद्ध किया गया है कि ब्रहमंडीय ऊर्जा का स्त्रोत हमेशा एक समान होता है।
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4. धार्मिक आतंकवाद:
स्वामी विवेकानन्द ने अपने भाषण में कहा था कि “दुनिया में धर्म के नाम पर सबसे अधिक रक्तपात हुआ है” । लगभग 180 वर्ष बाद आज भी यह कथन पूरी तरह से सत्य सिद्ध हो रहा है। विश्व में दक्षिण एशिया के साथ विश्व के अनेक देश इस विषदंश को झेलकर तबाह होने की कगार पर पहुँच गए हैं।
इसका उपाय उन्होनें गीता के एक श्लोक के माध्यम से दिया, जिसका भावार्थ है: ”जिस तरह अलग-अलग जगहों से निकली नदियां, अलग-अलग रास्तों से होकर आखिरकार समुद्र में मिल जाती हैं, ठीक उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा से अलग-अलग रास्ते चुनता है. ये रास्ते देखने में भले ही अलग-अलग लगते हैं, लेकिन ये सब ईश्वर तक ही जाते हैं।“ इस श्लोक के माध्यम से स्वामी जी ने धार्मिक कट्टरता और इसके परिणामस्वरूप जन्में आतंकवाद को हल करने का उपाय दिया था।
5. भारत की धार्मिकष्णुता:
अपने भाषण में स्वामी विवेकानंद ने भारत की धार्मिकष्णुता का परिचय देते हुए बताया कि भारत विश्व के हर कोने से विभिन्न धर्मों को मानने वाले अतिथियों का समान भाव से स्वागत करता है। बहुसंस्कृति होने के कारण भारत में विभिन्न धर्मों को मानने वाले स्वतंत्र रूप से और निर्भय जीवन व्यतीत करते हैं। इस कथन को वर्तमान समय में भी पूरी तरह से सत्य माना जा सकता है।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि स्वामी विवेकानंद ने भारत कि एक धर्म निरपेक्ष और मजबूत राष्ट्र के रूप में सुंदर छवि प्रस्तुत की थी जिसका खंडन आज भी नहीं किया जा सकता है।
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