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क्या आपका बच्चा आपका कहना नहीं मानता?

अभी कल ही मैं अपनी बहन के घर में थी और वह अपने टीवी के सामने कार्टून फिल्म देखते हुए सात वर्ष के बेटे को बार बार कह रही थी, “बस अब उठ जाओ, बहुत देर हो गई तुम्हें टीवी देखते हुए। अब अपना होमवर्क कर लो।“ मैं देख रही थी, उसपर मां के कहने का कोई असर नहीं हो रहा था और वह यह कहते हुए टीवी देखने में मगन था “अभी थोड़ी देर और मम्मा। होम वर्क बाद में करूंगा।“

क्या आप भी अपने बच्चे के आपका कहना न मानने की समस्या से जूझ रही हैं? फ़िक्र न करें, बच्चों की माता पिता की बात फ़ौरन न सुनने की परेशानी का सामना लगभग हर माता पिता किसी न किसी वक़्त करते हैं। तो आज हम आपके लिए इस समस्या के समाधान के लिए कुछ ऐसे सटीक उपाय ले कर आए हैं जिन्हें अपना कर आपको अवश्य कुछ राहत मिलेगी।

अपने पति के साथ मिलकर पारिवारिक नियम बनाएं:

बच्चों के मध्य अनुशासन बनाए रखने के दृष्टिकोण से घर में कुछ नियम बनाने आवश्यक हैं। उदाहरण के लिए जब आपके पति शाम को कभी कभी घर पर होते हैं, वह बच्चे के नियत वक़्त पर पढ़ने के विषय में सख्ती नहीं बरतते और इस कारण आपके बच्चे रोज के नियत समय पर पढ़ने नहीं बैठते। वह उनसे कह देते हैं कि “कोई बात नहीं, थोड़ी देर बाद पढ़ लेना।”

इस स्थिति में अपने पति से कहें कि शाम 5:00 बजे का समय उनका अध्ययन का समय है जो किसी भी हालत में नहीं बदला जाना चाहिए। उनसे कहें कि नियम स्पष्ट और हमेशा लागू होने चाहिए। अगर हम दोनों मिलकर बच्चों से यह नियम नहीं मनवाएंगे, बच्चे हमारे नियम कभी नहीं मानेंगे। बढ़ते बच्चों के लिए घर के नियम हमेशा एक से होने चाहिए। इससे बच्चे कंफ्यूज नहीं होते कि किस अभिभावक की बात मानें, किसकी नहीं।

निश्चित करें कि आपके बच्चे का ध्यान आप पर है:

जब बच्चे का ध्यान आप पर नहीं है तब उसे कुछ करने के लिए कहना व्यर्थ जाता है। जब भी आप चाहती हैं कि आपका बच्चा आपकी बात सुनकर कुछ करे, उस स्थिति में देखें कि उसका ध्यान पूरी तरह से आप पर है या नहीं। उदाहरण के लिए यदि आप का 7 वर्ष का बच्चा टीवी पर कार्टून फिल्म देखने में मगन है, तो पहले उसका ध्यान पूरी तरह से अपनी ओर खींचें । टीवी बंद करने के बाद उस से नजरें मिलाते हुए अपने निर्देश बच्चे को दें।

अपने निर्देश कतई न दोहराएं, हर हालत में उन्हें दोहराने से बचें:

यदि किसी कार्य का निर्देश देते वक्त आपके बच्चे का ध्यान पूरी तरह से आपके ऊपर है और फिर भी वह फौरन आपका कहा नहीं करता तो उसका यह आचरण आप की अवज्ञा कहलाएगा। आपके बच्चे को पता होना चाहिए कि यदि वह आपका कहा पूरा करता है या आप की अवज्ञा करता है तो उसे उसके अच्छे या बुरे परिणाम भुगतने होंगे।

यदि हम बच्चे के सामने अपने निर्देश बार-बार दोहराएंगे तो वास्तव में आप अपने बच्चे को अप्रत्यक्ष रूप से अपना कहा ना सुनने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं।

आप अपने बच्चे से कह सकती हैं कि “फ़ौरन अपनी स्टडी टेबल पर बिखरी किताबें समेट दो, नहीं तो तुम्हें तुम्हारी मनपसंद कार्टून फिल्म देखने को नहीं मिलेगी।” अन्य विकल्प है आप उससे कहें कि “वह अगले दिन के लिए फौरन अपना बैग जमा ले तो उसे अपनी पसंदीदा किताब पढ़ने के लिए आधा घंटा अतिरिक्त मिलेगा।”

आपका कहा मानने या ना मानने के परिणाम निश्चित करें:

आप अपने बच्चे से कहती हैं कि वह फौरन खेलना बंद कर नहाने चला जाए । यदि वह नहाने फ़ौरन नहीं जाता तो आप उसका नया खिलौना उससे ले लेंगी। तो उसके फ़ौरन उठकर नहाने न जाने पर अपने कहे अनुसार वह खिलौना उससे अवश्य ले लें। लापरवाही में यह भूल न जाएं। आपको विशेष रुप से ध्यान रखना चाहिए कि आप अपनी कही बात को हमेशा पूरी करें। इससे बच्चा आपका कहना ना मानने के बुरे परिणाम से डरकर आप के निर्देश अवश्य मानेगा।

अपने बच्चे को बार बार निम्न निर्देश दें:

अपने बच्चे को बार बार यह कहें कि वह हमेशा आपके निर्देश पर ध्यान देते हुए उसे फौरन पूरा करें। उसके सामने यह बात कई बार दोहराएँ । इससे बच्चे को आपकी कही बातों को गंभीरता से लेने का भान होगा और कुछ ही दिनों में आप देखेंगे कि वह आपका कहा फ़ौरन पूरा कर रहा है।

बच्चे को अपने निर्देश स्पष्टता से दें:

अपने बच्चे को स्पष्ट निर्देश दें। उसे हमेशा स्पष्टता से जता दें कि यदि उसने आपका कहा नहीं माना तो उसे उसका बुरा परिणाम भुगतना होगा। उदाहरण के लिए आपके यहां कोई मेहमान आने वाला है और आपका बच्चा ड्राइंग रूम में अपने खिलौने बिखेरे बैठा है तो उसे साफ साफ कह दें, “तुमने अभी फौरन यह खिलौने नहीं समेटे तो आज तुम्हें अपना पसंदीदा मिल्क शेक नहीं मिलेगा।

आपकी गैर ज़रूरी बातें मानने के लिए ज़ोर न दें:

अध्ययन बताते हैं कि आपका बच्चा आपकी हर बात तभी मानेगा जब उन्हें यह लगेगा कि आपकी कही बात महत्वपूर्ण है। उसे गैर जरूरी बातें मानने के लिए ना कहें। यदि आपका बच्चा आपकी गैर महत्वपूर्ण बातें नहीं भी मानता तो उन्हें नजरअंदाज करें । याद रखें आपका बच्चा रोबोट नहीं है । उसकी भावनाओं का सम्मान करें।

अपने बच्चे की बात ध्यान से सुनें:

कभी-कभी बच्चा आपकी बात पर इसलिए ध्यान नहीं देता क्योंकि उसे लगता है कि उस पर कोई ध्यान नहीं देता। हो सकता है कि आप अपनी व्यस्तता के चलते उसकी ऐसी बातों को नजरअंदाज कर देती हों जो उसके लिए बेहद महत्वपूर्ण है। अतः जब भी बच्चा आपसे अपने मन की बात साझा करना चाहे उसे ध्यान से सुनें।

निर्णायक बनें:

मान लीजिए आपका बच्चा स्कूल द्वारा आयोजित एक एक्स्कर्शन पर जाना चाहता है और आप किसी महत्वपूर्ण वजह से उसे नहीं भेजना चाहतीं। उसे नहीं भेजने के तर्क सम्मत कारण उसे बताते हुए ना कर दें। बार-बार अपनी बात ना दोहराएं। आपके बच्चे को यह अहसास होना चाहिए कि यदि आपने एक बार किसी बात के लिए हां या ना कह दिया तो वह हमेशा हां या ना ही रहेगी ।

बच्चे के अच्छे व्यवहार की भरसक प्रशंसा करें:

जब भी आपका बच्चा आपकी बात माने या कोई प्रशंसनीय कार्य करें उसके व्यवहार की प्रशंसा करें। आपका कहना मानने पर आप उसे टॉफी, चॉकलेट या खिलौने आदि भी पुरस्कार के तौर पर दिलवा सकती हैं। उससे कहें कि आपको उस पर गर्व है।प्रशंसा से बच्चे का आत्मसम्मान जागृत होता है और वह अच्छा व्यवहार करने के लिए प्रोत्साहित महसूस करता है।

बच्चा जब क्रोधावेश में हो तो क्या करें?

यदि कभी आपका बच्चा क्रोधावेश में रो रहा हो, चीख चिल्ला रहा हो, पांव पटक रहा हो तो उसे चुप रहने के लिए चिल्लाने से कुछ नहीं होगा। ऐसी स्थिति में पहले उसे प्यार से अपने से चिपटा कर शांत करने का प्रयास करें। जब वह चुप हो जाए फिर उसकी भावनाओं का ख्याल रखते हुए उसकी पूरी बात तसल्ली से सुनें। उसे किस बात पर गुस्सा आ रहा है उसे ध्यान से सुनें। उससे पूछें कि उसे सामान्य करने के लिए क्या किया जा सकता है। उसकी सहमति से उसकी समस्या का हल ढूंढें।

मान लीजिए आपके बेटे ने अपनी बहन की प्रिय कहानी की किताब पढ़ने के लिए ले ली और वह उसे अपने भाई को देने के लिए तैयार नहीं है जिसकी वजह से आपकी बेटी बेहद क्रुद्ध है और वह चीख चिल्ला रही है। ऐसी स्थिति में उसे मात्र यह कहकर चुप ना करें “रोना बंद करो। इतनी सी बात पर रोना ठीक नहीं।” वरन उसकी आहत भावनाओं को समुचित मान देते हुए उससे कहें कि आधा घंटा भाई किताब पड़ेगा और अगले आधे घंटे किताब उसे पढ़ने के लिए मिलेगी।

चिड़चिड़े, गुस्सैल बच्चों से बात कैसे मनवाएं?

इस विषय में हमने मुंबई के डाक्टर अमित मिश्रा, B.A.M.S., Ph.D.(Yoga) से बातचीत की। उनके अनुसार ऐसे बच्चे जो अपने अत्यधिक चिड़चिड़ेपन एवं क्रोधी स्वभाव के चलते आपका कहना नहीं मानते, ऐसे बच्चों के लिए यौगिक नाड़ी शोधन प्राणायाम बेहद लाभप्रद रहता है । उन्होंने बताया कि प्राणायाम से मन शांत होता है, परिणाम स्वरूप चिड़चिड़ापन एवं क्रोध नियंत्रित होते हैं। बच्चों का मानसिक तनाव दूर होता है।

नाड़ी शोधन प्राणायाम की विधि:

रीढ़ की हड्डी सीधी रखते हुए दोनों आंखें बंद कर लें। बाई हथेली ज्ञान मुद्रा में बाएं घुटने के ऊपर रखें।

अब दायें हाथ की अनामिका (Ring Finger) एवं छोटी अंगुली बाईं नासिका पर रखें। मध्यमा (Middle Finger) और तर्जनी (Index Finger) अंगुली को मोड़ कर रखें। दाएं हाथ का अंगूठा दाईं नासिका पर रखें।

बाईं नासिका से श्वास ग्रहण करें। इसके बाद छोटी अंगुली और अनामिका (Ring Finger) से बाईं नासिका बंद कर लें । दाईं नासिका से अंगूठा हटाकर वहां से दाईं नासिका से श्वास बाहर छोड़ें।
इसके बाद एक बार दाईं नासिका से श्वास ग्रहण करें।

इस प्रक्रिया के अंत में दाईं नासिका को बंद करें। बाईं नासिका खोलें तथा इसके द्वारा श्वास बाहर छोड़ें।

यह पूरी प्रक्रिया 5 बार दोराई जानी चाहिए।

डॉ अमित मिश्रा के अनुसार इसके अतिरिक्त भ्रामरी प्राणायाम के नियमित अभ्यास से भी बच्चों में चिड़चिड़ापन और क्रोध कम होता है।

भ्रामरी प्राणायाम की विधि:

रीढ़ की हड्डी सीधी रखते हुए दोनों आंखों को बंद कर पालथी मारकर बैठ जाएं।

नासिका द्वारा लंबा गहरा श्वास लें।

अपनी जीभ तालू से सटाते हुए नियंत्रित ढंग से श्वास को धीरे-धीरे बाहर छोड़ते हुए भौंरे जैसी आवाज निकालें।

इसे और दो बार दोहरायें।

भ्रामरी प्राणायाम के नियमित अभ्यास से आपके बच्चे के मन को शांति मिलेगी और यह आपके चिड़चिड़े और गुस्सैल बच्चे के चिड़चिड़ापन और क्रोध को घटाएगा ।

Renu Gupta

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