आहार

गर्भवती महिलाओं को क्यों पपीता नहीं खाना चाहिए

हर महिला के जीवन में वो क्षण ज़रूर आता है, जब वह मातृत्व एवं वात्सल्य के द्वार पर खड़ी होती है। ईश्वर द्वारा यह महान वरदान सिर्फ महिलाओं को ही दिया गया है, कि वह एक सजीव जीव की सरंचना कर सके।

इस परम सुख का एहसास किसी भी स्त्री के जीवन को पूरी तरह परिवर्तित कर देता है। उसका जीवन अब केवल उसका नहीं रह जाता है , अब यह जीवन उसके आने वाले शिशु का भी हो जाता है।

ऐसे में उसे अपने आप का मानसिक और शारीरिक रूप से बहुत अधिक ख़्याल रखना पड़ता है, जिससे की आने वाले शिशु को कोई भी तकलीफ न हो। ऐसे में हर महिला को काफी सारी हिदायते दी जाती है,की उसे कब और क्या खाना चाहिए ? क्या नहीं खाना चाहिए , क्या करना चाहिए और क्या नहीं।

गर्भवती महिला को क्या-क्या नहीं खाना चाहिए? 

इनसब चीज़ों में हमने यह भी सुन रखा है, कि गर्भवती महिलाओं को पपीते का सेवन नहीं करना चाहिए ? परन्तु ऐसे वक़्त फल खाना तो बहुत ही लाभदायक मन जाता है, तो फिर पपीते से ही परहेज क्यों ? आइये जानते हैं, इसके पीछे के कारणों को

पपीता विटामिन स , फोलिक एसिड और फाइबर का भंडार होता है। यह सब मिनरल्स एक गर्भवती के लिए ज़रूरी है, लेकिन अगर पपीता पूरी तरह से पका हुआ है, तो ही आपको उसके यह सारे गुण मिल पाएंगे। वैसे भी यही सलाह दी जाती है, कि अगर पपीता पूरी तरह से पका हुआ न हो तो गर्भवती महिलाओं को इसका सेवन नहीं करना चाहिएऔर अगर पपीता पका हुआ भी है, तो इसका बहुत ही अल्प मात्रा में सेवन किया जाना चाहिए वह भी अपने डॉक्टर से परामर्श लेने के पश्चात् ही।

कई महिलायें  पके हुए पपीते को दूध और शहद के साथ मिलाकर उसका शेक तैयार कर उसे ग्रहण करती है। यह एक अच्छा तरीक़ा है, एक पौष्टिक पेय बनाने का। लेकिन यह ध्यान में जरूर रखा जाये, कि पपीते की मात्रा बहुत कम हो। कच्चे पपीते या उसके बीज या उसके छिलकों की बात करे, तो किसी भी गर्भवती महिला को वह नहीं खाना चाहिए।

कच्चे पपीते में लेटेक्स पाया जाता है। जो की शरीर में गर्मी पैदा करता है और गर्भाशय में भी इसकी वजह से संकुचन प्रारम्भ हो जाता है। जिसकी वजह से शिशु की गर्भाशय में ही मौत हो सकती है। या फिर गर्भपात भी हो सकता है।

इतना ही नहीं यह भी देखा गया है, कि कच्चे पपीते या पपीते के अधिक सेवन से मृत शिशु का जन्म होता है। पपीते की तासीर गर्म ही होती है जो शरीर में अत्यधिक गर्मी बढ़ता है। यह तापमान शिशु के लिए सेहन करना मुश्किल है, इसके वजह से वह अंदर ही दम तोड़ देता है।

 

Jasvinder Kaur Reen

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