आशिक़ो का त्योहार बहुत ही नजदीक है – जी हाँ, हम बात कर रहे है वैलेंटाइन्स डे की, जिस दिन सभी अपने प्यार का इज़हार करते हैं। अगर आप इस दिन अपने प्यार का इज़हार कुछ अलग ढंग से करने चाहते हैं तो अंदाज़-ए-शायरी से बेहतर विकल्प और कुछ नहीं हो सकता है। और इश्क़ के इज़हार की बात हो और ग़ालिब साहब को याद न किया जाये ऐसा मुमकिन नहीं।
तो लीजिये फिर पेश है इश्क-ए-ग़ालिब और साथ में थोड़ा डोज़ दर्द-ए-ग़ालिब का।
- “हम तो फना हो गए उसकी आंखे देखकर गालिब,
न जाने वो आइना कैसे देखते होंगे”
- “दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई,
दोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई”
- “मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का,
उसी को देखकर जीते हैं जिस काफिर पर दम निकले”
- “जिस शाम में मेरे लैब पर तेरा नाम न आये,
खुदा करे ऐसी शाम न आये।
“ए जाने वफ़ा यह कभी मुमकिन ही नहीं ,अफसाना लिखुँ और तेरा नाम न आये। ”
- “इस सादगी पर कौन न मर जाये ए खुदा ,
लड़ते है और हाथ में तलवार भी नहीं। ”
- ” इश्क़ पर जोर नहीं है यह वह आतिश ,
‘ ग़ालिब” , जो लगाए बुझाये न बने ”
- दिल-ए-नादां, तुझे हुआ क्या है
आखिर इस दर्द की दवा क्या है
- मेहरबां होके बुलाओ मुझे, चाहो जिस वक्त
मैं गया वक्त नहीं हूं, कि फिर आ भी न सकूं
➡ वैलेंटाइन्स डे पर दीजिये अपने प्यार को एक प्यार भरा तोहफा
- आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक
- उनके देखने से आ जाती है चेहरे पर रौनक
वो समझते है की बीमार का हाल अच्छा है
- जान तुम पर निसार करता हु
में नहीं जनता की दुआ क्या है
- उधर वो बद गुमानी है इधर ये ना-तवानी है ,
न पूछा जाये उससे न बोला जाये मुझसे
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