हमारे देश में कृषि से जुड़ी हर बात को खास महत्व दिया जाता है। चाहे वह एक निर्जीव वस्तु हो या फिर कोई पशु। जैसे नाग देवता के लिए हम नाग पंचमी मानते हैं, ठीक वैसे ही बैलों के लिए पोला मनाया जाता है। इस पर्व को कई लोग पोला-पीठोरा के नाम से भी जानते हैं। भाद्रपद माह की अमावस्या को पोला मनाया जाता है। प्राचीन समय से ही कृषि के लिए भूमि को तैयार करने में बैलों का सहयोग लिया जाता है। और आज भी कई गाँव में बैलों की सहायता से ही खेती के बहुत सारे कार्य पूर्ण किए जाते है।
हमारे अन्नदाता किसान के लिए बैल का महत्व बहुत अधिक होता है, इसलिए वर्ष का यह एक दिन वह उन्हें समर्पित करते हैं। मध्य-प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, और उससे जुड़े कई इलाकों में पोला का पर्व बहुत ही धूम से मनाया जाता है। जो शहर ग्रामीण इलाकों से जुड़े होते हैं वहाँ इस दिन अवकाश होता है।
इस दिन बैलों के खेती का कोई भी कार्य नहीं कराया जाता है। उनके सींगों को रंगकर उनके लिए अनेक प्रकार के सज्जा के सामान लाकर उन्हें सजाया जाता है। उनकी पूजा कर उनके लिए ढेर सारे पकवान बनाए जाते हैं। जिस प्रकार किसी मेहमान को एक दिन पहले न्योता देकर उन्हें भोजन पर आमंत्रित किया जाता है उसी प्रकार ही बैलों को भी एक दिन पूर्व भोजन के लिए आमंत्रित करते हैं। वैसे तो इस दिन खीर पूरी और अनेक प्रकार के व्यंजन बनते हैं लेकिन कई इलाकों में इस दिन पुराण पोली बनाने की भी प्रथा है।
पहले के समय में बैलों की देखभाल करने के लिए और खेती के दूसरे काम जमींदार अपने यहाँ कार्य करने के लिए जो नौकर रखते थे, उन्हें वह उनके पूरे साल के कार्य का भुगतान एक ही बार में करते थे। इसलिए उन्हें “सालदार” कहा जाता था। पोला पर्व के दिन बैलों के साथ ही सालदारों को भोजन पर आमंत्रित कर उन्हें उपहार स्वरूप कपड़े और कुछ पैसे भी दिये जाते थे।
पोला के दिन पहले घर में बैल, फिर सालदार (नौकर) भोजन ग्रहण करते थे और उसके बाद ही घर के बाकी लोगों को भोजन दिया जाता था। आज के समय में भले ही नौकरों का मेहनताना उन्हें हर महीने दिया जाता है, लेकिन कई जगह आज भी बैलों के साथ उन्हें भोजन पर निमंत्रण दिया जाता है।
पोला के दिन गाँव में बैलों के लिए कई प्रकार की प्रतिस्पर्धा का आयोजन भी किया जाता है। जैसे सबसे सुंदर बैल जोड़ी, तोरण तोड़ो प्रतियोगिता आदि। इसमें बैलों के साथ ही उन्हें संभालने वाले को भी पुरस्कार दिया जाता है।
गाँव में पूजन के लिए आसानी से बैल मिल जाते हैं लेकिन शहर में यह संभव होना बहुत मुश्किल होता है। इसलिए कई लोग जो कृषि से जुड़े है और किसी कारणवश गाँव नहीं जा सकते वह अपने स्थान पर ही मिट्टी के बैलों का पूजन करते हैं। और अब तो बाजार में मिट्टी के बैलों के कई आकर्षक स्वरूप आपको देखने को मिलेंगे।
इतना ही नहीं, कई लोग अपने बैलों को पोला के दिन शहर लेकर जाते हैं और घर-घर उन्हें घूमते हैं। जिससे शहर वासी उनकी पूजा कर सकें। बदलें में उन्हें भी भेंट स्वरूप कुछ पैसे दिये जाते हैं।
पोला की बात करते ही मुझे तो मेरे गाँव का वह दृश्य याद आता है जहां चारों ओर सजे हुए बैल दिखाई देते हैं और उत्साह का माहौल होता है। शायद आपने भी अपने बचपन में या कभी पोला से संबन्धित कोई दृश्य देखा हो, आप कमेंट सेक्शन में हमसे वह शेयर कर सकते हैं।
सन्दीपसागर वैद्य
मेरे बचपन का सबसे यादगार तयोहार🐩