कोहिनूर हीरे का उद्गम आंध्रप्रदेश के गोलकोंडा क्षेत्र के खान से हुआ था। वास्तविक रूप में यह 793 कैरेट का पाया गया था। वर्तमान में यह 105.6 कैरेट का है। कभी कोहिनूर हीरा दुनिया का सबसे बड़ा हीरा माना जाता था।
कोहिनूर हीरे से सम्बंधित सर्वप्रथम जानकारी 1304 के आसपास की मिलती है। उस समय कोहिनूर हीरा भारत के मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग तथा राजस्थान के दक्षिणी- पूर्वी भाग से बना हुआ क्षेत्र मालवा के राजा मह्लाक देव की धरोहर में शामिल था।
इसके बाद बाबरनामा में लिखी जानकारी के अनुसार 1526 में ग्वालियर के राजा विक्रमजीत सिंह द्वारा पानीपत के युद्ध के दौरान अपनी सारी राजकीय संपत्ति को, जिसमें कोहिनूर हीरा भी शामिल था, आगरा के कीले में रखवा दिया गया था। इस दौरान पानीपत का युद्ध मुग़ल शासक बाबर द्वारा जीतने के बाद आगरे के कीले पर कब्ज़ा कर लिया गया और कोहिनूर हीरा मुगलों की संपत्ति हो गयी। उस समय इसे बाबर हीरा कहा जाने जाता था।
तत्पश्चात 1738 तक कोहिनूर हीरा मुगलों की धरोहर की शान बढ़ाता रहा। फिर इसी दौरान ईरानी शासक नादिर शाह ने मुग़ल सल्तनत पर हमला कर दिया और 1739 में दिल्ली की गद्दी पर बैठे शासक मोहम्मद शाह को पराजित करके बंदी बना लिया और मुगलों के शाही खजाने को लूट लिया।
शाही खजाने में बाबर हीरा भी शामिल था। ईरानी शासक नादिर शाह ने बाबर हीरा का नाम बदल कर कोहिनूर हीरा रख दिया।
फिर 1747 में ईरानी शासक नादिर शाह की हत्या उसके ख़ास लोगों द्वारा कर दी गयी। इसके पश्चात नादिर शाह के पोते शाहरुख मिर्जा को राजगद्दी पर बैठाया गया और कोहिनूर हीरा शाहरुख़ मिर्जा की सम्पत्ती में शामिल हो गया।
इसके बाद, अहमद शाह अब्दाली, जो कि नादिर शाह का बहादुर सेनापति था, 14 वर्ष के शाहरुख़ मिर्जा की देखभाल एवं सहायता करने लगा। शारुख मिर्जा ने, उससे प्रसन्न होकर, कोहिनूर हीरा उसे सौंप दिया। अहमद शाह अब्दाली कोहिनूर हीरे को लेकर अफगानिस्तान चला गया। तब से कोहिनूर हीरा उसके वंशजों के पास रहा।
एक अंतराल पश्चात अब्दाली का वंशज शुजा कोहिनूर हीरे के साथ लाहौर पहुँचा। उस समय पंजाब पर सिख राजा महाराजा रंजीत सिंह का शासन था। महाराजा रंजीत सिंह को जब पता लगा कि कोहिनूर हीरा शुजा के पास है, तो उन्होंने उसे हर प्रकार के प्रलोभन देकर 1813 में कोहिनूर हीरा हासिल कर लिया।
1813 – 1839 तक पंजाब के राजा महाराजा रंजित सिंह द्वारा कोहिनूर हीरे को अपने ताज में धारण किया जाता रहा। 1839 में महाराजा रंजित सिंह की मृत्यु के पश्चात कोहिनूर हीरा उनके पुत्र दिलीप सिंह के पास आ गया।
लेकिन दिलीप सिंह के हाथ में नायाब कोहिनूर ज्यादा देर टिक नहीं पाया। अबकी बारी अंग्रेजों की थी। 1849 में हुए दूसरे एंग्लो-सिख युद्ध में अंग्रेजों की जीत हुई, और सिख साम्राज्य का अंत हो गया।
पराजय के बाद दिलीप सिंह ने गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी के साथ लाहौर संधि पर हस्ताक्षर कर दिया। इस संधि के अनुसार कोहिनूर हीरा इंग्लैण्ड की महारानी को सौंपना पड़ा।
इतिहासकारों का मानना है कि अंग्रेजों ने राजा दिलीप सिंह से जबरन कोहिनूर हीरा लूट लिया था। दिलीप सिंह एक दस वर्षीय बालक थे, जो अंग्रेजों से डर कर उनके दबाव में आ गए थे जिसका फायदा उठाकर 29 मार्च 1849 को फिरंगियों ने कोहिनूर हीरा अपने कब्जे में कर लिया था।
इस समय कोहिनूर हीरा टावर आफ लन्दन में रखा हुआ है।
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