ज़री की कढ़ाई वाले कपड़ों की बात ही कुछ और होती है. कभी राजसी शान के लिए किया जाने वाला ज़री का यह काम आज रिच और एलीगेंट लुक पाने के लिए बहुत पसंद किया जाता है.
ज़री की कढ़ाई की साड़ियाँ एवं सूट दिखने में लगते तो बहुत अच्छे हैं. लेकिन क्या आपने सोचा है कि ज़री की कढ़ाई कैसे होती है एवं इसमें क्या क्या चीजें प्रयोग में ली जाती हैं? नहीं जानते तो कोई बात नहीं आइये हम आपको बतातें हैं-
ज़री की कढ़ाई का मुख्य स्थान कहाँ है?
ज़री की कढ़ाई का कार्य मुख्य रूप से वाराणसी में किया जाता है, लेकिन इसके अलावा यह कार्य सूरत,कलकत्ता एवं जयपुर में भी किया जाता है. वैसे आजकल यह काम और भी कई स्थानों पर किया जाने लगा है.
ज़री और सूरत
ज़री की कढ़ाई के इतिहास में सूरत का स्थान अहम् है.
मुग़लकाल में जब सूरत का बंदरगाह हज्ज यात्रियों के लिए खोला गया – इस कदम ने ही ज़री की कढ़ाई को पैदाइश दी. हिन्दू और मुस्सलमान कारीगरों की संयुक्त कृति है ज़री.
आज भी विश्व भर में ज़री की कढ़ाई से जुड़ी हर सामान का सर्वाधिक निर्माण सूरत में ही होता है. भारत में शादी के दिन सजी शायद ही कोई दुल्हन होगी जिसका दुल्हन का लिबास का सूरत से कोई कनेक्शन नहीं है. क्या आपको पता है मसहूर बनारसी साड़ी की ज़री वाकई में सूरत की ज़री है?
ज़री की कढ़ाई कैसे होती है?
पुराने समय में यह यह काम महिलाएं अपने घर में बैठकर हाथ से ही किया करतीं थीं लेकिन आज के युग में यह काम मशीनों के द्वारा भी किया जाता है. इस काम को करने के लिये कई चीजों का इस्तेमाल किया जाता है. सूक्ष्म रूप से इस कार्य को करने के लिये खुले स्थान पर एक लकड़ी का बना हुआ फ्रेम लगाया जाता हैं उसके बाद जिस कपड़े पर ज़री का कार्य किया जाना हैं उस कपड़े को टाँगा जाता हैं फिर उस पर एक विशेष प्रकार की सुई से ज़री की कढ़ाई की जाती है.
ज़री की कढ़ाई के लिये मुख्यत सोने एवं चांदी के धागों का प्रयोग किया जाता है. सोने व चाँदी के धागे का प्रयोग वाराणसी में दुल्हन के वस्त्रों पर ज़री का कार्य करने कें लिये किया जाता है जो काफी महँगे होते हैं. परन्तु आज के इस मंहगाई के युग में कृत्रिम धागों का प्रयोग आम हो चला है. यह कृत्रिम धागा चमकीला व पीले-सफ़ेद रंग का होता जो सोने व चाँदी के धागे जैसा लगता है. यह देखने में भी सुन्दर होता है एवं इन धागों के कारण ज़री के काम को करवाने की लागत भी कम आती है.
क्या आपने कभी यह सोचा है कि दुल्हन, ज़री की कढ़ाई वाले कपडे ही क्यों पहनती हैं?
असल में ज़री वाले कपड़ों में सोने-चाँदी के धागों का ही प्रयोग किया जाता है जिससे ज़रीदार कपड़े में काफी चमक-दमक आ जाती है. जिसे पहनने से दुल्हन अधिक सुन्दर दिखाई देती है.
आजकल बड़े शोरूम्स में ज़री के कपडे काफ़ी बिकते हैं, क्योंकि ये कपडे खूबसूरत होने के साथ ही पहनने वाले को एक रिच लुक भी देते हैं.
क्या आप जानते हैं कि ज़री से बने कपड़ों के अलावा आजकल दिखने में ज़री जैसे लगने वाले कपडे भी बनते हैं जो रेशमी धागे से बनाये जातें हैं. इनमें ज़री की तरह का काम रेशमी धागे से मशीन द्वारा किया जाता है. जिसे जिसे कशीदाकारी भी कहा जाता है. यह दिखने में भी बहुत सुन्दर लगता है.
ये कपड़े ज़री के कपड़ों की अपेक्षा अधिक सस्ते लेकिन सुंदर होते हैं.
ज़री का काम,भारत के उस बेशक़ीमती हुनर में से एक है जो सिर्फ सोने-चांदी या रेशम के चमकीले धागों का ताना-बाना ही नहीं बल्कि एक परम्परा है.
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