प्राचीन काल से ही स्त्री और श्रंगार एक दूसरे के पर्याय हैं। बात स्त्री की हो और श्रंगार का जिक्र न हो ये असंभव सी बात है। और श्रंगार है तो आभूषण भी स्वाभाविक हैं। कवियों और लेखकों ने भी स्त्री के सोलह श्रंगार का वर्णन अपनी कविताओं में खूब किया है।
आभूषण प्रत्येक स्त्री की पसंद होते हैं। आभूषण सोने और चाँदी दोनों के ही होते हैं। आजकल हीरे के आभूषण भी काफी प्रचलन में हैं। कान में बाली, नाक में नथ, हाथों मेें कंगन, गले में हार, मंगलसूत्र, उंगली में अँगूठियाँ, पैरों मे पायल और पैर की अँगुलियों में बिछुये ये सब आभूषण स्त्री को एक अलग ही छवि देते हैं।
नवविवाहिता जब सोलह श्रंगार कर रुनकझुनक पायल की ध्वनि करती घर में चलती है तो घर में एक सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है। हाथों में कलाई भर चूड़ियाँ और नई दुल्हन की भारी बजनी पायल दूर से ही दुल्हन के आने का संदेश देती है। कटि से ऊपर सोने और चाँदी दोनों धातुओं के आभूषण पहने जाते हैं लेकिन पैरों में पायल और बिछुए सदैव चाँदी के ही पहने जाते हैं। हमारे यहाँ सोने के गहने पैरों में पहनने निषेध माने गये हैं। फिल्मों में भी गाहे बजाहे गहनों का जि़क्र आ ही जाता है। जैसे:
पैरों में बंधन है पायल ने मचाया शोर…
पायलिया ओहो हो हो…
पायल या पाजेब सोलह श्रंगार में से एक मानी जाती है। ये सोलह श्रंगार के पन्द्रहवें पायदान पर बड़ी शान से विराजमान है। कई प्रान्त में पायल जिन्हें बाजोट या रेशमपट्टी भी कहते हैं के बिना फेरे नहीं लिये जाते। फेरे की रस्म के लिए इन पायलों का होना बेहद आवश्यक होता है।
आभूषणों में मंगलसूत्र और बिछुए ऐसा आभूषण है जिसे सौभाग्य की निशानी माना जाता है और प्रत्येक सुहागन स्त्री के लिए ये अति आवश्यक माने जाते हैं। यूँ तो माँगटीका, नथ, चूड़ियां, ये सब भी सौभाग्य की निशानी माने जाते हैं परन्तु सोने एवं चाँदी के आभूषण में मंगलसूत्र और बिछिया दोनों ऐसे आभूषण हैं जिसे एक सौभाग्यशाली स्त्री हर वक्त धारण रखती है। कई प्रान्त में कांच की चूड़ियाँ सौभाग्य की निशानी मानी जाती हैं। तो कहीं लाख की चूड़ियाँ सौभाग्य सूचक होती हैं।प्रत्येक विवाहित स्त्री मांग में सिंदूर, बिन्दी , कांच की चूड़ी एवं बिछिया ये सौभाग्य सूचक वस्तुएं अवश्य धारण करती हैं।
शुभ कार्य में ध्वनि का बहुत महत्व है। नवविवाहिता के सोलह श्रंगार में से पायल का पैर की सुन्दरता बढ़ाने के अलावा भी कई महत्व हैं। पायल को पाजेब या पंजाबी में पंजेब भी कहा जाता है। आजकल लड़कियाँ एक पैर में पायल पहनती हैं। इन्हें एंकलेट कहते हैं। एक से दो चेन और घुँघरूओं से बनी पायल की रुनझुन नवविवाहिता के जीवन में भी ऐसे ही सुख सौभाग्य की रौनक भर देगी ऐसी मान्यता मानते हैं। पैरों में पहनने वाले आभूषण के चाँदी के ही होने के विभिन्न तर्क हैं।ये तर्क धार्मिक, वैज्ञानिक और परम्परा के आधार पर गढ़े गये हैं। चाँदी के आभूषण पहनने से शुक्र और बुध ग्रह पर प्रभाव पड़ता है। पैरों में चाँदी के आभूषण पहनने से शुक्र ग्रह मजबूत होता है। साथ ही यह धातु गुस्से पर भी नियत्रंण करती है।
पैर में बजने वाली पायल बजने से उत्पन्न होने वाली ध्वनि क्रिय-शक्ति कहलाती है। कहा जाता है यह ध्वनि वातावरण की नकारात्मक ऊर्जा को अवशोषित कर सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करती है। इसके इलावा पायल से निकलने वाली मधुर ध्वनि पाताल की तरंगो को रोकने का काम भी करती है।
बिछिया का भी शुभ अशुभ के पारंपरिक महत्व के साथ साथ वैज्ञानिक महत्व भी है। बिछिया दोनों पैरों की अँगुलियों में पहना जाता है। पुराने जमाने में पैर की तीनों अँगुलियों में बिछिया पहने जाते थे। आजकल स्त्री एक या दो अँगुलियों में ही इसे पहनती हैं।अँगूठे में पहनने वाले बिछिया को अनवट कहते हैं। बिछिया का सम्बन्ध गर्भाशय से होता है। ये गर्भाशय की एन्डोमीट्रियम को मजबूती प्रदान करते हैं एवं मासिक चक्र का नियमन करते हैं। ये पारंपरिक आभूषण पैर की सुंदरता तो बढ़ाते ही हैं साथ ही एक रक्षा कवच भी प्रदान करते हैं।
एक मान्यता के अनुसार पैर में सोना पहनने से शनि देव का आगमन हो जाता है। अब शनिदेव से सारा संसार घबराता है। पैरों में सोना पहनने से धन की देवी लक्ष्मी भी नाराज़ हो जाती हैं। आभूषण भारतीय परंपरा के निर्वाहक हैं।और परंपरायें रिश्ते जोड़ने में मजबूत भूमिका निभाते हैं। भारतवर्ष में श्रंगार को पति की लम्बी आयु से जोड़ा जाता है। महिलायें खुशी खुशी पति की लम्बी आयु के लिए इन गहनों को धारण करती हैं। इसीलिए तो स्त्रियां कहती हैं, “‘सजना’ है मुझे ‘सजना ‘ के लिए”
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