हिन्दुओं में वैष्णो देवी धाम की यात्रा का बहुत महत्त्व है. क्यों है वैष्णो देवी यात्रा की इतनी मान्यता? जानिये इस लेख में.
वैष्णो देवी मंदिर को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हिन्दू धार्मिक स्थानों में से एक माना जाता है. यह मंदिर जम्मू और कश्मीर राज्य की त्रिकूट पहाड़ियों पर बना हुआ है. वैष्णो देवी मंदिर में हर साल लाखों लोग दर्शन के लिए आते हैं और माता के दर्शन कर कृतार्थ होते हैं
कटरा से लेकर माँ के भवन तक के सफर में कई पड़ाव आते हैं और इन पड़ावों का अपना अलग-अलग महत्व है ।
बाणगंगा
इस पड़ाव का बहुत महत्व है. मान्यता है कि यहाँ हनुमानजी माता वैष्णो देवी के प्रहरी थे, एक बार जब हनुमानजी को प्यास लगी तो माता ने एक बाण से इस स्थान पर जलधारा प्रवाहित कर दी थी. आज भी वह जलधारा मौजूद है और इस पानी को पवित्र माना जाता है. मान्यता यह भी है कि इस जलधारा में स्नान करने से हमारे सभी पाप और मैल धुल जाते हैं.
अर्धकुमारी
एक कथा के अनुसार माँ का एक श्रीधर नाम का भक्त था उसने एक बार भंडारा रखा जिसमे माँ कन्या के रूप में आयी. उसी भंडारे में भैरवनाथ भी आया और उसके श्रीधर से मांस-मदिरा की मांग की. श्रीधर ने और माँ ने उसे काफी समझाया, इस पर भैरवनाथ क्रोधित हो गया और माँ के पीछे उन्हें मारने के लिए भागा. ऐसे में माँ वैष्णों पर्वत की एक गुफा में चली गयी और इसी गुफा का नाम ‘अर्धकुमारी’ पड़ा. इस गुफा को “गर्भजून” भी कहा जाता है. यहाँ माँ ने नौ महीने तक तपस्या की थी. गुफा के पास मां की चरण पादुकाएं भी मौजूद हैं.
माँ का मंदिर (भवन)
वैष्णो देवी मंदिर तक एक पुरानी गुफा के माध्यम से जाया जाता है और ऐसा माना जाता है कि यह गुफा चमत्कारी और रहस्यमयी है. ऐसा भी माना जाता है कि माता वैष्णो ने इसी जगह भैरव को मारा था और उसका शरीर आज भी उसी गुफा में मौजूद है हालाँकि उसका सिर उस समय उड़कर भैरो घाटी पहुँच गया था. इस पुरानी गुफा में आज भी पानी बह रहा है जिससे होकर हम उस स्थान तक पहुँच सकते हैं जहाँ मां काली, मां सरस्वती और मां लक्ष्मी पिंडी के रूप में गुफा में विराजित हैं. इन तीनों पिण्डियों को ही वैष्णो देवी का रूप माना जाता है. यह पुरानी गुफा आजकल बंद कर दी गयी है और इसकी जगह एक नयी और कृत्रिम गुफा बनाई गयी है. पुरानी गुफा को साल में कुछ दिनों के लिए ही खोला जाता है. इस स्थान की मान्यता है कि माँ के इन पिंडी रुपी स्वरुप के दर्शन करके मनुष्य सारे कष्टों से मुक्त हो जाता है और माँ सबकी मुरादें पूरी करती हैं.
भैरवनाथ मंदिर
जीवन के अंतिम समय में भैरवनाथ ने माँ से माफ़ी मांग ली तो माँ ने उसे माफ़ करते हुए यह आशीर्वाद दिया कि जो कोई भी मेरे दर्शन करने के लिए आएगा वो तुम्हारे दर्शन ज़रूर करके जायेगा अन्यथा उसकी यात्रा और पूजा पूरी नहीं होगी. इसीलिए भैरवनाथ मंदिर का भी बहुत महत्व है और इस मंदिर के दर्शन किये बिना वैष्णो देवी यात्रा को सम्पूर्ण नहीं माना जाता.
इन सब स्थानों में इस आध्यात्मिक यात्रा के लिए कोई न कोई संदेश छुपा हुआ है. वैष्णो देवी मंदिर के दर्शन करने जो भी आता है वो खाली हाथ नहीं जाता. माता सबकी मुरादें पूरी करती है और सबकी झोलियाँ भरती है, यही वजह है कि माता वैष्णो देवी मंदिर की इतनी मान्यता है.
लेख में 1965 में नेहरू जी द्वारा यज्ञ कराने का जिक्र है..नेहरू जी 1964 में स्वर्ग सिधार गये थे. कृपा लेख में त्रुटि सुधारने की कृपा करें…1965 में लाल बहादुर शास्त्री जी ने यज्ञ कराया था पीताम्बरा पीठ दतिया में…कृपा लेख में सुधार करने की कृपा करें…