धर्म और संस्कृति

फरवरी के महीने में 28 दिन ही क्यों होते हैं?

मानव मष्तिष्क में जिज्ञासा का उठना स्वाभाविक है। इस रहस्यमयी दुनिया में मानव मन हर पल किसी न किसी बात के उत्तर को जानने की जिज्ञासा में उलझा रहता है।

ऐसा ही एक प्रश्न है, जिसके उत्तर को जानने की जिज्ञासा को लेकर कई बार बच्चे तो बच्चे बड़े भी सोचने पर मजबूर हो जाते हैं। “केवल फरवरी के महीने में ही 28 दिन क्यों होते हैं?

इतना ही नहीं, आप ये भी सोचते होंगे कि हर चौथे वर्ष फरवरी में 29 दिन क्यों होते हैं। किन्तु सही जवाब न मिलने के कारण ये जिज्ञासा रह-रह कर मन में उठती रहती होगी। क्या आपके भी मन में यह प्रश्न जिज्ञासा बन कर कहीं दबा पड़ा है? तो आइये जाने इस लेख के माध्यम से प्रश्न का वैज्ञानिक कारण।

आज हम जिस कलेंडर का प्रयोग करते हैं, वह रोमन लोगों  द्वारा बनाए गए कलेंडर पर आधारित है। प्राचीन कल में रोमन लोग साल की शुरुआत मार्च से कर के दिसम्बर पर ख़त्म करते थे। हालांकि इस बात का कोई ठोस सबूत नहीं हैं।

किन्तु सदियों से ऐसी कई कहानियाँ प्रचलित हैं कि रोम के शासक रोमुलुस के शासनकाल में ऐसा कलेंडर होता था, जिसमें महीने की शुरूआत मार्च महीने से होकर दिसम्बर महीने पर ख़त्म हो जाती थी। इस तरह साल में 10 महीने और 304 दिन होते थे।

चूँकि जनवरी और फरवरी में सर्दी पड़ती है। जिसके कारण वहाँ खेती का काम नहीं हो पाता था। इसलिए रोमन लोगों के लिए इन दो महीने का कोई महत्त्व नहीं था। लेकिन कुछ समय पश्चात् उनका कलेंडर गलत साबित होने लगा। मार्च के महीने में जहाँ पहले गर्मी होती थी, वहीँ अब सर्दी पड़ने लगी।

इससे उन्हें ज्ञात हो गया कि कलेंडर में दो महीने और होने चाहिए। फिर कुछ समय पश्चात कलेंडर में बदलाव किये गए, जिसके अनुसार दो महीने जनवरी और फरवरी कलेंडर में जोड़ दिए गए।

ये कलेंडर चाँद वर्ष के आधार पर बनाए गए थे और चाँद  पृथ्वी का पूरा चक्कर 365 दिन में तय करता है। इसलिए जनवरी और फरवरी में 28-28 दिन रखे गए। किन्तु रोमन लोग 28 अंक को अशुभ मानते हैं। इसलिए जनवरी में 1 दिन और जोड़कर उसे 29 दिन का महीना बना दिया गया। फरवरी को 28 दिन का ही रहने दिया गया।

➡ चाँद धरती से कितना दूर है और वहां पहुँचने में कितना समय लगता है? 

दरअसल रोमन लोग फरवरी के महीने में मृत आत्मा की शान्ति की प्रार्थना करते हैं और इस महीने को अशुभ मानते हैं। इस प्रकार 1 वर्ष में अब 12 महीने / 355 दिन होने लगे।

चूँकि मौसम सूर्य और पृथ्वी के चक्कर के कारण बदलते हैं और कलेंडर चाँद और पृथ्वी के चक्कर पर आधारित था। इस कारण मौसम महीने के अनुसार नहीं बदल रहे थे। अत: वर्ष मौसम के अनुसार बदले, इसके लिए हर वर्ष में 10 दिन और जोड़ दिए गए। जिसकी वजह से अब हर वर्ष 365 दिन और 6 घंटे का हो गया। 

अब चूँकि सूर्य पृथ्वी का चक्कर 365 दिन और 6 घंटे में पूर्ण करता है। इसलिए बचे हुए 6 घंटों को हर वर्ष बचा लिया जाता है तथा प्रत्येक चौथे वर्ष मिलाकर फरवरी महीने में एक दिन जोड़ दिया जाता है।  इसलिए 29 दिन वाले फरवरी के महीने को लीप इयर कहते हैं।          

➡ हिन्दू धर्म के विभिन्न कैलेंडर: शक सम्वत और विक्रम सम्वत में क्या अंतर हैं?

Ritu Soni

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