रंगों का पावन पर्व होली वसंतोत्सव के तौर पर फ़ाल्गुन माह की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार फ़ाल्गुन पूर्णिमा वर्ष का अंतिम दिवस होता है। इससे 8 दिनों पहले यानी अष्टमी से होलाष्टक शुरू हो जाते हैं।
हमारे शास्त्रों में फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर होलिका दहन तक की अवधि को होलाष्टक कहा गया है।
इस बार होलाष्टक 21 मार्च से होलिका दहन की तिथि यानी 28 मार्च तक रहेंगे।
शास्त्रों के अनुसार अष्टमी से पूर्णिमा तक की इन 8 दिनों की अवधि में कोई भी मांगलिक कार्य अथवा नूतन कार्य का शुभारंभ यथा विवाह, सगाई, नए घर की नींव रखना, गृह प्रवेश, नूतन वाहन अथवा घर की खरीदारी, विवाह की बातचीत आदि जैसे कार्य निषिद्ध होते हैं और उसके साथ ही हिंदू धर्म में बताए गए 16 संस्कारों की भी मनाही होती है ।
होलाष्टक की अवधि क्यों अशुभ होती है?
पौराणिक मान्यता:
होलाष्टक के विषय में पौराणिक मान्यता है कि प्राचीन समय में राजा हिरण्यकश्यप ने विष्णु देवता के अनन्य भक्त प्रहलाद को इसलिए कारागार में बंद कर दिया था, क्योंकि वह हर क्षण भगवान विष्णु की उपासना अर्चना में लीन रहते थे। फाल्गुन माह की अष्टमी से पूर्णमासी के मध्य की अवधि में कारागार में हिरण्यकश्यप के आदेश पर भक्त प्रहलाद को जघन्य यंत्रणा दी गई। इस कारण इस समय अवधि को अशुभ माना जाता है, और इस अवधि में कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित होता है।
इसके साथ साथ इस संबंध में एक अन्य कथा भी प्रचलित है, जिसके अनुसार फ़ाल्गुन माह की अष्टमी तिथि को ही देवों के देव महादेव ने कामदेव को अपने तृतीय नेत्र की ज्वाला से भस्म कर दिया था, जिसके कारण संपूर्ण सृष्टि शोक मग्न हो गई। अपने पति को जीवनदान देने के लिए उनकी अर्धांगिनी देवी रति ने अन्य देवी-देवताओं सहित महादेव की पूजा की। उनकी समर्पित भक्ति से प्रसन्न भोले भंडारी ने कामदेव को पुनर्जीवन प्रदान किया।
कामदेव फ़ाल्गुन की अष्टमी को भस्म हुए थे और 8 दिनों की अवधि के पश्चात रति को उनके पुनर्जीवन का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। अतः इस कारण भी 8 दिनों की इस अवधि को अमंगलकारी माना जाता है।
ज्योतिषीय मान्यता:
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार फ़ाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णमासी को राहु उग्र प्रकृति के हो जाते हैं। इन ग्रहों की शक्ति इन दिनों क्षीण हो जाती है। परिणाम स्वरूप जातकों द्वारा गलत निर्णय लिए जाने की संभावना होती है और इस वजह से उन्हें नुकसान होने की संभावना रहती है। ये आठों ग्रह उनके रोजमर्रा के कार्यों पर विपरीत प्रभाव डालते हैं
जिन जातकों की कुंडली में चंद्र छठे अथवा आठवें भाव में होता है, उन्हें इन दिनों अतिरिक्त सावधान रहने की आवश्यकता है।
वैज्ञानिक कारण:
होलाष्टक के 8 दिनों की अवधि में ऊर्जा के स्तर पर संपूर्ण ब्रह्मांड में विकट परिवर्तन होते हैं। यह अहम उथलपुथल हमारी सौर प्रणाली के ग्रहों पर अपना तीव्र प्रभाव डालते हैं और परिणाम स्वरूप हमें भी प्रभावित करते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हमारी किस्मत गढ़ने में हमारे कर्मों के साथ-साथ ये ग्रह भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
वैज्ञानिक मत के अनुरूप जब ग्रहों में ऊर्जा के स्तर पर यह महत्वपूर्ण उथल-पुथल होती है, उस वक्त हमें कोई भी शुभ कार्य करने से बचना चाहिए।
होलाष्टक के दौरान क्या करें?
ईश भक्ति एवं पूजा पाठ:
इन दिनों होलाष्टक के नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिए ईश्वर की आराधना में लिप्त होना चाहिए। पूजा, यज्ञ एवं उपवास के दृष्टिकोण से यह समय श्रेष्ठ माना गया है।
भरपूर दान दक्षिणा दें:
इन दिनों में नौ ग्रहों के नकारात्मक प्रभावों से प्रभावी बचाव के लिए सभी जातकों को जरूरतमंदों एवं निर्धन को अपनी क्षमता अनुसार दान देना चाहिए।
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