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दिवाली की शाम दीये क्यों जलाए जाते हैं?

हिन्दू धर्म के सभी पर्व को मनाने के पीछे ग्रह, नक्षत्र, मौसम एवं जन कल्याण की भावना निहित होती है। पारंपरिक एवं धार्मिक मान्यताओं के आधार पर दिवाली का पर्व कार्तिक माह की अमावस्या के दिन मनाया जाता है। दिवाली पर्व में दीपक को जलाने की मान्यता के साथ कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हुईं हैं।

दीपावली का पर्व मुख्यतः

तीन दिनों तक चलता है। धनतेरस, नरका चतुर्दशी या छोटी दिवाली और बड़ी दिवाली विभिन्न धर्मों एवं कथाओं के आधार पर दिवाली पर दीपक जलाने की प्रथा है। आइये जाने दिवाली के दिन दीपक जलाने की प्रथा से जुड़ी मान्यताओं के विषय में:

 

नरका चतुर्दशी या छोटी दीपावली को दीपक जलाने का कारण :

पौराणिक कथा के अनुसार – रान्ति देव नामक एक पुण्यात्मा राजा थे। जिनकी पृथ्वी पर आयु पूरी होने पर जब यमराज उनको लेने के लिए आये, तो राजा ने यमराज से पूछा कि मैंने तो जीवन पर्यंत कोई भी पाप नहीं किया है। फिर आप मुझे नरक में क्यों ले जाने के लिए आयें हैं।

तब यमराज ने उत्तर दिया कि राजन एक बार आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा लौट गया था। ये उसी का परिणाम है। तब राजा ने यमराज से कुछ दिनों की महूलत माँगी और ऋषि की शरण में जाकर सारा वृत्तांत सुनाया तथा यमराज से मुक्ति पाने का हल पूछा।

तब ऋषि द्वारा बताये गए नियम एवं विधि-विधान का पालन करने के पश्चात उनकों पापों से मुक्ति मिल गई और राजा को स्वर्ग में स्थान प्राप्त हुआ। तभी से नरका चतुर्दशी के दिन यमराज को दीप दान करने की प्रथा का प्रचालन आरम्भ हुआ।

इस दिन घर में परिवार के सदस्यों के नाम से दीपक जलाने से अकाल मृत्यु नहीं होती है।

बड़ी दिवाली को दीपक जलाने का कारण :

धार्मिक ग्रन्थ रामायण के अनुसार- अयोध्या के राजा भगवन श्री राम ने रावण का वध करने के पश्चात अपनी पत्नी सीता जी एवं भाई लक्ष्मण के साथ चौदह वर्ष के वनवास के उपरान्त अपने राज्य अयोध्या नगरी में वापस लौटे थे।

रामचंद्र जी का स्वागत अयोध्यावासियों ने दीपक से अपने घरों और बाज़ार को रौशन करके किया था। तभी से दिवाली के दिन दीपक जलाने की परंपरा की शुरुआत हुई। इस दिन को बड़ी दीपावली के रूप में मनाते हैं

पौराणिक कथाओं के अनुसार- कार्तिक माह की कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को श्री कृष्ण भगवान ने अत्याचारी राक्षस नरकासुर का वध करके देवताओं एवं संतों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई थी। जिससे उत्साहित होकर लोगों ने दूसरे दिन अर्थात कार्तिक माह की अमावस्या को अपने घरों में घी के दीपक जला कर उत्सव मनाया था। तभी से कार्तिक माह की अमावस्या को दीपक जलाने की परम्परा की शुरुआत हुई।

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार – कार्तिक माह की अमावस्या की रात को समुन्द्र मंथन के पश्चात धन की देवी लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु को अपने पति रूप में स्वीकार किया था और विषाणु जी के साथ लक्ष्मी देवी वैकुण्ठ धाम में पधारी थीं। इस कारण लक्ष्मी जी इस दिन प्रसन्न रहती हैं।

मान्यता है कि इस दिन दीपक जलाकर लक्ष्मी जी का पूजन करने से मनुष्य धन, आरोग्य एवं समृद्धि को प्राप्त करता है।

बंगाल में कार्तिक अमावस्या की रात में दीपक जलाने की प्रथा प्रचलित होने के पीछे मान्यता है कि अमावस्या की रात से पितरों की रात्रि प्रारंभ होती है। जिसके कारण पितरों के राहों में रौशनी हेतु दीपक जलाने की मान्यता है।

Ritu Soni

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