स्वास्थ्य

आयुर्वेदिक औषधियों में प्रमुख चूर्ण कौन से हैं?

आयुर्वेद को प्राचीनतम चिकित्सा प्रणालियों में से सर्वश्रेष्ठ प्रणाली माना गया है। प्राचीन काल से ही आयुर्वेद द्वारा अनेक तरह की बिमारियों का उपचार एवं समाप्ति करना संभव हो पाया है। इतना ही नहीं बल्कि आज भी कई जानलेवा बीमारियाँ जो कि आधुनिक दवाइयों से नहीं समाप्त होती, उनके लिए आयुर्वेदिक इलाज ही उचित उपाय समझा जाता है। आयुर्वेद में कई बिमारियों जैसे बालों सम्बन्धी, त्वचा सम्बन्धी, ह्रदय की बीमारियाँ, शरीर में दर्द, पेट की बीमारियाँ एवं कई मानसिक बिमारियों का इलाज तुरंत प्रभाव से उपलब्ध होता है। यहाँ हम आज आपको कुछ गुणकारी आयुर्वेदिक चूर्णों की जानकारी देंगे एवं उनके लाभों से अवगत कराएंगे।

 

आयुर्वेदिक चूर्ण 

• त्रिफला चुर्ण

रात को सोते समय या सुबह उठकर नियमित रूप से पानी या शहद के साथ इसके सेवन से मधुमेह, नेत्ररोग, ह्रदय रोग, कब्ज, पाण्डु, सूजन, मोटापा एवं अन्य पेट सम्बन्धी बिमारियों से निजात मिलता है।

• कायम चूर्ण

 

 

इसके सेवन से पेट सम्बन्धी बीमारियाँ जैसे- पेट में कीड़े पड़ना, दस्त, अपच, उल्टी, कब्ज, पेट में ट्यूमर, पेट फूलना, भूख न लगना आदि से मुक्ति मिलती है।

• कौंच बीज चूर्ण

पानी या दूध के साथ दिन में दो बार इसके सेवन से मासिक धर्म, आमवाती विकार, पेट दर्द, मधुमेह, खांसी, मांसपेशियों में दर्द आदि बिमारियों में राहत मिलती है।

• अश्वगंधा चूर्ण

सुबह एवं शाम को प्रतिदिन दूध के साथ इसके सेवन से नेत्र, शरीर एवं त्वचा सम्बन्धी बिमारियों से मुक्ति मिलती है।

• अष्टांग लवण चूर्ण

भोजन के पश्चात् या पूर्व इसके थोड़ी-थोड़ी मात्रा में सेवन से पेट सम्बन्धी बीमारियों जैसे- पेट दर्द, कब्ज एवं गैस आदि से राहत मिलती है।

• गंगाधर (वृहत) चूर्ण

 

पेट में मरोड़ी, अपच, मंदाग्नि, पतले दस्त, अतिसार, वात एवं कफ आदि में इसका सेवन अत्यधिक फायदेमंद सिद्ध होता है।

• आमलकी रसायन चूर्ण

इसकी पौष्टिकता के कारण इसके नियमित सेवन से शरीर एवं इन्द्रियों में स्फूर्ति आती है। इसके अलावा इसमें कई रासायनिक एवं पित्त नाशक तत्व भी विध्यमान है।

• तालीसादि चूर्ण

शहद के साथ दिन में दो बार इसके सेवन से तेज़ बुखार, खाँसी, उल्टी, कफ, तिल्ली, अतिसार, आफरा, अरुचि, जीर्ण आदि विकारों से राहत मिलती है।

• नारायण चूर्ण

 

पेट संबंधी रोग, सूजन, जलन, कब्जियत, पेट साफ नहीं होना, पेट में कीड़े पड़ना, जी मिचलाना, खट्टी डकारें आना, दस्त लगना, कलेजे में जलन आदि में इसका सेवन लाभकारी है।

• व्योषादि चूर्ण

यह नज़ला, पीनस, जुकाम-खाँसी, आवाज बैठना एवं श्वांस संबंधी बिमारियों में गुणकारी सिद्ध होता है। इसके साँयकाल के समय नियमित सेवन अत्यधिक लाभदायक होता है।

• सितोपलादि चूर्ण

इसका सेवन दिन में एक या दो बार शहद के साथ करें। इससे भूख न लगना, पुराना बुखार, खाँसी, अरुचि, शारीरिक क्षीणता, हाथ-पैरो में जलन, क्षय, नाक एवं मुँह से खून आना आदि रोगों में लाभ मिलता है।

 

आयुर्वेद में कई औषधिक चूर्णों का वर्णन मिलता है जिनका उपयोग कर विभिन्न प्रकार की बिमारियों से राहत प्राप्त की जा सकती है। इतना ही नहीं इनके नियमित सेवन से शरीर में रोगों को उत्पन्न होने से भी रोका जा सकता है। परन्तु इनका ज्यादा मात्रा में सेवन शरीर को इनका आदि बना सकता है। अतः इनके अधिक सेवन से बचें।

 

 

Shalu Mittal

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