भगवान् राम के जीवन पर आधारित दो हिन्दू ग्रंथों वाल्मीकि ‘रामायण‘ और ‘रामचरितमानस’ समान रूप से पूजनीय हैं. क्या है इन ग्रंथों के बीच समानता और अंतर? जानिए इस लेख में.
वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक लेखकों और कवियों ने न केवल भारत भूमि बल्कि विदेशों में भी राम कथा का अपनी भाषा और अपने अंदाज़ में वर्णन किया है. एक अनुमान के अनुसार दुनिया भर में 300 से ज्यादा रामायण लिखी और पढ़ी गईं हैं जो हमें राम कथा के कई अनछुए पहलुओं की जानकारी देती हैं. लेकिन वास्तविकता में श्री राम के चरित्र और गुणों का वर्णन जिन दो मुख्य ग्रन्थों में किया गया है वो हैं-वाल्मीकि रचित “रामायण” और तुलसीदास की “रामचरितमानस”.
हृदय परिवर्तन के बाद दस्यु से ऋषि बन जाने वाले वाल्मीकि ऋषि ने संस्कृत भाषा में एक महाकाव्य की रचना की. इस ग्रंथ में 24,000 श्लोकों को 500 सर्ग और 7 कांड में लिखा गया है. एक अनुमान के अनुसार 600 ईसा पूर्व रचे गए इस महाकाव्य में अयोध्या के राजा राम के चरित्र को आधार बनाकर विभिन्न भावनाओं और शिक्षाओं को बहुत सरल तरीके से समझाया गया है.
राजा राम का चरित्र वाल्मीकी ने एक साधारण मानव के रूप में चित्रित किया है जो बाल रूप से लेकर राजा बनकर न्यायप्रिय तरीके से राज करके अपनी प्रजा के हित के लिए किसी भी निर्णय को लेने में हिचकते नहीं हैं. उनके द्वारा किये गए कामों में कहीं भी किसी दैवीय शक्ति का प्रयोग दिखाई नहीं देता है.
वाल्मीकि ने सम्पूर्ण महाकाव्य में राम को एक साधारण पुत्र, भाई और पति के रूप में ही चित्रित किया है. एक साधारण मानव जिसे अपने हर काम के लिए अपने मित्रों और सहयोगियों की आवश्यकता होती है. न केवल राम, बल्कि इस महाकाव्य का हरेक पात्र, चाहे वो भरत, शत्रुघ्न, लक्ष्मण या विभीषण जैसा भाई हो, उर्मिला, सीता , कैकई और मंदोदरी जैसी पत्नी हो, हनुमान जैसा मित्र हो या फिर दशरथ जैसा पिता हो, हर चरित्र को सशक्त और प्रेरक रूप में प्रस्तुत किया है.
अवधि भाषा में रची गयी रामचरितमानस सोलहवीं शताब्दी में तुलसीदास द्वारा रची गयी रचना है. वाल्मीकि रामायण को आधार मान कर रची गयी यह रचना एक भक्त का अपने आराध्य के प्रति प्रेम और समर्पण का प्रतीक है. तुलसीदास जी ने इस ग्रंथ में राम के चरित्र का निर्मल और विशद चित्रण किया है.
विष्णु के अवतार श्री राम के जीवन चरित्र को सात कांडों के रूप में दर्शाया गया है इस चरित्र वर्णन में तुलसीदास जी ने हिन्दी भाषा के अनुप्रास अलंकार का खुलकर उपयोग किया है और इसके अतिरिक्त पूरी कथा में यथानुसार श्रृंगार, शांत और वीर रस का भी प्रयोग किया है. इस रचना में राम के चरित्र को एक महानायक और महाशक्ति के रूप में दर्शाया गया है.
दोनों ग्रन्थों में अंतर मुख्य पात्र के चरित्र चित्रण का है. रामायण के राम एक सरल साधारण मानव हैं जो हर मानवीय भावना से प्रेरित हैं, जबकि तुलसी के राम एक दैवीय शक्ति से युक्त अतिमानव हैं जो स्वयं एक महाशक्ति का रूप हैं. तुलसी के राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं और बाल्मीकी के राम मानवीय भावनाओं के संतुलित रूप हैं. सबसे बड़ा अंतर है दोनों ग्रंथो के रचना आधार का. बाल्मीकी ने रामायण की रचना ऐतिहासिक घटना पर आधारित ग्रंथ है और तुलसीदास ने वाल्मीकि रामायण को ही आधार मानकर अपने आदर्श चरित्र ‘राम’ को गढ़ा है.
अंतर चाहे जो भी हो, राम वाल्मीकि के साधारण मानव और तुलसी के दैवीय शक्तियों से युक्त मानव, दोनों ही रूपों में लोकप्रिय और वंदनीय हैं.
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भाइयो मै रामायण को खण्ड काव्य और रामचरित्र मानस को महाकाव्य जनता हूँ कृपया मुझे समझते हुऐ मेरी अग्यानता दूर करो ।
Lord ram born to tulsi das affter
क्योंकि भारत में ही भगवान का प्राकट्य हुआ है. जैसे श्लोक मे लिखा है यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानीर्भवति भारत. इस लिए मन्दिर वना आवश्यक है
Jay Shri Ram.....Ayodhya mei Ram Mandir ka Nirman ho.