निर्माण और सृजन के देवता माने जाने वाले विश्वकर्मा जी हस्तलिपि कलाकार है। ऐसी मान्यता है, कि स्वर्ग लोक, लंका, हस्तिनापुर, द्वारकापुरी भी इन्हीं के कला का उदाहरण है। विश्कर्मा जयंती या विश्वकर्मा पूजा वाले दिन ख़ासकर उद्योग काम आने वाली सारी वस्तुएं, औज़ार, मशीनें तथा सभी दुकानों में जहाँ कहीं भी कुछ बनाने का कार्य होता है, वहाँ पूजा होती ही है।
विश्वकर्मा पूजा किस दिन होनी चाहिए? यह लेकर भी लोग अलग अलग विचार रखते है। कोई इसे दिवाली के दूसरे दिन तो कोई इसे भाद्रपद माह में शुक्लपक्ष में पड़ने वाली चतुर्थी को मनाता है।
भाद्रपद माह में इस वर्ष विश्वकर्मा जयंती १७ सितम्बर २०१७ को है. तो आइये विस्तारपूर्वक जानते है, विश्वकर्मा पूजा की सम्पूर्ण विधि और इसके पीछे की कथा को पौराणिक कथाओं के वर्णन में यह लिखा हुआ है, कि जब इस संसार की सरंचना हुई थी, तब विष्णु जी समुद्र से प्रकट हुए थे और विष्णु जी के नाभि से ब्रह्मा जी इस संसार में आये।
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ब्रह्मा जी के पुत्र रत्न का नाम था धर्म, जिन्होंने वास्तु नामक कन्या से विवाह किया। धर्म और वास्तु को ७ पुत्र रतन की सिद्धि प्राप्त हुई। जिसमें से आखिर और ७ वे पुत्र का नाम था, वास्तु जो कला में पारंगत थे। इन्हीं वास्तु के पुत्र थे, विश्वकर्मा जिनकी शिल्पकला पुरे विश्व में अद्वितीय थी।
पूजा विधि – कोई भी पूजा सुबह प्रातः कल में स्नान करके ही आरम्भ होती है। यह पूजा आपको अपनी अर्धांगिनी के साथ करना चाहिए। अपनी पत्नी के साथ मिलकर यज्ञ में सम्मिलित होना चाहिए। हाथ में चावल ग्रहण कर विश्कर्मा जी को स्मरण करते हुए इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए ” ॐ आधार शक्तपे नम: और ओम् कूमयि नम: ओम अनन्तम नम:, पृथिव्यै नमः या ॐ श्री श्रिष्टनतया सर्वसिद्धहया विष्वकर्माया नमो नमः ”
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पूजा सामग्री में धूपबत्ती , दीपक , सुपारी , फूल , गंध तिलक आदि का प्रयोग किया जाना चाहिए। पूजा स्थल पर जल से भरा हुआ कलश रखना चाहिए। विश्वकर्मा जी की मूर्ति या तस्वीर को स्थात्पित कर उनकी पूजा करना चाहिए। इसके बाद जितने भी औज़ार मशीने हैं, उनकी पूजा करनी चाहिए। यज्ञ समापत होने के पश्चात्त प्रसाद का वितरण किया जाना चाहिए।
यह पूजा का फल हर एक को मिलता है, लेकिन जब व्यापारी इस पूजा को करते हैं. उसे धन धान्य की प्राप्ती होती है और उसके कारोबार में अपार वृद्धि होती है।
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