ऐसी मान्यता है कि अश्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था। भगवान विश्वकर्मा के जन्मदिन को विश्वकर्मा पूजा के रूप में मनाया जाता है। पर एक दिलचस्प बात यह है कि विश्वकर्मा पूजा कब मनाई जाती है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप भारतवर्ष में कहाँ मना रहे हैं।
भारत के पूर्वी प्रदेशों (असम, बिहार, बंगाल, त्रिपुरा, ओड़ीशा) में विश्वकर्मा पूजा हर वर्ष 17 सितंबर को मनाई जाती है, और इस वर्ष भी 17 सितंबर 2018 को मनाई जाएगी। अब सोचने की बात यह है कि इस हिन्दू पर्व को अंग्रेज़ी कलेंडर की तारीख के अनुसार क्यों मनाया जाता है?
विश्वकर्मा पूजा के दिन की गणना सूर्य के पारगमन के आधार पर की जाती है, जबकि अन्य हिन्दू पर्वों के दिन की गणना चाँद के आधार पर होती हैं (चंद्र कलेंडर)।
विश्वकर्म पूजा को भाद्रपद मास के आखरी दिन मनाया जाता है, या जिसे आप भाद्र संक्रांति भी बोल सकते हैं। दो प्रमुख बांग्ला पंचांगों (सूर्यसिद्धांत और विशुद्धिसिद्धांत) के अनुसार यह दिन लगभग हर वर्ष 17 सितंबर को ही पड़ता है, इसलिए 17 सितंबर को एक फिक्स डेट की तरह मान लिया गया है।
भारत के पूर्वी प्रदेशों को छोड़ कर बाकी देश में विश्वकर्मा पूजा धनतेरस के अगले दिन मनाई जाती है।
शिल्प कला यानी कि भवन और वस्तु निर्माण कला के बिना मनुष्य समाज का विकास असंभव है। आदि काल से आधुनिक युग तक मनुष्य ने जितनी भी तरक्की की है, उसमें शिल्प कला का सबसे महत्वपूर्ण योगदान रहा है। भगवान विश्वकर्मा को देवताओं के शिल्पकार के रूप में जाना जाता है।
कहा जाता है कि भगवान कृष्ण की नगरी द्वारका और रावण की नगरी लंका से लेकर भगवान् विष्णु के सुदर्शन चक्र और भगवान शंकर के त्रिशूल तक का निर्माण विश्वकर्माजी ने किया था। इतना ही नहीं, पांड्वो की नगरी इन्द्रप्रस्थ, महाभारत काल का हस्तिनापुर और पूरी धाम का जगन्नाथ मंदिर भी विश्वकर्माजी ने ही बनाया था।
ऐसा माना जाता है कि भगवान विश्वकर्मा की पूजा से शिल्प-कला और इससे जुड़े ज्ञान व कौशल का विकास होता है। यही कारण है कि सभी फैक्ट्रियों, कारखानों, वर्कशाप, सर्विस सेंटर आदि में विश्वकर्मा पूजा बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। बुनकर, कारीगर, इंजीनियर, म्हिस्त्री, मजदूर, शिल्पकार और औद्योगिक घरानों के लिए यह एक बहुत बड़ा पर्व होता है।
इसके अलावा इस दिन सभी प्रकार के वाहनों की भी पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन वाहनों की पूजा करने से वे सुरक्षित रहते हैं और उन्हें किसी प्रकार की क्षति नहीं पहुँचती।
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विश्वकर्मा पूजा वाले दिन सुबह जल्दी उठकर नहाने के बाद पूजा शुरू करें। सबसे पहले एक चौकी पर भगवान विश्वकर्मा की फोटो या मूर्ति स्थापित करें। भगवान् विश्वकर्मा को पुष्प, माला, सुगंध आदि अर्पित करें। धूप और दीपक जलाएं। भगवान विश्वकर्मा को मिठाई और फल का भोग लगाएं।
इसके बाद औजारों और यंत्रों की पूजा करें। अपने औजारों, यंत्रों, मशीन आदि को जल, रोली, अक्षत, फूल और मिठाई अर्पित कर उनकी पूजा करें। इसके बाद विधिवतक हवन करें। औजारों की पूजा करने से पहले भली-भाँती उनकी साफ़-सफाई ज़रूर कर लें और ज़रूरत हो तो उनका रंग-रोगन भी करवा लें।
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