हिंदी फिल्मों का एक मशहूर डायलाग है, “बेटा, ये तो ख़ुशी के आँसू हैं।” लेकिन सच तो यह है कि यह सिर्फ एक फ़िल्मी डायलाग न होकर, यथार्थ भी है। जब हम बहुत खुश होते हैं या कभी -कभी बहुत ज्यादा हंसने पर भी हमारी आँखों से आँसू निकल आते हैं।
सोचने वाली बात यह है कि ऐसा क्यों होता है कि ख़ुशी में भी आँसू निकल आते हैं। आपने देखा होगा कि किसी खेल का आनंद ले रहे दर्शक अपनी पसंदीदा टीम के हारने पर रोने लगते हैं तो वहीं जीतने वाली टीम के खिलाड़ी भी खुशी से रो पड़ते हैं। अर्थात हम यह कह सकते हैं कि ख़ुशी हो या गम, आंसूओं का हमारी संवेदना के साथ बेहद गहरा संबंध है।
आँखों में आंसू आने के पीछे मुख्यतः किसी भी भावना की अधिकता को माना जाता है। यह आपको साधारण अवस्था में लाने के लिए अतिरिक्त ऊर्जा को शरीर से बाहर निकालने का साधन है।
इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी है जिसके अनुसार हमारी आँखों के आसपास अनेक ग्रंथियां होती हैं। जब इंसान बहुत खुश होता है, तब अतिरिक्त भावनाओं के कारण चेहरे की कोशिकाओं पर दबाव पड़ता है और इस दबाव की वज़ह से इंसान की आँखों से आँसू निकल पड़ते हैं।
यही वजह है कि जब भी अधिक पीड़ा या दुःख होता है तो हम अपने आंसूओं को रोक नहीं पाते हैं। यह स्थिति तब भी होती है जब हम ज्यादा खुश होते हैं और खुशी के मारे हम रोने लगते हैं। कई लोगों के आंसू तो अधिक गुस्से के समय भी फूट पड़ते हैं।
इसके अलावा कुछ होर्मोनेस भी ऐसे हैं जो आँखों से आँसू निकलने की वज़ह हैं। बहुत अधिक खुश होने पर या दुखी होने पर शरीर में कॉर्टिसोल और एड्रिनालाइन नामक हॉर्मोन्स का स्त्राव होता है जो आंसुओं के लिए ज़िम्मेदार होते हैं।
रोना हमारे लिए फायदेमंद भी होता है। 6 महीनों में कम से कम एक बार रोने वाले लोग मानसिक रूप से न रोने वाले लोगों की अपेक्षा अधिक स्वस्थ रहते हैं।
हमारी कामना है कि आपकी आंखों से जब भी आंसू निकले उनकी वजह हमेशा खुशी ही रहे।
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