चंद्र और सूर्य ग्रहण सुनकर हर कोई थोड़ा घबरा जाता है और बात जब गर्भवती महिलाओं की हो तो घरवालों के लिए और चिंताजनक हो जाता है . घर के लोग सबसे पहले ग्रहण का समय जानकर गर्भवती महिला को बताते है और उन्हें बाहर जाने, तेज़ धार की चीज़ो से दूर रहने इत्यादि चीज़ो से रोकते है.
हालांकि विज्ञान में अभी तक ये बात सिद्ध नहीं हुई है, कि सूर्य ग्रहण से गर्भवती महिला को कोई हानि पहुँचती है, मगर सारे धर्म के लोग मानते है, तो कही न कही इनके पीछे वैज्ञानिक तर्क ज़रूर होगा.
सूर्यग्रहण के दौरान की कुछ अन्धविश्वास से भरी प्रथाएँ जिनसे गर्भवती महिलाओं को गुज़रना पड़ता है. वे इस प्रकार है :
1. ग्रहण के वक्त चाकू, छूरी धारदार चीज़े नहीं इस्तेमाल करना चाहिए. बच्चे के होठ कट जाते है.
2. ग्रहण के वक्त सूर्य की किरणें बदलती है , हज़ार सूक्ष्म जीवाणु मरते और पैदा होते हैं,तो पानी दूषित हो जाता है.
3. ग्रहण के वक़्त बाहर नहीं निकलते.
4. ग्रहण के वक्त सूई का प्रयोग करने से बच्चे के हृदय में छेद हो जाते है.
5. ग्रहण के बाद स्नान करना चाहिए अन्यथा बच्चे को बीमारी हो सकती है.
सवाल ये है, कि ये अदभुत प्रक्रिया का मज़ा लेना चाहिए ,तो इसके बीच हमारी परम्पराएं और अंधविश्वासी ढकोसले आ जाते हैं, क्या ये सही है ? ऐसे किसी भी मान्यता का वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है, जो ये साबित कर सके, कि इन सुझावों से बच्चे को कुछ नहीं होगा.जब वो नन्ही जान दुनिया में ही नहीं आई है और उसके साथ जो भी होगा वो वो तो जेनेटिक्स के प्रक्रिया में होगा .अब इसमें भला सूर्य देव का क्या दोष ?
लोगो को ये समझना होगा, कि ये सब मात्र ढकोसले है और इत्तेफाक से अगर उनकी कोई बात सिद्ध भी होती है, तो उसके पीछे विज्ञान होगा उनकी द्वित्य मानसिकता नहीं.ग्रहण को लेकर बहुत सारी गलत धारणाएं हैं, जिनका शायद विज्ञान से कोई ताल्लुक न हो .घरवाले तो बस पीछे ही पर जाते है.
यद्यपि उनका मकसद जच्चा और बच्चा की सुरक्षा है,मगर वो नहीं समझते इनसे समाज में अन्धविश्वास और फैलता है . मगर जब बात बच्चे की हो तो माँ हर कमी को पूरा करती है .भले ही अन्धविश्वास फैले , बच्चे की सुरक्षा के लिए माँ हर तरह के कष्ट उठती है. चाहे कुछ भी क्यों न हो .२-४ घंटे के लिए कष्ट उठा लेती है, क्योंकि एक माँ के लिए उसका बच्चा ही उसकी दुनिया है.
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