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सोमवती अमावस व्रत और पूजा विधि

सोमवार को भगवान शिव का प्रिय दिन माना जाता है। जब भी अमावस्या सोमवार के दिन आती है, तो उसे सोमवती अमावस के नाम से जाना जाता है और उसका हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है।

ज्येष्ठ आषाढ़ अर्थात जून-जुलाई में आने वाली यह अमावस्या साल में केवल एक बार आती है। इस शुभ दिन पर विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लम्बी उम्र के लिए व्रत रखा जाता है और पीपल के वृक्ष की पूजा की जाती है। यह अमावस का व्रत समस्त दुखों को नष्ट करने वाला और धन-धान्य से परिपूर्ण करने वाला माना जाता है।

क्यों अविवाहित महिलाओं या कन्याओं को शिवलिंग छूने से माना किया जाता है? 

आइए जानते हैं कि इस व्रत को करने की विधि और इसका महत्व क्या है?

सोमवती अमावस व्रत और पूजा विधि

सोमवती अमावस के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर किसी पवित्र कुंड में स्नान करने जाएं। तत्पश्चात सूर्य और तुलसी को जल अर्पित करते हुए गायत्री मंत्र का उच्चारण करें।  तुलसी की 108 बार परिक्रमा करें और जल को शिव भगवान को अर्पित कर दें।

आवश्यक पूजन सामग्री

• कच्चा लाल धागा,
• धूप,
• दीपक,
• फल,
• चना,
• रोली,
• सिन्दूर,
• जल का कलश,
• कुंकुम,
• अगरबत्ती,
• पुष्प,
• कच्चा दूध,
• शक्कर,
• शुद्ध घी,
• दही,
• मेंहदी,
• मिठाई,
• गंगाजल,
• चंदन,
• चाँवल,
• मिट्टी,
• रुई,
• कपूर,
• गेहूँ,
• हल्दी,
• शहद,
• काला तिल,
• पान,
• धान

नियमानुसार पूजा की विधि

प्रातःकाल जल्दी उठकर, हो सके तो अपने घर के नजदीक किसी नदी में स्नान करें। अगर आप किसी बड़े शहर में हैं, या अन्यतः नदी से दूर, तो कोई बात नहीं। अपने स्नानघर में नहा कर थोड़ा सा गंगाजल स्वयं पर छिड़क लें।

स्नान के पश्चात सूर्यदेव को जल चढ़ाएँ, फिर आँगन में लगे तुलसी के पौधे को भी जल दें और शिवजी की प्रतिमा को प्रणाम कर दिन की शुरुआत करें।

अपने नजदीक किसी पीपल के पेड़ के पास तुलसीजी को लेकर जाएँ । पूजन सामग्री में दूध, दही, रोली, चन्दन, अक्षत, माला, दीपक, हल्दी, काला तिल, पान, धान आदि का प्रयोग करें। समस्त सामग्री को पीपल देव और तुलसी माता को अर्पित कर पूजन विधि संपन्न करें।

अब लाल धागा लेकर उसे पीपल के वृक्ष पर लपेटते हुए 108 बार परिक्रमा करें। इस दिन 108 सुहाग के या खाने के सामानों को पीपल को अर्पित कर कन्याओं को उनका दान करने का भी विशेष महत्व है।

पूजन विधि संपन्न कर खीर, पूरी आदि बनाकर पितरों को अर्पित करें और फिर ब्राह्मणों को भोजन कराएं। अब दान-दक्षिणा आदि प्रदान कर अपना व्रत खोलें। इस प्रकार यह परम व्रत समस्त सुखों को देने वाला और अत्यधिक फलदायी है। पूरी श्रद्धा और विश्वास से यह व्रत संपन्न करने से भगवान शिव और भगवान हरि की कृपा आप पर बनी रहेगी।

Shalu Mittal

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