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सूर्य ग्रहण कब, क्यों और कैसे होता है?

प्राचीन काल में, जब सूर्य या चंद्र ग्रहण लगता था, तब यह माना जाता था कि राहू और केतू नाम के दो राक्षस सूरज और चाँद को निगल जाते हैं! इस कारण कभी सूरज तो कभी चाँद दिखाई देना बंद हो जाते हैं। जबकी खगोलशास्त्रियों ने इस धारणा को निर्मूल सिद्ध करते हुए ग्रहण का वैज्ञानिक कारण स्पष्ट किया।

सूर्य ग्रहण कैसे होता है?

ब्रह्मांड में सूर्य एक खगोलीय पिंड है, जो विभिन्न ग्रहों के साथ अपने कक्ष में घूर्णन कर रहा है। इस प्रक्रिया में जब एक खगोलीय पिंड किसी दूसरे खगोलीय पिंड के साथ एक पंक्ति में आ जाता है, तब पीछे वाला पिंड छिप जाता है। यह स्थिति ग्रहण की कहलाती है।

इस व्याख्या के आधार पर सूर्य के घूमते रहने पर चंद्रमा की छाया, पूर्ण या आंशिक रूप से सूर्य पर पड़ने लगती है। इस अवस्था में सूर्य का प्रकाश बाधित हो जाता है। यह स्थिति सूर्य ग्रहण की कहलाती है।

 

सूर्य ग्रहण क्यों होता है?

वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि ब्रह्मांड में सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी अपनी-अपनी धुरी पर एक निर्धारित मार्ग पर चक्कर लगाते रहते हैं। इस प्रक्रिया में एक स्थिति ऐसी आती है जब यह तीनों ग्रह इसी प्रकार चक्कर लगाते हुए एक सीधी रेखा में आ जाते हैं। इस समय सूर्य व पृथ्वी के बीच चंद्रमा आ जाता है तब पृथ्वी पर सूर्य का आने वाला प्रकाश रुक जाता है। यह स्थिति सूर्य ग्रहण की कहलाती है।

सूर्य ग्रहण के प्रकार:

वैज्ञानिक रूप से सूर्य ग्रहण तीन प्रकार के होते हैं:

1. पूर्ण सूर्य ग्रहण:

जब सूर्य और पृथ्वी के बीच चंद्रमा की स्थिति इस प्रकार की होती है जिससे वह सूर्य के प्रकाश को पूरी तरह से अवरुद्ध कर देता है, तब यह स्थिति पूर्ण सूर्य ग्रहण की कहलाती है। पूर्ण सूर्य ग्रहण के समय पृथ्वी पर रात्रि जैसा अंधकार हो जाता है।

2017 के सूर्य ग्रहण का एक कलात्मक चित्र, फोटो श्रेय: द न्यूयार्कर

भारत में अलग-अलग समय पर लगने वाले पूर्ण सूर्य ग्रहण अब तक ग्यारह बार लग चुके हैं। दिन के अलग-अलग पहर और देश के विभिन्न हिस्सों में सूर्य ग्रहण निम्न तिथियों पर दिखाई दिये थे:

7 जुलाई 1814
19 नवम्बर 1816
21 दिसम्बर 1843
18 अगस्त 1868
12 दिसम्बर 1871
22 जनवरी 1898
21 अगस्त 1914
30 जून 1954
16 फ़रवरी 1980
24 अक्टूबर 1995
11 अगस्त 1999

पूर्ण सूर्य ग्रहण प्रथ्वी के बहुत कम क्षेत्र में देखा जा सकता है। वैज्ञानिकों के अनुसार केवल सात मिनट तक की अवधि में ही सूर्य के प्रकाश को अवरुद्ध माना जाता है।

2. खग्रास सूर्य ग्रहण:

जब चंद्रमा द्वारा सूर्य के प्रकाश को आंशिक रूप से अवरुद्ध किया जाता है तब यह स्थिति आंशिक या खग्रास सूर्य ग्रहण की कहलाती है। इस समय सूर्य का कुछ भाग ग्रहण से अप्रभावित रहता है।

3. वलयाकार सूर्य ग्रहण:

वलयाकार या कंगन सूर्य ग्रहण प्रकृति की अधभूत घटना मानी जाती है। खगोलीय दृष्टि से जब चंद्रमा सूर्य को बीच के भाग से ढ़क लेता है, तब पृथ्वी पर सूर्य का प्रकाश गोलाकार रूप में पहुंचता है। इस समय पृथ्वी से सूर्य एक कंगन या अंगूठी के आकार का प्रतीत होता है। इसी कारण इसे वलयाकार ग्रहण कहा जाता है।

न्यू मेक्सिको में 2012 में वलयाकार सूर्य ग्रहण का चित्र। फोटोग्राफर: कोलीन पींसकी, फोटो श्रेय: नासा

सूर्य ग्रहण कब होता है?

खगोलशास्त्र ज्ञाताओं का मानना है कि हर आठ वर्ष, अठारह दिन के बाद लगभग इकतालीस सूर्य ग्रहण होते ही हैं। इसके अतिरिक्त कई बार एक वर्ष में लगभग 5 सूर्यग्रहन तक दिखाई दे सकते हैं। कुछ विद्धवानों का यह भी मानना है कि एक वर्ष में दो सूर्यग्रहण तो अवश्य ही होने चाहिएँ।

2019 के सूर्य ग्रहण

वर्ष 2019 में लगने वाले सूर्य ग्रहण की संख्या तीन है। पहला सूर्य ग्रहण 6 जनवरी के दिन होगा। यह आंशिक सूर्य ग्रहण जिसका भारत में कोई असर नहीं होगा। फिर भी भारतीय समय के अनुसार यह ग्रहण सुबह 5 बजकर 6 मिनट से शुरू होकर 9 बजकर 18 मिनट तक रहेगा।

इसके अतिरिक्त दूसरा सूर्यग्रहण 2 जुलाई को है जो एक पूर्ण सूर्य ग्रहण है। यह ग्रहण भी भारत में नहीं दिखाई देगा। इसका आरंभ भारतीय समय के अनुसार रात 11 बजकर 31 मिनट पर होगा और यह सुबह 2 बजकर 15 मिनट तक चलेगा।

वर्ष 2019 का तीसरा और अंतिम सूर्य ग्रहण वर्ष के अंत में , 26 दिसंबर को होगा। यह ग्रहण भारतीय समय के अनुसार 8 बजकर 17 मिनट से लेकर 10 बजकर 57 मिनट तक चलेगा। यह ग्रहण वलयाकार सूर्य ग्रहण है जो भारत में दिखाई देगा।

सूर्य ग्रहण बेशक एक खगोलीय घटना है, लेकिन इसका वैज्ञानिक, धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व होने के कारण प्रत्येक व्यक्ति इसका अपनी ओर से अध्ययन व नियम का पालन करता है।

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Charu Dev

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