धर्म और संस्कृति

सीता और राम (सियाराम) विवाह से जुड़े कुछ अनजाने तथ्य

हिन्दू धर्म में अयोध्या राजकुमार राम को आदर्श पुत्र, भाई व राजा होने के साथ ही आदर्श पति भी माना जाता है। इन्हीं श्री राम का जनक दुलारी सीता, जिन्हें मैथिली भाषा में सिया कुमारी भी कहते हैं, के साथ विवाह के बारे में कुछ ऐसे तथ्य हैं जिन्हें अधिकतर लोग नहीं जानते हैं। इस लेख में सिया-राम विवाह से जुड़े कुछ अनजाने तथ्यों पर प्रकाश डाला गया है।

सीता और राम का विवाह कब हुआ था?

हिन्दू धर्म में पंचांग देखकर ही सभी शुभ कार्य किए जाते हैं। इसी पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष (दिसंबर) के महीने में शुक्ल पक्ष की पाँचवी तिथि अथार्थ पंचमी को सिया-राम का शुभ विवाह सम्पन्न हुआ था। इसीलिए इस तिथि को विवाह पंचमी भी कहा जाता है।

सियाराम का विवाह कैसे हुआ था?

मिथिलानरेश राजा जनक की पुत्री सीता अत्यंत रूपवती, गुणवति और सौंदर्य की स्वामिनी थीं। सुकुमारी सिया के शारीरिक बल का पता उनके पिता को उस समय हुआ जब बचपन में सीता ने खेल ही खेल में भगवान शिशु के धनुष को उठा लिया था।

इसी कारण सीता के विवाह योग्य होने पर विवाह करने के लिए राजा दशरथ ने यह घोषणा करी कि उसी बलशाली युवक को अपना दामाद बनाएँगे जो इस धनुष की प्रत्यंचा चढ़ा देगा। दशरथ द्वारा रचाए स्वयंवर में अनेक राजाओं और राजकुमार ने अपने बल की आजमाइश की, लेकिन सफलता केवल अयोध्या के राजकुमार राम को मिली। इस प्रकार देवताओं के आशीर्वाद से जनकदुलारी सीता का विवाह अयोध्या राजकुमार राम से हो गया।

विवाह-पंचमी पर विवाह क्यों नहीं होते?

धार्मिक दृष्टि से सिया-राम का विवाह एक आदर्श विवाह माना जाता है। लेकिन व्यवहारिक दृष्टि से यह एक असफल विवाह था, जहां पति-पत्नी को वैवाहिक सुख नहीं मिला था। इस भ्रम के पीछे यह माना जाता है कि इस तिथि पर सिया-राम का विवाह होने के बाद दोनों ही विवाह सुख से लगभग वंचित ही माने जाते हैं।

विवाह होने के तुरंत बाद सीता राम के साथ उनके वचन पूर्ति के लिए वन चली गईं थी। इस प्रकार एक राजपुत्री और राजरानी को नंगे पाँव जंगलों में भटकते हुए रावण से हरे जाने का दुख का सामना करना पड़ा था । इसके बाद एक साधारण व्यक्ति द्वारा शक किए जाने पर उन्हें गर्भावस्था  में ही पति के त्याग को झेलना पड़ा था। इसलिए माता-पिता अपनी संतान के विवाह के लिए विवाह पंचमी का चयन नहीं करते हैं। क्योंकि वे इस तिथि को विवाह करने की दृष्टि से  अशुभ मानते हैं। भारत में ही नहीं नेपाल में भी यह दिन विवाह के लिए शुभ नहीं माना जाता है।

विवाह पंचमी पर क्या करें?

ऐसी मान्यता है कि विवाह पंचमी पर विवाह योग्य युवक-युवती और वैवाहिक युगल ईश्वर से कुछ इस प्रकार के वरदान मांग सकते  हैं :

1. विवाह पंचमी पर सिया-राम की पूजा करने से उनके विवाह में आने वाली सभी बढ़ाएँ दूर हो जाती हैं।

2. कंवारि कन्याएँ अपने लिए इच्छित वर और युवक अपनी इच्छित वधू के लिए विवाह-पंचमी पर पूजा करते हैं।

3. वैवाहिक युगल इस दिन विधि पूर्वक पूजा करके घर में कलह को शांत कर सकते हैं।

4. विवाह पंचमी के दिन श्री राम और माता सीता की संयुक्त रूप से पूजा करके पति-पत्नी उनके जैसे ही परस्पर प्रेम और आदर की कामना करते हैं

5. पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन बाल कांड में वर्णित विवाह प्रसंग को पढ़ना शुभ होता है।

हिन्दू धर्म में विवाह पंचमी को गृहस्थ जीवन का सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है। देश-विदेश में मनाई जाने वाली यह तिथि एक पर्व के रूप में सभी मंदिरों में धूम-धाम से मनाया जाता है।

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Charu Dev

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