यह सोलहवी शताब्दी पूर्व की बात है। सिंधु नदी के किनारे बसने वाले खत्री समुदाय के लोगों ने अजरक कला की शुरुआत की। वैसे तो यह इलाका अब पाकिस्तान में पड़ता है, पर सोलहवी शताब्दी में कच्छ के महाराजा ने इस कला को पहचाना। राजा के बुलाने पर अजरक कला में हूनर रखने वाला यह समुदाय कच्छ में रहने लगा।
अजरक कला में ब्लॉक प्रिंट का इस्तेमाल होता है। शाक-सब्जियों से श्रोत किए हुए प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। इन रंगों से जो ब्लॉक प्रिंट कर वस्त्र तैयार किए जाते हैं, उन्हीं वस्त्रों को ‘अजरक’ कहा जाता है।
अजरक कला आज भी कच्छ और आसपास के गुजरात और राजस्थान के क्षेत्रों तक ही सीमित है। कच्छ में ही अजरकपुर नाम की एक बस्ती है, और अजरक के जो भी वस्त्र आप बाज़ार में देखेंगी, उनमें से अधिकतर इसी गाँव के कलाकारों के हुनर का ही उदाहरण है। चलिये, अब आपको अजरक से बने दस सुंदर कुर्ते दिखाते हैं।
है न सुंदर? बस एक सावधानी बरतिएगा। क्योंकि इन अजरक कुर्तियों में प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल हुआ है, इन्हें अलग से ही धोइएगा।
अजरक के वस्त्रों में आको नीले रंग का खूब इस्तेमाल दिखेगा। क्योंकि अजरक, यह नाम आया ही है फारसी के एक शब्द से, जिसका अर्थ है ‘नीला’।
सिंध में आज भी जब कोई खास मेहमान घर पर आता है या किसी का सम्मान करना होता है, तो उन्हें एक ‘अजरक टोपी’ पहनाई जाती है। सिंध की इस पुरानी और खूबसूरत कला को अब कुर्तियों में भी उतारा गया है ताकि आप भी इस कला को अपने जीवन का हिस्सा बना पाएँ।
क्या आप भी किसी ऐसी वस्त्र-कला के बारे में जानते हैं जो विलुप्त हो रही है या जिसके बारे में अभी भी बेहद कम लोगों को ही पता है। कममेंट्स के माध्यम से हमें बताइये। फिर हम उस कला की जानकारी देश भर की महिलाओं तक पहुंचाएंगे।
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