सिख धर्म का इतिहास तप, त्याग, और बलिदान जैसे शब्दों से ही जाना जाता है। सिख धर्म के बारे में अगर विस्तार से जानना हो तो उनके 10 गुरुओं के बारे में जान लीजिये। असल में सिख शब्द ही शिष्य शब्द से उत्पन्न हुआ है, जो व्यक्ति अपने गुरु के वचनों का पालन करता है वो सिख है।
इस आर्टिकल में आपको सिख धर्म के 10 गुरुओं के बारे में संपूर्ण जानकारी मिल जाएंगी।
मेहता कालू जी के सुपुत्र श्री गुरु नानक देव जी महाराज का जन्म कार्तिक पूर्णिमा को रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी गांव में 15 अप्रैल 1469 को हुआ था। यह सिख धर्म के संस्थापक होने के साथ- साथ धर्म प्रचारक भी थे। इन्हें गुरु नानक, बाबा नानक, गुरु नानक देव जी एवं नानक शाह नाम से भी जाना जाता है। तिब्बत में इन्हें नानक लामा भी कहा जाता था। आध्यात्मिक गुरु होने के साथ-साथ गुरु नानक देव जी बहुत अच्छे कवी भी थे .इनकी भाषा थी बहता नीर। जिसमें आपको पंजाबी, ब्रजभाषा ,खड़ी बोली जैसी कई भाषाओं का मिश्रण मिल जायेगा।
गुरुनानक देव जी ने अपने शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। इसके बाद उनका नाम गुरु अंगद देव जी पड़ गया। उनका जन्म 31 मार्च 1504 को हुआ था। गुरु गद्दी इन्हें 17 सितम्बर 1539 को प्राप्त हुई। इनके पिताजी एक साधारण व्यापारी श्री फेरु जी थे। इन्होंने गुरु नानक देव जी के विचारों को लिखित एवं मौखिक रूप में प्रचार प्रसार किया एवं पंजाबी लिपि में कुछ वर्णों का फेरबदल करके गुरमुखी लिपि को प्रस्तुत किया था।
तेजभान जी और माता बख्ता कौर जी के पुत्र श्री गुरु अमरदास जी का जन्म 5 मई 1479 को बसर्के नामक गांव में हुआ था। गुरु अमरदास जी ने लंगर प्रथा को स्थापित किया था। स्त्रियों पर हुए अत्याचार कम करने के लिए इन्होंने सती प्रथा का कड़ा विरोध किया और विधवा विवाह को बढ़ावा देने के लिए प्रचार किया।
गुरु श्री रामदास जी का जन्म 24 सितंबर 1534 को हुआ था। उन्होंने पंजाब में रामसर नामक एक पवित्र शहर को बसाया था, जिसे आज हम अमृतसर के नाम से जानते हैं। गुरु रामदास जी का विवाह श्री गुरु अमरदास जी की पुत्री बीबी भानी से हुआ था इसलिए वह हमेशा गुरु अमर दास जी की सेवा में लगे हुए रहते थे। हमेशा लंबे प्रवासों पर उनके साथ रहते थे ।तत्पश्चात गुरु अमरदास जी ने उन्हें ग्रुप उपाधि प्रदान की।
15 अप्रैल 1563 को गुरु अर्जन देव जी का जन्म हुआ था।गुरू अर्जुन देव जी को शहीदों के सरताज एवं शान्तिपुंज भी कहा जाता है।भाई गुरदास की सहायता से गुरूजी ने 1604 में गुरु ग्रंथ साहिब जी का संपादन किया। सुखमनी साहिब उनकी वाणी की रचना है ,जो असंख लोगो द्वारा रोज़ पड़ी और सुनी जाती है ताकि वह अपना मन शांत कर सकें।
19 जून गुरु की वडाली पंजाब में इनका जन्म हुआ इनकी शिक्षा दिखा बाबा बुडडा सिंह जी के देख रेख में हुई थी। इन्होंने अकाल तख्त का निर्माण किया और यह युद्ध में शामिल होने वाले पहले गुरु थे।
इनका जन्म 16 जनवरी कीरतपूर साहिब पंजाब में हुआ था।उन्हें 14 वर्ष की आयु में ही गुरु गद्दी अपने दादाजी द्वारा सौंप दी गई थी।माता कृष्ण कौर से इनका विवाह हुआ और इनके दो बच्चे थे बाबा राम राय और गुरु हरकिशन देव जी।
गुरु हरकिशन देव जी का जन्म 7 जुलाई को किरतपुर साहिब में हुआ । गुरु जी जब दिल्ली में थे, तब वहाँ भयंकर महामारी फैली हुई थी। उन्होंने असंख्य लोगों का इलाज बिना किसी जाती भेद के किया। वहाँ के मुस्लमानों ने उनकी इस बात से प्रभावित होकर उनका नाम बाला पीर रख दिया।
गुरु तेग बहादुर जी का जन्म 1 अप्रैल को हुआ था। धर्म की लड़ाई के लिए उन्होंने अपना शीश त्याग दिया। जब औरंगजेब के अत्याचारों से कश्मीरी पंडित गुरूजी के पास आये तब उन्होंने धर्म के लिए यह अद्वितीय बलिदान दिया। जहाँ यह सब हुआ था, वहाँ आज गुरुद्वारा शीश गंज साहिब मौज़ूद है.
गुरु जी का जन्म 22 दिसम्बर 1666 में हुआ था। अध्यात्म का ज्ञान होने के साथ साथ गुरूजी एक बहुत अच्छे कवी भी थे। इन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की और अपनी एक सेना बनाई ताकि वह अत्याचारी मु गल सेना से निर्बल लोगों की सहायता कर सके।
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