एक बार की बात है। एक राजा भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त हुआ करते थे। वे अपनी प्रजा की सुख और समृद्धि के लिए सदैव भगवान शिव की पूजा-अर्चना में लीन रहते थे। परंतु उनकी बहुत सारी पूजा-अर्चना के बाद भी उनकी प्रजा में सुख और समृद्धि वापस नहीं आ पा रही थी। राजा इस बात से बहुत दुखी रहते थे।
जब बहुत सारी मन्नतों और पूजा-अर्चना के बाद भी उनके राज्य में खुशहाली वापस नही लौटी, तब अंततः वे अपने कुलगुरु के पास पहुंचे और उन्हें अपनी समस्याओं से अवगत कराया।
कुलगुरु ने उनकी बातें बहुत ध्यान से सुनीं और उनसे कहा, “राजन! आपकी पूजा की विधि में ही कुछ कमी है, इसी वजह से आपकी प्रजा में खुशहाली वापस नहीं लौट रही।” उन्होंने कहा, “हे राजन! कल मैं आपके घर आऊंगा और आपको शिवजी की पूजा करने की सही विधि बताऊंगा।”
अगले दिन कुलगुरु पूजा के समय राजा के घर आये और उन्हें भगवान शिव के पूजा की 5 मुख्य बातें बतायीं जो कि इस प्रकार हैं:
भगवान शिव की पूजा अर्चना के समय शंख का प्रयोग बिल्कुल न करें। कुलगुरु ने बताया कि शंखचूड़ नामक राक्षस भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था। एक बार वह कैलाश पर्वत से गुज़र रहा था, तभी उसकी नज़र माँ पार्वती पर पड़ गयी।
माँ पार्वती की सुंदरता देख कर वह पागल हो गया और उन्हें अपनी दासी बनाने के सपने देखने लगा। जब यह बात भगवान शिव को पता चली तो उन्हें बहुत क्रोध आया और उन्होंने शंखचूड़ का वध कर दिया। तभी से भगवान शिव की पूजा में शंख का उपयोग नही किया जाता है।
कुलगुरु ने बताया कि तुलसी माता को भगवान विष्णु ने अपनी पत्नी का दर्जा दिया है, इसीलिए तुलसी का प्रयोग न ही भगवान शिव की पूजा में किया जाता है और न ही भगवान शिव के प्रसाद में तुलसी का पत्ता मिलाया जाता है।
ऐसा भी माना जाता है कि तुलसी पूर्व जन्म में शंखचूड़ की पत्नी थी । इसलिए तुलसी का प्रयोग भी भगवान विष्णु की पूजा में ही किया जाता है।
➡ सावन के महीने में शिव भक्तों को इन शाकाहारी पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए
कुछ लोग अज्ञानतावश कुमकुम और हल्दी का प्रयोग शिव जी को तिलक लगाने के लिए कर देते हैं, जबकि ऐसा नहीं करना चाहिए। शिवजी के लिए चन्दन का प्रयोग किया जाना ज्यादा उचित रहता है।
ज्यादातर मन्दिरों में देखा जाता है शिवभक्त शिवलिंग पर जल चढ़ाने के बाद उसकी परिक्रमा करना शुरू कर देते हैं, जबकि ऐसा नहीं करना चाहिए । इससे भगवान शिव नाराज़ होते हैं। शिवलिंग की परिक्रमा करने का सही तरीका नीचे चित्र में देखिये ⇓
हिन्दू शास्त्रों और शिव पुराण के अनुसार शिवजी की आधी-परिक्रमा ही करनी चाहिए। शिव को ‘आदि’ और ‘अनंत’ दोनों माना जाता है – अतार्थ कि श्रीष्ठि में हर वस्तु या क्रिया की शुरुआत भी शिव है, और अंत भी शिव।
ऊपर दिये शिवलिंग का चित्र देखिये। चित्र में जो शिवलिंग का दाहिना हिस्सा है, उसे निर्मिली कहा जाता है – यह शिवलिंग का अत्यंत सशक्त और सबसे पुण्य हिस्सा है। शिव भक्त को इसलिए कभी भी निर्मिली को पार नहीं करना चाहिए।
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➡ क्यों शिवलिंग अपने घर पर नहीं रखना चाहिए?
ऐसा माना जाता है कि केतकी का फूल बाबा भोलेनाथ द्वारा श्रापित है। इसीलिए उनकी पूजा में केतकी के फूल का प्रयोग निषिद्ध है।
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इस प्रकार कुलगुरु ने राजा को भगवान शिव की पूजा की विधियों की 5 मुख्य बातें बतायीं। राजा ने अपने कुलगुरु के बताए तरीकों से शिवजी की पूजा-अर्चना करनी शुरू कर दी और कुछ ही दिनों में उनके राज्य में खुशहाली वापस लौट आयी।
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