भारत में प्राचीन समय से सत्यनारायण व्रत कथा एवं पूजन का विशेष महत्व माना जाता रहा है। भगवान विष्णु के सत्य सवरूप की यह कथा कष्ट निवारक और मोक्ष प्रदायिनी है। माना जाता है कि जो भी व्यक्ति सच्ची श्रद्धा एवं भक्ति के साथ यह व्रत करता है, भगवान विष्णु उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं। आज इस लेख में हम सत्यनारायण व्रत कथा तथा व्रत करने की समुपर्ण विधि बताएंगे।
सत्यनारायण व्रत कथा
पुरातनकाल में शौनकादिऋषि नैमिषारण्य स्थित महर्षि सूत के समक्ष सांसारिक सुख, लौकिक कष्टमुक्ति और पारलौकिक सिद्धि का मार्ग जानने की जिज्ञासा में पहुँचे। तब सूत जी ने सत्यनारायण व्रत कथा को इसका सर्वोत्तम मार्ग बताया। यही कथा भगवान विष्णु द्वारा नारद जी को सुनाई गई थी। इस कथा के अनुसार शतानन्द, काष्ठ-विक्रेता भील एवं राजा उल्कामुख आदि को भगवान सत्यनारायण की इस पावन कथा के श्रवण माध्यम से मोक्ष की प्राप्ति हुई।
दीन ब्राह्मण शतानन्द, जो भिक्षा मांगकर अपना जीवन यापन करते थे। सत्यनारायण कथा के श्रवण और व्रत के फल से वो इस लोक के सुखों को भोगकर स्वर्ग लोक गए। इसी प्रकार काष्ठ विक्रेता भील गांव-गांव में अपनी लकड़ियाँ बेचकर कमाए हुए धन से सत्यनारायण भगवान का पूजन अर्चन करता था। इसी के परिणामस्वरूप भगवान सत्यनारायण की कृपा से उसके घर में धन- धान्य की वृद्धि हुई और उसके सम्पूर्ण दुखों का निवारण हुआ। राजा उल्कामुख ने भी बंधु-बांधवों सहित सत्यनारायण भगवान का विधि पूर्वक व्रत एवं पूजन किया। उन्हें भी सत्यनारायण भगवान की कृपा से मरने के बाद मोक्ष की प्राप्ति हुई।
इसी प्रकार इस कथा को जो भी सच्ची भावना और श्रद्धा से श्रवण करेगा और समस्त बुराइयों को त्यागकर सत्यनारायण भगवान का व्रत संपन्न करेगा, उसके समस्त दुःख दूर होंगे और वह समस्त सांसारिक सुख भोगकर मोक्ष को प्राप्त करेगा।
सत्यनारायण व्रत पूजा विधि
सत्यनारायण व्रत कथा एवं पूजन करने के लिए सर्वप्रथम सवेरे जल्दी स्नान कर पूजा वाले स्थान को गोबर से लीप दें। इसके पश्चात इस स्थान पर पूजा की चौकी स्थापित कर उसके पास केले के वृक्ष को रखें, क्यूंकि केले के वृक्ष में साक्षात् भगवान विष्णु का वास माना जाता है। इसके बाद धुप-दीप, तुलसी, चन्दन, फूल, गंध, पंचामृत सहित पाँच कलशों को पूजा स्थल पर रखें।
अब चौकी पर सत्यनारायण भगवान की मूर्ति को विराजित करें। इसके पश्चात गणेश जी सहित समस्त देवी-देवताओं का ध्यान करें। भगवान सत्यनारायण की पूजा करें और आरती उतारें। पूजन समाप्त होने के पश्चात् पुरोहितजी को दान-दक्षिणा दें और भोजन कराएँ। इसके बाद स्वयं परिवार सहित सत्यनारायण कथा का प्रसाद ग्रहण करें और भोजन करें।
इस तरह से इस परम पावन दुर्लभ व्रत को जो भी करेगा, वह धन-धान्य से परिपूर्ण हो भगवान सत्यनारायण की कृपा से संसार के समस्त सुखों को प्राप्त करेगा।
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