हिन्दू धर्म का प्रचार-प्रसार करने के लिए अपना जीवन समर्पित कर चुकीं श्रीराम कथा वाचिका साध्वी सरस्वती एक आदर्श हैं. उनके बारे में जानिये इस लेख में.
प्राचीन काल से ही हिन्दू धर्म में जीवन की चार अवस्थाएँ एवं आश्रम बताए गए है जिनमें ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ एवं संन्यास आश्रम शामिल हैं. हिन्दू धर्म में ऐसा माना जाता है कि मनुष्य को समस्त सांसारिक सुखों को भोगकर एक निश्चित समय के बाद संन्यास धारण कर लेना चाहिए. अतः हिन्दू धर्म के अनुसार चलने वाले कई ऋषि महर्षियों ने अपना समस्त जीवन भगवान की सेवा व पूजा भक्ति में लगा दिया. इन्हीं में से एक हैं “साध्वी सरस्वती”.
साध्वी सरस्वती के जीवन के बारे में
साध्वी बालिका ‘सरस्वती मिश्रा’ मध्य प्रदेश में रेवा नामक स्थान की रहने वाली है. साध्वी के पिता का सपना इन्हें डॉक्टर बनाने का था क्योंकि वह खुद भी पेशे से एक डॉक्टर थे. परन्तु जिस उम्र में बच्चे अपनी पढ़ाई व अपना भविष्य बनाने में लगे रहतें हैं, साध्वी जी ने उसी उम्र में भक्ति सेवा व रामकथा करने में अपना जीवन समर्पित कर दिया. यह 20 वर्षीय बालिका बचपन से ही अपने समस्त सांसारिक सुखों को त्यागकर धर्म के प्रचार प्रसार में लग गई. इन्होंने 5 वर्ष की उम्र में ही संसार से विरक्त होकर भगवान के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया.
ऐसा कहा जाता है कि साध्वी सरस्वती जी की बचपन से ही भगवान में बहुत आस्था रही है. वह 5 वर्ष की उम्र से ही रामकथा कहने लगीं. इतना ही नहीं उनके परिजनों का कहना है कि वे बचपन से ही रामायण का पाठ सुनाया करती थीं. उनकी रामायण के प्रति रूचि बढ़ती गई. उनके माता पिता भी उन्हें धर्म के मार्ग पर चलते देख बहुत खुश हुए एवं उन्हें कभी रोका नहीं गया. उनकी इसी रूचि व भक्ति के कारण वह कम उम्र में कई विख्यात संतो व ऋषियों के समक्ष कथा कहने लगीं. उनकी बचपन से ही धर्म के प्रति आस्था व विश्वास को देखते हुए अनेक श्रद्धालु उनकी कथाओं को सुनने लगे.
साध्वी सरस्वती और रामकथा वाचन
साध्वी सरस्वती अपनी स्वर्णिम राम कथा वाचन से देशभर में एक प्रख्यात कथावाचक के रूप में जानी जाने लगीं. इतना ही नहीं उन्हें विदेशों में भी कथा वाचन के लिए बुलाया जाने लगा. विदेशों में सनातन धर्म को मानने वाले एवं भारतीय संस्कृति का सम्मान करने वाले कई लोगों ने इनका सम्पूर्ण आदर-सत्कार किया. हिन्दू धर्म के प्रति साध्वी सरस्वती की आस्था और समर्पण को देखकर 18 वर्ष की उम्र में ही उन्हें “सनातन धर्म प्रचार सेवा समिति” का अध्यक्ष बना दिया गया.
वह छोटी उम्र में ही मध्यप्रदेश के सनातन आश्रम में जाकर रहने लगीं. उनके हिन्दू धर्म के बारे में दिए गए प्रेरणात्मक और प्रभावशाली भाषणों ने कई लोगो को हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए प्रोत्साहित किया. वह अपनी भागवत एवं रामायण कथा के प्रभाव से कई ग्रामीण एवं पिछड़े क्षेत्र के लोगो के बीच धर्म शिक्षण का प्रचार करने लगीं. उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “क्षत्र-गीत” में पाकिस्तानियों को सूचित करते हुए एक बात कही “कश्मीर तो होगा, लेकिन पाकिस्तान नहीं होगा.” उनके इस कथन ने देश भर में प्रेरणा व जोश जगा दिया.
इस तरह से साध्वी सरस्वती ने कई मुद्दों पर अपने विचारों के माध्यम से देशवाशियों एवं विदेश में भी प्रेरणा स्त्रोत का कार्य किया है. साध्वी सरस्वती जी ने युवाओं को सनातन धर्म की प्रेरणा दी और अपनी प्रेरणात्मक कथाओं से देशभर के आध्यात्मिक जीवन में ऊर्जा का संचार किया है.
इस तरह साध्वी सरस्वती श्री राम कथा के माध्यम से हिन्दू धर्म की अलख को जन-जन तक पहुंचाने का कर्तव्य बखूबी निभा रहीं हैं.
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