नमस्कार! मैं एक साड़ी हूँ. जी हाँ! वही मखमली कपड़ा जो आप आये दिन कभी किसी पार्टी में, कभी बाज़ार में या कभी कहीं और पहनकर घूमा करतीं हैं.
मेरा जन्म आज से लगभग ५००० साल पहले एक छोटे से गाँव में हुआ था. उस समय मेरे तौर तरीक़े थोड़े अलग थे. उन दिनों, स्त्रियां ब्लाउज और पेटीकोट के बिना ही मुझे धोती की तरह बाँध लेती थीं.
हिन्दुओं का मानना है कि यदि वस्त्र में कोई छेद हो जाता है, या कट लग जाता है तो वह “अपवित्र” हो जाता है अथवा पहनने के योग्य नहीं रहता है. इसी कारण हेतु संस्कृत के शब्द “सटी” अर्थात “कपड़े की एक लम्बी पट्टी” से मेरा नामकरण हुआ.
मुग़लों के राज में कपड़ा सिलने का चलन शुरू हुआ. तब से मुझे घाघरा, चोली, पेटीकोट और ब्लाउज के साथ पहना जाने लगा. वक्त के साथ, भिन्न-भिन्न प्रकार के रंगों का प्रयोग होने लगा, जैसे नील, हल्दी आदि.
धोती स्टाइल से आगे बढ़कर “प्लेट्स” डाले जाने लगे. एक समय ऐसा भी आया जब मुझे “शर्ट” के साथ पहना जाने लगा. उन दिनों अंग्रेज़ो का राज था. वो भी क्या दिन थे!खैर छोड़िये पूरानी बातें. इतना सब कुछ देखा मैंने, पर कुछ चीज़ें नहीं बदली. मेरा किसी भी स्त्री के तन पर सुन्दर तरीक़े से लिपट जाना आज भी काबिल-ए-तारीफ़ है. समय के साथ मेरा परिवार बहुत बड़ा हो गया है. आपने मार्किट में देखा ही होगा. गोटा पट्टी, लेहरिया, बन्देज, ब्लॉक प्रिंट, टाई एंड डाई, फुलकारी, पटोला और न जाने कितने तरह की साड़ियां आ गयीं है केवल यह ही नहीं, इनको बनाने में कपड़े भी अलग अलग तरह के इस्तेमाल होते हैं, जैसे की जारजट, रेशम, मखमली, खादी इत्यादि. हर जगह का अपना ही एक स्टाइल बन गया है. राजस्थान में तड़क भड़क रंग का घूंगट, तो केरल में सफ़ेद साड़ी पर गोल्डन गोटा. मेरी हर बहन अपनी जन्मभूमि की संस्कृति दर्शाती है. सिर्फ यह ही नहीं, आजकल तो हीरे,
मोती भी जड़ने लगे हैं, साड़ियों में. इतनी चमक-धमक, इतने डिज़ाइन्स, इतने रंग व इतने प्रकार देख कर मुझे अपने लिए थोड़ा बुरा तो लगता है, पर ख़ुशी इस बात की होती है, कि इतने सालों बाद भी हम साड़ियां आपके जीवन में जीवित हैं. बंटी की मम्मी से लेकर दीपिका पादुकोण तक लगभग सभी स्त्रियां आज भी साड़ी पहनती है. आज भी अगर भारत की संस्कृति की झलक किसी और देश में दर्शानी हो, तो सबसे पहले साड़ी ही पहनी जाती है. औपचारिक व अनौपचारिक दोनों ही जगहों पर लोग ख़ुशी से साड़ी पहनते हैं. हाँ, थोड़ा बाँधने का तरीक़ा बदल जाता है-कोई ऊंची बांधता है तो कोई नीची, किसी को पल्लू खुला पसंद है, तो किसी को बंधा हुआ. लेकिन आज भी “एक पट्टी कपड़ा” ही होता है. चलिए मैं चलती हूँ, प्रीती के समारोह में जाना है. आज फिर लोग मेरी तारीफ़ करेंगे और प्रीती खुश हो जाएगी.
-तिशीता अग्रवाल
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