धर्म और संस्कृति

केवल 5 मिनट में पढ़िये रामायण की पूरी कथा

महर्षि वाल्मीकि कृत महाकाव्य संपूर्ण रामायण को सात कांडों में विभाजित किया गया है। इन सब कांडों  में रघुकुल वंशी श्री राम  एवं उनके  एवं भ्राता लक्ष्मण की शौर्य गाथा का वर्णन किया गया है, जो  भक्ति, कर्तव्य, रिश्ते, धर्म और कर्म की सही मायनों में व्याख्या है। 

रामायण के सात कांड:

१. बालकाण्ड:

श्री राम का जन्म चैत्र मास की नवमी के पावन दिन अयोध्या में राजा दशरथ और माता कौशल्या के यहां हुआ था। राजा दशरथ की अन्य पत्नियों कैकई और सुमित्रा की कोख से  भरत और लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न पैदा हुए। राम, लक्ष्मण, भरत एवं शत्रुघ्न, इन सभी भाइयों ने गुरु वशिष्ठ के आश्रम में शिक्षा दीक्षा प्राप्त की।

जब श्री राम 16 वर्ष के हुए तब ऋषि विश्वामित्र ने राजा दशरथ से यज्ञ में विघ्न डालने वाले राक्षसों का संहार करने में राम और लक्ष्मण की सहायता की याचना की। श्री राम और लक्ष्मण ने उनकी आज्ञा का पालन करते हुए अनेक राक्षसों का वध किया एवं देवी अहिल्या को श्राप से त्राण दिलाया। श्री राम जनकपुर में माता जानकी के स्वयंवर में सम्मिलित हुए। वह  शिव धनुष को भंग  करके माता सीता के साथ परिणय सूत्र में आबद्ध हुए।

२. अयोध्या कांड:

श्री राम एवं माता जानकी के शुभ गठबंधन के पश्चात राजा दशरथ ने श्री राम के राज्याभिषेक की घोषणा की। किंतु तभी मंथरा, एक दासी द्वारा भड़काये जाने के परिणाम स्वरूप  रानी कैकई ने राजा दशरथ  से उनकी रक्षा हेतु मांगे गए एवं उनके द्वारा प्रदत्त दो वचनों को पूरा करने के लिए कहा। दासी मंथरा के  परामर्श  के अनुसार कैकयी ने  पति दशरथ से दो वचन मांगे।  श्री राम को 14 वर्ष का वनवास एवं दूसरा भरत का राज्याभिषेक।

चित्र श्रेय: पिंटरेस्ट

पिता द्वारा दिए गए वचन की पालना में श्री राम ने पत्नी सीता एवं अनुज लक्ष्मण सहित वन के लिए प्रस्थान किया।

पुत्र वियोग में और श्रवण के माता-पिता द्वारा दिए गए श्राप के प्रभाव से राजा दशरथ ने प्राण त्याग दिए। भरत श्री राम को वापस अयोध्या लौटा लाने के लिए उनकी मनुहार  करने  जंगल गए एवं राम भरत मिलाप हुआ।

श्री राम ने भरत का अयोध्या लौटने का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया एवं भरत को अपनी चरण पादुकाएं दे दी। 

३. अरण्यकांड:

जंगल में श्री राम, लक्ष्मण एवं सीता मुनि अत्रि एवं उनकी भार्या  अनुसुइया से मिले। इसके उपरांत दुष्ट रावण ने माता सीता का हरण कर लिया। श्रीराम ने ऋषि अगस्त्य ऋषि सुतिष्ण पर कृपा की एवं जटायु का उद्धार किया 

सीता के बीछोह  में आकुल राम वन वन भटकने लगे। इसी दौरान राम ने माता शबरी के जूठे बेरों का सेवन किया एवं उनका उद्धार किया।

४. किष्किंधा कांड:

सीता को ढूंढते वक्त श्री राम ने सुग्रीव,  वायु पुत्र हनुमान एवं समस्त वानर सेना से भेंट की। श्री राम ने सुग्रीव की मदद करने के उद्देश्य से बालि  का उद्धार किया एवं सुग्रीव एवं उनकी सेना की सहायता से सीता माता को ढूंढने के लिए निकल पड़े।

५. सुंदरकांड:

हनुमान सीता माता की खोज में लंका पहुंचे और सीता माता से भेंट  की। इसके उपरांत श्री हनुमान ने अपनी पूंछ से लंका में आग लगा दी।

रावण के भ्राता विभीषण राम की शरण में आ गए। राम ने समुद्र के अहंकार की तुष्टि की एवं तब हनुमान एवं अन्य वानरों  ने समुद्र में राम नाम के पत्थर तैरा कर समुद्र पर सेतु का निर्माण किया।

६. लंका कांड:

श्री  राम एवं उनकी सेना सेतु मार्ग से लंका पहुंची और श्री राम ने अंगद को दूत  के रूप में संधि के उद्देश्य से रावण के पास  भेजा। किंतु रावण ने अपने अहम वश राम की अवज्ञा की। तदुपरांत दोनों पक्षों के मध्य युद्ध की घोषणा हुई।

नियत समय पर महा संग्राम  प्रारंभ हुआ, जिसमें श्री राम एवं उनकी सेना ने सभी दैत्यों  को पराजित कर दिया।   लक्ष्मण एवं मेघनाथ के मध्य हुए युद्ध में लक्ष्मण बाण से घायल हुए। श्री हनुमान उनके उपचार हेतु संजीवनी बूटी लाए। तत्पश्चात लक्ष्मण ने मेघनाद एवं राम ने कुंभकरण जैसे असुरों का संहार किया।

इसके उपरांत श्री राम एवं रावण के मध्य भीषण युद्ध हुआ। इस  युद्ध में भगवान राम ने रावण को पराजित कर विजयश्री प्राप्त की।

विभीषण का राज्याभिषेक हुआ।  माता सीता को लंका से लाया गया।  अपनी शुचिता का प्रमाण देने  के लिए उन्हें अग्नि परीक्षा देनी पड़ी।

श्री राम सीता माता एवं लक्ष्मण वानरों  सहित अयोध्या पहुंचे।

७. उत्तरकांड:

भगवान श्री राम के अयोध्या पहुंचने के उपलक्ष्य में अयोध्या वासियों द्वारा दीपोत्सव मनाया गया। इसके पश्चात अत्यंत हर्षोल्लास से श्री राम का राज्याभिषेक संपन्न हुआ।

लंका नरेश रावण द्वारा माता सीता का हरण किए जाने के कारण उन पर समस्त अयोध्या वासियों द्वारा आरोप  लगाए गए। तब श्रीराम ने उन्हें वन में भेज दिया।

वन में माता सीता ऋषि वाल्मीकि के आश्रम में वास  करने लगीं। वहां उनकी गोद दो शिशुओं से भरी, जिनका नाम लव एवं कुश रखा गया। 

चित्र श्रेय: पिंटरेस्ट

वे दोनों अपने पिता राम के समान पराक्रमी एवं शौर्यवान थे। उन्होंने अश्वमेध यज्ञ में विजय प्राप्त की। दोनों ने श्री राम के दरबार में अपने माता पिता, सीता एवं  राम की जीवन कथा सुनाई। ऋषि वाल्मीकि ने राम को बताया कि वे दोनों उनका अपना रक्त है। तब भगवान राम को अपनी भूल का अहसास हुआ।

अंत में सीता माता ने धरती मैया से अनुरोध किया कि वह अपनी शरण में उन्हें ले ले। तब धरती फटी एवं माता सीता उसमें समा गई।

Renu Gupta

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