सूर्यास्त के बाद तथा रात्रि के पहले प्रहर के समय को प्रदोष काल कहा जाता है। यह समय सायंकाल का होता है और इसी सायंकाल के समय भगवान् शिव की पूजा-अर्चना की जाती है, जिसे प्रदोष पूजा के नाम से जाना जाता है।
प्रदोष व्रत हर महीने के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी, (१३वें दिन) को रखा जाता है। इस दिन भक्त पूरे दिन अन्न-जल ग्रहण नहीं करते हैं और शाम को पूजा के पश्चात ही व्रत खोला जाता है।
इस दिन सूर्यास्त से करीब एक घंटा पहले स्नान आदि कर पूजा के लिए तैयार हो जाना चाहिए। संभव हो, तो इस समय सफ़ेद वस्त्र धारण करने चाहिए। इस पूजा में भगवान शिव को उनके समस्त परिवार के सहित, अर्थात विघ्नहर्ता गणेश, देवी पार्वती, भगवान् कार्तिक और नंदी के साथ, पूजा जाता है।
प्रदोश पूजा विधि
पुष्प, माला, धुप, दीप, लाल चंदन और पंचामृत द्वारा भगवान शिव और उनके परिवार की पूजा होती है। इसके बाद प्रदोष व्रत कथा सुनी जाती है। कुछ लोग इस दौरान शिव पुराण की कहानियां सुनते हैं या फिर महामृत्यंजय मंत्र का १०८ बार जाप भी करते हैं। स्कन्द पुराण के अनुसार यह व्रत कम-से-कम ११ या २६ त्रयोदशी तक रखना चाहिये। इसके बाद व्रत का विधिवत उद्यापन करना भी अनिवार्य है।
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प्रदोष व्रत उद्यापन
प्रदोष व्रत उद्यापन के लिए द्वादशी तिथि को, अथार्त, त्रयोदशी से एक दिन पहले, गणेशजी की षोडशोपचार विधि से पूजन किया जाता है और पूरी रात शिव-पार्वती और श्री गणेश जी का भजन-कीर्तन होता है। उद्यापन की पूजा के लिए, त्रयोदशी को, विधिपूर्वक पुष्प, फल, मिठाई, पंचामृत आदि से शिव-पार्वती की प्रतिमा की पूजा करें।
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इसके पश्चात हवन की क्रिया होती है। हवन के लिये सवा किलो आम की लकड़ी को सजाकर अग्नि प्रज्ज्वलित करें। ‘ऊँ उमा सहित शिवाय नम:’ मंत्र का उच्चारण करते हुए 108 बार खीर की आहुति देते हुए हवन करने का नियम है। हवन के बाद शिव जी की आरती की जाती है। इसके बाद ब्राह्मणों को सामर्थ्यानुसार भोजन करवाकर दान-दक्षिणा प्रदान की जाती है।
प्रदोष व्रत का महत्व अलग-अलग वार को पड़ने वाले प्रदोष का अलग-अलग फल होता है, और वह इस प्रकार है।
- रविवार के प्रदोष व्रत से सुख-समृद्धि, आरोग्यता और लम्बी आयु की प्राप्ति होती है।
- सोमवार के प्रदोष व्रत से सभी प्रकार की मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
- मंगलवार को प्रदोष व्रत रखने से व्रती को पापों से मुक्ति मिलती है और साथ ही व्यक्ति उत्तम स्वास्थ्य भी प्राप्त करता है।
- बुधवार प्रदोष व्रत से सभी प्रकार की कामना सिद्धि और कष्टों का निवारण संभव होता है।
- गुरुवार के प्रदोष व्रत से शत्रु का नाश होता है तथा सभी कामों में सफलता प्राप्त होती है।
- शुक्रवार का प्रदोष व्रत स्त्री के सौभाग्य, समृधि व कल्याण के लिए होता है।
- शनिवार का प्रदोष व्रत निर्धनता दूर करता है और धन व पुत्र प्रदान करता है।
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