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पर्युषण पर्व का क्या महत्व है? जैन इस पर्व को कैसे मनाते हैं?

पर्युषण पर्व का जैन समाज में सबसे अधिक महत्‍व है, इस पर्व को पर्वाधिराज कहा जाता है। पर्युषण पर्व आध्‍यात्मिक अनुष्‍ठानों के माध्‍यम से आत्‍मा की शुद्धि का पर्व माना जाता है। इसका मुख्‍य उद्देश्‍य आत्‍मा के विकारों को दूर करने का होता है। जैन समाज मुख्‍य रूप से दो पंथों में विभाजित है- दिगंबर एवं श्‍वेतांबर पंथ।

दिगंबर जैन समाज पर्युषण पर्व को दस दिनों तक मनाता है, इसलिए इस पर्व को दशलक्षण पर्व भी कहते है। वही श्‍वेतांबर संप्रदाय द्वारा यह पर्व आठ दिनों तक मनाया जाता है। जैन धर्मावलंबियों द्वारा प्रति वर्ष भाद्रपद मास में इस महान पर्व को बड़े उत्‍साह के साथ मनाया जाता है। दो संप्रदायों में यह पर्व अलग-अलग तिथियों से प्रारंभ होते है।

जैन धर्म में अहिंसा एवं आत्‍मा की शुद्धि को सबसे महत्‍वपूर्ण स्‍थान दिया जाता है। प्रत्‍येक समय हमारे द्वारा किये गये अच्‍छे या बुरे कार्यों से कर्म बंध होता है, जिनका फल हमें अवश्‍य भोगना पड़ता है। शुभ कर्म जीवन व आत्‍मा को उच्‍च स्‍थान तक ले जाता है, वही अशुभ कर्मों से हमारी आत्‍मा मलिन होती जाती है।

पर्युषण पर्व के दौरान विभिन्‍न धार्मिक क्रियाओं से आत्‍मशुद्धि की जाती व मोक्षमार्ग को प्रशस्त्र करने का प्रयास किया जाता है, ताकि जनम-मरण के चक्र से मुक्ति पायी जा सकें। जब तक अशुभ कर्मों का बंधन नहीं छुटेगा, तब तक आत्मा के सच्‍चे स्‍वरूप को हम नहीं पा सकते हैं।

इस पर्व के दौरान दस धर्मों- उत्‍तम क्षमा, उत्‍तम मार्दव, उत्‍तम आर्जव, उत्‍तम शौच, उत्‍तम सत्‍य, उत्‍तम संयम, उत्‍तम तप, उत्‍तम त्‍याग, उत्‍तम आकिंचन एवं उत्‍तम ब्रह्मचर्य को धारण किया जाता है। समाज के सभी पुरूष, महिलाएं एवं बच्‍चे पर्युषण पर्व को पूर्ण निष्‍ठा के साथ मनाते है।

सांसारिक मोह-माया से दूर मंदिरों में भगवान की पूजा-अर्जना, अभिषेक, आरती, जाप एवं गुरूओं के समागम में अधिक से अधिक समय को व्‍यतीत किया जाता है एवं अपनी इंद्रियों को वश में कर विजय प्राप्‍त करने का प्रयास करते है।

सभी के द्वारा मन-वचन-काय से अहिंसक धर्म का पूर्ण रूप से पालन करने का प्रयत्‍न करते हुए किसी भी प्रकार के अनावश्‍यक कार्य को करने से परहेज किया जाता है।

शास्‍त्रों की विवेचना की जाती है, व जप के माध्‍यम से कर्मों को काटने का प्रयत्‍न करते है। व्रत व उपवास करके आत्‍मकेंद्रित व विषय-कसायों से दूर रहा जाता है।

पर्युषण पर्व आत्‍म-मंथन का पर्व है, जिसमें यह संकल्‍प लिया जाता है, कि प्रत्‍यक्ष या अप्रत्‍यक्ष रूप से जीवमात्र को कभी भी किसी प्रकार का कष्‍ट नहीं पहॅुचाएंगे व किसी से कोई बैर-भाव नहीं रखेंगे।

संसार के समस्त प्राणियों से जाने-अनजाने में की गई गलतियों के लिए क्षमा याचना कर सभी के लिए मंगल कामना की जाती है और खुद को प्रकृति के निकट ले जाने का प्रयास किया जाता है।

शिखा जैन

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