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नवरात्रि के नौ दिन की अलग-अलग विशेषतायें

वर्ष में नवरात्रि दो बार आती है. इन नौ दिनों के दौरान लोग माता की भक्ति में तन्मय हो जाते हैं. क्या है इन नौ दिनों की  विशेषतायें? 

भारतीय संस्कृति में आदि-शक्ति की पूजा की जाती है. देवी पूजा का सबसे बड़ा प्रतीक नवरात्रि एक ऐसा उत्सव है, जो वर्ष में दो बार मनाया जाता है. यह न केवल आदि शक्ति की पूजा है, बल्कि दो ऋतुओं के संगम का भी महोत्सव होता है.

बसंत और शरद ऋतु का आगमन इसी महोत्सव से सम्मानित किया जाता है. प्रागैतिहासिक काल से की जाने वाली नवरात्रि की पूजा भक्ति और परमात्मा की शक्ति का प्रतीक है.

इन नौ दिनों में देवी दुर्गा के नौ रूप, जो देवी पार्वती, माता लक्ष्मी और माता सरस्वती के रूप होते हैं को पूजा जाता है. आइये जानें नौ दुर्गा के नौ रूप और उनकी विशेषताएँ:

1. शैलपुत्री

माँ दुर्गा का प्रथम रूप शैलपुत्री का है, जिसे पार्वती के नाम से भी जाना जाता है. माँ के इस रूप का वाहन बैल है और शैलपुत्री को सभी वन्य जीवों का संरक्षक माना जाता है. शैलपुत्री की आराधना करने से समस्त आपदाओं से मुक्ति मिलती है.

इसलिए दुर्गम और कठिन स्थानों पर कोई भी बस्ती बसाने से पहले शैलपुत्री की पूजा की जाती है. इसके साथ ही, वह स्थान, जहाँ शैलपुत्री हों, वह आपदा, रोग और व्याधि व संक्रमण से सुरक्षित हो जाता है.

2. ब्रह्मचारिणी

ब्रह्म का अर्थ संस्कृत में तपस्या होता है और माँ के उस रूप को, जिसमें वो तप का आचरण करतीं हैं, ब्रह्मचारिणी कहते हैं. नवरात्रि के दूसरे दिन माँ के इस रूप की पूजा होती है.

माँ के इस रूप के दाहिने हाथ में जप की माला और बाएँ हाथ में कमंडल है. कहा जाता है कि माँ के इस रूप की पूजा से व्यक्ति की कुंडलिनी जाग्रत हो जाती है.

3. चंद्रघंटा

नवरात्रि के तीसरे दिन माँ के चंद्रघंटा रूप की पूजा की जाती है. इस रूप में माँ की दस भुजाएँ हैं और उनमें ढाल, तलवार, खड्ग, त्रिशूल, धनुष, चक्र, पाश, गदा और बाण हैं.

इनके मस्तक पर आधा चंद्रमा भी सुशोभित है. इन्हें नाद की देवी भी माना जाता है और इनकी कृपा से साधक सुरसाधना में प्रवीण हो जाता है. योग साधना में भी चंद्रघंटा की उपासना की जाती है.

4.  कूष्माण्डा

माँ के इस स्वरूप को सृष्टि का जनक भी माना जाता है. मंद मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना करने के कारण ही इन्हें ‘कूष्माण्डा’ कहा जाता है.

माँ के इस रूप की आठ भुजाएँ होने के कारण इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है. माँ कूष्माण्डा का रूप प्रकृति से रोग और विपदा का निवारण करता है. इनके इस रूप की अर्चना करने से यश, आयु और बल में वृद्धि होती है.

5. स्कंदमाता

अत्याचारी दानवों से रक्षा करने के लिए सिंह पर सवार होकर देवी दुर्गा ने ‘स्कंदमाता’ का रूप धारण किया. पुत्र प्रेम का प्रतीक माँ का यह रूप साधक को शांति और सुख देने वाला है.

6. कात्यायिनी

कात्यान ऋषि के घर जन्म लेने के कारण माँ का यह रूप ‘कात्यायिनी’ कहलाता है. माँ के इस रूप की पूजा करने से व्यक्ति के शत्रु का नाश होता है और कुंवारी कन्या का विवाह हो जाता है. कात्यायिनी माँ की चार भुजाएँ हैं और इसी रूप में उन्होंने आसुरी शक्तियों का नाश करके देवताओं को स्वर्ग पर पुनः अधिकार दिलवाया था.

7. कालरात्रि

माँ का सातवाँ रूप कालरात्रि का है, जिसमें उनके शरीर का रंग काला, बाल बिखरे और वाहन गधा है. भयानक होते हुए भी माँ का यह रूप शुभ है और शुभकारी होने के कारण यह अपने उपासकों का शुभ ही करती हैं. इनकी उपासना से व्यक्ति के हर प्रकार के भय का नाश होता है.

8. महागौरी

माँ दुर्गा का आठवाँ रूप महागौरी का है. कहा जाता है. कि भगवान् शिव के लिए कठोर तप करने के कारण इनका शरीर काला हो गया था. जिसे शिव भगवान ने प्रसन्न होकर गंगा जल से धोया था.

इसके कारण माँ का रूप गौर वर्ण का हो गया और इनका नाम ‘गौरी’ हो गया. माँ गौरी का वाहन सिंह भी है और बैल भी है. कन्या रूप में इनकी आयु आठ वर्ष की मानी गयी है. महिलाएं अपने सुहाग दीर्घायु होने की कामना के लिए इन्हें चुनरी भेंट करती हैं.

9. सिद्धिदात्री

माँ दुर्गा का नौवां रूप सभी सिद्धियों को देने वाला है. मार्कन्डेय पुराण के अनुसार आठ सिद्धियाँ अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व होती हैं और माँ के साधक को इन सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है.

इन्हीं सिद्धियों की प्राप्ति के कारण भगवान शिव का आधा शरीर नारी का है और उन्हें ‘अर्धनारीश्वर’ कहा जाता है. चार भुजाओं वाली देवी का वाहन सिंह है. माँ सिद्धदात्री रूप की उपासना करने से सभी भौतिक और आध्यात्मिक कामनाओं की पूर्ति होती है.

ऐसी मान्यता है, कि ब्रह्मा, विष्णु और शिव ने मिलकर नवदुर्गा के रूप का सृजन किया था. नवरात्री के नौ दिनों या रातों का यही महत्व है – दुर्गा के नौ रूपों की आराधना. इसलिए नवरात्री के इन नौ दिनों में माँ दुर्गा के नौ रूपों की उपासना करने से सृष्टि की त्रिमूर्ति की आराधना स्वयं ही हो जाती है. इस प्रकार नवदुर्गा हर दिन अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं.

https://dusbus.com/hi/kyu-badh-jaate-gujraat-navraatri-baad-garbhpaat-mamale/

 

Charu Dev

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