नवजात शिशु के लिए एक मात्र उपयुक्त भोजन माँ का दूध ही होता है। यदि किन्हीं कारणों से शिशु अपनी माँ के दूध से वंचित रह जाते हैं, तो यह शिशु के लिए काफी नुकसानदेह भी हो सकता है।
आइए, जानते हैं नवजात शिशु को माँ के दूध से वंचित रखने से होने वाली हानियों के विषय में, इसी के साथ ही हम जानेंगे नवजात शिशुओं को माँ के दूध से होने वाले विभिन्न लाभों के विषय में।
माँ का दूध बच्चे को कई तरह से बीमारियों से सुरक्षित रखता है। ख़ासकर माँ का पहला दूध बच्चे के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। पुराने जमाने में लोग कम जानकारी और अंधविश्वास के चलते पहला पीले रंग के दूध को नहीं पिलाया करते थे। परंतु, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए, तो माँ के पहले दूध में कोलोस्ट्रम पाया जाता है।
यह नवजात शिशुओं की सेहत के लिए एक महत्वपूर्ण पोशाक तत्व है। यह शिशुओं के संरक्षण के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इस दूध में प्रोटीन और एंटी बोडीज़ भरपूर मात्र में पाये जाते हैं, जो शिशु की बनती हुई रोग प्रतिरोधक क्षमता को और भी अधिक मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।
अतः यदि नवजात शिशुओं को माँ के दूध से वंचित रखा जाए, तो उसे इतनी कम उम्र में ही जानलेवा बीमारियों से संक्रमित होने का ख़तरा बना रहता है।
सिर्फ इतना ही नहीं, ये शिशु के पाचन तंत्र को भी मजबूत बनाने में मददगार साबित होती है।
माँ के दूध में मिलने वाले कोलोस्ट्रम में प्रोटीन, कैल्शियम, एंटि बोडीज़, लिपिड, कार्बोहाईड्र्टेस, मिनरल जैसे कई सारे पोषक तत्व पाये जाते हैं, जो शिशु के शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
इसी के साथ साथ माँ के दूध में पानी भी प्रचुर मात्र में पाया जाता है, जो शिशु के शरीर में जल की मात्रा को नियंत्रण में रखता है और शिशु की त्वचा में नमी बनाए रखता है।
अकसर दस्त आने पर शरीर में होने वाले पानी की कमी की वजह से शिशुओं पर जानलेवा ख़तरा मंडरा सकता है। इसके इतने सारे लाभों को मद्देनज़र रखते हुए ही नवजात शिशुओं को जन्म से छह महीनों तक केवल माँ के दूध का ही सेवन करने दिया जाता है।
नवजात शिशुओं को जन्म से संक्रमित होने का ख़तरा रहता है।
इसी वजह से उन्हें दस्त, कुपोषण, निमोनिया आदि हो सकता है। अतः माँ का दूध शिशुओं की विभिन्न प्रकार के संक्रमण से रक्षा करता है। शिशुओं के साथ साथ माताओं को भी इसके कई लाभ मिलते हैं।
इससे माँ का बढ़ा हुआ वज़न भी धीरे धीरे कम होने लगता है। इसके साथ कभी कभी माँ को इंटरनल ब्लीडिंग की समस्या रहती है। इससे गर्भाशय का संकुचन भी हो जाता है और इंटरनल ब्लीडिंग कुछ हद तक कम भी हो जाती है।
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