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दारा सिंह से दिलीप कुमार और फिर अंधेरे का सफर

सुनसान छत पर, सीधे पल्ले की साड़ी पहने, एक हाथ में बहुत सारी चूड़ियाँ छनकाती वो शोख़ लड़की तो याद होगी आपको जिसकी दमकती बिंदिया ने न जाने कितने दिलों को अपनी चमक से घायल कर दिया था। जी हाँ,बिलकुल ठीक समझा आपने, एक जमाने की मशहूर अदाकारा मुमताज़ का ही ज़िक्र हो रहा है। बाल कलाकार से फिल्मी सफर शुरू करने वाली यह अभिनेत्री एक समय में अपने समय के मशहूर अभिनेताओं से भी अधिक मेहनताना लेने के लिए जानी जाती थीं। आइये इनके जीवन के कुछ अनछुए पन्नों पर एक नज़र डालें।

 

अधूरा बचपन :

ईरानी मूल के दंपत्ति श्री अब्दुल सलीम अस्करी और नाज़ के घर 31 जुलाई 1947 एक चाँद जैसी कन्या ने जन्म लिया जिसका नाम उन लोगों ने बड़े शौक से मुमताज़ रखा जिसका हिन्दी अर्थ है काबिलेतारीफ। शायद माता-पिता ने अपनी बेटी का भाग्य पहले ही पढ़ लिया था। लेकिन दुर्भाग्य ने एक वर्ष के उम्र से ही नन्ही मुमताज़ का हाथ पकड़ लिया था। एक वर्ष की अवस्था में भाग्य ने माता-पिता के अलगाव का तोहफा उस बच्ची को दिया। मुमताज़ अपनी माँ के साथ मुंबई चली आयीं। 1952 में पाँच वर्ष की अबोध उम्र में मुमताज़ ने फिल्मी संसार में फिल्म ‘संस्कार’ से एक बाल कलाकार के रूप में कदम रखा । इसके बाद उन्होने लगभग आठ फिल्मों में बाल कलाकार के रूप में काम किया जिसमें ‘यासमीन’, ‘स्त्री’, ‘डॉ विद्या’ आदि उल्लेखनीय है।

चमकदार जीवन की अनोखी शुरुआत :

सोलह वर्ष की उम्र किसी भी युवती के जीवन में उथल-पथल ले आती है। मुमताज़ के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। जीवन का एकमात्र सहारा, उनकी माँ का देहांत हुआ और इसी वर्ष यानि 1963 में फिल्म ‘गहरा दाग’से उन्होने एक नायिका के रूप में अपने फिल्मी कैरियर को शुरू किया। बेशक यह फिल्म उन्हें महान कलाकार दारा सिंह जो उनके रिश्तेदार भी थे, की वजह से मिली थी, लेकिन इसके बाद उनके अभिनय क्षमता का लोहा सारे संसार ने मान लिया। दारा सिंह, जिनके साथ उस समय की कोई हीरोइन काम नहीं करना चाहती थी, मुमताज़ ने काम करते हुए 16 फिल्मों में काम किया। इसमें से 12 फिल्में हिट और सुपर हिट की श्रेणी में रखी गईं । इसके बाद मुमताज़ बी ग्रेड की हीरोइन होने के बावजूद सबसे अधिक मेहनताना लेने वाली हीरोइन बन गईं । दारा सिंह की हीरोइन बनने के साथ ही वो फिल्म ‘राम और श्याम ’ दिलीप कुमार की भी हीरोइन बनी। 

 

 

रजत पर्दे का सुनहरा सफर:

बाल कलाकार से शुरू हुआ फिल्मी जीवन, जूनियर आर्टिस्ट की सीढ़ी को पार करता हुआ बी ग्रेड फिल्मों की हीरोइन पर पहुँच गया। इसके बाद  फिल्म संसार के बड़े निर्देशक और बड़े नाम वाले अभिनेताओं की मनपसंद हीरोइन बनने वाली मुमताज़ जैसी अभिनेत्री आज तक कोई नहीं हुई। शम्मी कपूर के साथ ‘आज कल तेरे मेरे प्यार के चर्चे’ गीत पर थिरकती मुमताज़ कहीं न कहीं अपने जीवन की एक वास्तविकता को ही बयां कर रहीं थीं। इसीलिए इस गाने ने और इसमें पहनी ड्रेस ने मुमताज़ के नाम को फिल्मी जगत के सुनहले आसमां पर पहुंचा दिया। इसके बाद अगले ही वर्ष यानि 1969 में आई ‘दो रास्ते’ में मुमताज़ ने राजेश खन्ना के साथ कुछ इस तरह चूड़ियाँ खनकायीं की यह जोड़ी सुपर हिट जोड़ी के रूप में जानी लगी। राजेश खन्ना के साथ करी गईं 15 फिल्में सुपर हिट रहीं और यह रिकॉर्ड आज तक कोई नहीं तोड़ पाया है। 

 

 

पुरस्कारों का ताज:

अपने समय के हर ऊंचे अभिनेता से काम करके मुमताज़ ने अपने अभिनय का तो लोहा मनवा ही लिया था। संजीव कुमार के साथ अभिनीत उनकी फिल्म ‘खिलौना’ में उन्हें ‘बेस्ट एक्ट्रेस अवार्ड’ से भी नवाजा गया । कहा तो यह तक जाता है की कुछ फिल्मी हस्तियों ने पहले मुमताज़ के साथ काम करने में अपना अपमान समझा और बाद में उन्हीं के कैरियर को बचाने वाली फिल्मों को मुमताज़ ने बेजीझक स्वीकार किया। शशि कपूर इस बात का बहुत अच्छा उदाहरण हैं। ‘सच्चा-झूठा’ फिल्म के समय शशि कपूर का फिल्मी जीवन सफलता की सबसे ऊंची सीढ़ी पर था। इसलिए उन्होने उस समय की उभरती अदाकारा मुमताज़ के साथ काम करने से मना कर दिया। बाद में 1974 में जब मुमताज़ खुद प्रसिद्धि के सबसे ऊंचे पायदान पर थीं तब शशि कपूर के कैरियर को बचाने के लिए बनी फिल्म ‘चोर मचाए शोर’ को न केवल स्वीकार किया बल्कि अपने अभिनय से उसे हिट भी बनाया । शायद इससे खूबसूरत जवाब शशि कपूर को कोई नहीं दे सकता था। 

आसमानी सितारा :

बाईस वर्ष तक सिने जगत पर ‘मॉडर्न ब्यूटी’ के नाम से प्रसिद्ध मुमताज़ 1974 में अपने कैरियर के सबसे ऊंचे पायदान पर थीं। हर नौजवान दिल की धड़कन मुमताज़ ने अपने बचपन के प्यार और साथी से 29 मई 1974 में मयूर माधवानी से शादी कर ली। इस खबर से फिल्मी और गैर-फिल्मी हर नौजवान का दिल टूट गया। एक अच्छी अदाकारा होने के साथ मुमताज़ बहुत सच्ची कलाकार भी थीं। इसीलिए शादी होने के बाद भी वो जिन फिल्मों में उस समय काम कर रहीं थीं उन्हें पूरी लगन और सच्चाई से पूरा किया। ‘आप की कसम’ , ‘रोटी’ ‘प्रेम कहानी’ ‘लफंगे’ और ‘नागिन’ फिल्मों का काम पूरा किया और अपने मन-मीत के साथ लंदन में अपनी गृहस्थी बसा ली।

गुमनामी का दौर:

लाखों दिलों की धड़कन जब किसी एक इंसान के घर की शान बनकर मुमताज़ ने इस जीवन को बहुत शांत तरीके से जिया। दो बहुत खूबसूरत बेटियों नताशा और तान्या की माँ बनकर उन्होने अपने पति के साथ शानदार ग्रहस्थ जीवन बिताया। वैवाहिक जीवन के 16 वर्ष बाद एक बार फिर मुमताज़ ने ‘आँधियाँ’ फिल्म से वापसी करने की कोशिश करी। लेकिन इस फिल्म को पाकिस्तान के फैंस ने सिर माथे लिया लेकिन भारत में वो पुराना मुकाम नहीं प्राप्त कर सकीं। मुमताज़ ने वक़्त की इस नज़ाकत को समझ लिया और फिल्मी संसार को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। उनकी ज़िंदादिली तो तब सामने आई जब ब्रेस्ट कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से लड़कर एक मुस्कुराता चेहरा फिर समाज के सामने ले आयीं। इसी लिए 1996 में ‘फिल्मफेयर अचिवमेंट अवार्ड’ के माध्यम से फिल्मजगत के उनके योगदान को सराहा गया ।

 

 

 

 

Charu Dev

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