मेरी प्यारी मां,
आज ऑफिस से लौटते-लौटते रात के दस बज गए। कोरोना की वजह से सारे दिन मीटिंग ही मीटिंग में व्यस्त रही। एक घंटे से सोने की कोशिश कर रही हूं, लेकिन नींद है कि मुझसे रूठी बैठी है। आपकी बेहद याद आ रही है।
उंगलियों में आपके पेट के तिल की छुअन का एहसास हो रहा है। मन हो रहा है आपके आंचल की छांव में दुबक कर सो जाऊं। खैर, अब हर इच्छा तो पूरी नहीं हो सकती ना। विडियो कॉल भी नहीं कर सकती आपको अभी। बारह बज रहे हैं। आप गहरी नींद में होंगी। टेबलेट पर आपको एक खत लिख कर ही काम चला लेती हूं और आपको व्हाट्सऐप कर देती हूं।

मां, न जाने क्यों आज आपकी एक-एक बात याद आ रही है।
मुझे आज तक अच्छी तरह से याद है, आप मुझे और भाई को एक बार खिलौनों की दुकान ले गई थीं और आपने हम दोनों से कहा था, “अपनी अपनी पसंद के खिलौने ले लो।”
मैंने एक बंदूक चुनी थी जिसे देखकर भैया हंसते हुए मुझे चिढ़ाने लगे, “अरे तू बंदूक का क्या करेगी? तू तो लड़की है। तू तो किचन सेट ले ले,” लेकिन मैं बंदूक लेने की जिद करती रही जिसे देखकर आप ने मुझसे कहा, “तुझे बंदूक से खेलना है तो शौक से ले।” फिर आपने मुझ से पूछा, “बंदूक लेकर मेरी बिट्टो रानी क्या करेगी?”
मैंने इठलाते हुए उनसे कहा था “मां, मां, मैं पुलिस बनूंगी।”
यह सुनकर भाई ने कहा, “तू तो लड़की है। तू क्या पुलिस बनेगी?”
इस पर आप तमक कर उनसे बोलीं थीं, “लड़की है तो क्या हुआ? लड़कियां वह सब कुछ कर सकती हैं जो लड़के कर सकते हैं।” आपकी बात पर मैं खुश होकर चिल्ला उठी थी “ये………. मैं पुलिस बनूंगी।”
आज जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूं, तो पाती हूं कि मेरे पुलिस अफसर बनने में मुझसे ज्यादा आपका योगदान है।

पुलिस बनने के सपने का बीज तो अनजाने ही मेरे अंतर्मन की माटी में न जाने कहां से पड़ गया था लेकिन मां, यह मैं निश्चित तौर पर कह सकती हूं कि वह नन्हा सा बीज समय के साथ मात्र और मात्र आपकी अथक प्रेरणा और हौसला अफज़ाई की धूप, खाद, पानी के दम पर ही तो हरा भरा हो लहलहा आया था। हर लम्हा आप ही तो मेरे कानों में मंत्र फूंकतीं थीं, “बेटा तुझे कड़ी मेहनत कर किसी सार्थक मुकाम पर पहुंचना है। रोटी चूल्हे में अपनी जिंदगी जाया नहीं करनी है।”
मुझे आज भी याद है, पहली बार जब मैं आई.पी.एस की प्रतियोगी परीक्षा में फेल हो गई थी, दादी ने बाबूजी को अपना फैसला सुना दिया था,” बस बहुत हुआ। लड़की जात और कितना पढ़ेगी? अब इसकी शादी कर दो जो यह अपने घर-बार की हो।” उस दिन मैं कितना रोई थी लेकिन रात को दादी के सोने के बाद आप मेरे कमरे में आ गई थीं और आपने मुझे अपने सीने से लगा कर मुझे आश्वस्त किया था कि आप इस बाबत बाबूजी से जरूर बात करेंगी और मैं अगले साल फिर से आईपीएस की तैयारी कर पाऊंगी।
फिर अगली रात आपने बाबूजी को न जाने क्या समझाया था कि अगले दिन ही बाबूजी ने दादी को मुझे एक साल की मोहलत देने के लिए मना लिया। यह कहते हुए कि इसका मन है तो एक साल और परीक्षा की तैयारी कर लेने दो।
आपने मेरे सपने को पंख दिए मां। थेंक यू मां, मुझे मेरा आसमां देने के लिए जिसमें आज मैं जी भर कर उड़ान भर रही हूँ। । मैं आज जो कुछ हूँ, आपकी वजह से हूं। हमेशा याद रखिएगा, मैं आपको बहुत प्यार करती हूं।
ढेर सारा प्यार,
आप की दुलारी बिट्टो
Bachpan ki Kai yaadien jaga gaya ye blog!
Prem aur vaatsalya se otaprot ye laghu katha ati rochak lagi
कहानी को लिखने की कला मे कहानीकार रेणु गुप्ता में काफी निखार आया है। कहानी के पात्रों के नाम वह चुन चुन कर रखती हैं। पहले की कहानियों की बनिस्बत आज की कहानिया पढने में काफी रोचक रहती हैं। लेखन की भाषा व कला बहुत ही सुंदर रहती है। आजकल की कहानियों को पढ़ते हुए लगता है कि कहानी के परिवेश में हम भी एक हिस्सा है।
इन सब रोचक व शिक्षाप्रद कहानियों की प्रस्तुति देखते हुए में मैं रेणु जी के उज्वल भविष्य की कामना करता हूं।
पूरी कहानी इतनी सुंदर व सामयिक लगी कि इसे मुझे ठीक से सेलेक्ट करके अपने fb पर डालना ही पड़ा। कहानीकार की लेखन शेली में पहले से बहुत निखार आया है। रेणु जी के उज्वल भबिष्य की कामना करता हूं।
Nahut kuch yaad aaya ise padh ke