ये आंकड़े उस सफर के हैं जो एक 50 वर्ष की माँ ने लॉकडाउन में फंसे अपने बेटे को वापस सही सलामत घर पहुँचने के लिए तय किया। सलाम है हमारा तेलंगाना की रज़िया बेगम को!
देखें क्या है माजरा:
23 मार्च 2020 को भारत में कोरोना वायरस के कारण फैली महामारी पर रोक लगाने के लिए पूरे भारत में लॉकडाउन घोषित कर दिया गया। यह सरकारी घोषणा इतनी अप्रत्याशित थी, कि जो व्यक्ति जहां और जिस रूप में था, उसे वहीं 21 दिन के लिए रुक जाना पड़ा।
कुछ ऐसा ही तेलंगाना राज्य के निजामाबाद जिले के 17 वर्षीय मोहम्म्द निज़ामुद्दीन के साथ भी हुआ। था। निज़ामुद्दीन ने इसी वर्ष बारहवीं की कक्षा पास करके अपने दोस्त के साथ मेडिकल के एग्जाम के लिए तैयारी करने का निश्चया किया था। मार्च के शुरू में निज़ामुद्दीन के दोस्त को नेल्लोर जिले में अपने पिता के अस्पताल में भर्ती होने की सूचना मिली और उसके बाद दोनों दोस्त नेल्लोर के लिए चले गए।
निजम्मूद्दीन की पचास वर्षीय माँ रज़िया बेगम एक सरकारी शिक्षिका हैं और 12 वर्ष पूर्व पति के स्वर्गवास हो जाने के बाद वे अपने 19 वर्षीय बेटे निज़ामुद्दीन और एक बेटी का पालन पोषण अकेले ही कर रही हैं।
नेल्लोर से निज़ामुद्दीन को 24 मार्च को वापस अपने शहर बोधन आ जाना था। लेकिन अचानक हुई इस सरकारी घोषणा के कारण वह अपने घर वापस नहीं आ सका था। इस बीच रज़िया बेगम को अपने बेटे की कोई खबर नहीं मिल सकी थी।
लॉकडाउन हो जाने के कुछ दिन बाद जैसे ही रज़िया को निज़ामुद्दीन की खबर मिली तब उन्होनें अपने बेटे को इतनी दूर न छोड़ने का निश्चय किया और स्वयं ही उसे वापस घर लाने का बीड़ा उठा लिया। इसके लिए रज़िया बेगम ने अपने इलाके, बोधन शहर के असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर वी जयपाल रेड्डी से मदद मांगी जिन्होनें रज़िया बेगम की परेशानी समझते हुए उन्हें इमरजेंसी पास बना कर दे दिया। इसके साथ ही बोधन से नेल्लोर मार्ग में पड़ने वाले पुलिस थानों में भी इस संबंध में सूचना देकर उनसे रज़िया बेगम की मदद करने की सूचना भेज दी।
रज़िया बेगम ने सोमवार 6 अप्रैल के दिन सुबह नेल्लोर के लिए अपनी स्कूटी पर अपना सफर शुरू किया और 700 किमी तक का रास्ता बिना धूल-गर्मी की परवाह किए तय कर लिया । नेल्लोर पहुँच कर रज़िया ने बिना कोई पल गंवाए अपने बेटे को स्कूटी पर पीछे बैठा कर वापसी घर की तरफ रुख किया और बुधवार सुबह यानि 8 अप्रैल 1400 किमी (लगभग 1000 मील) का सफर केवल एक स्कूटी पर तय करते हुए अपने घर पहुँच गईं।
रज़िया ने इस सफर में हर दो घंटे के सफर पर रुककर आराम किया और इसके बाद आगे की राह ली। यह सलाह उन्हें आंध्र प्रदेश पुलिस की उस बैरिकेड से मिली थी जिसने उन्हें सबसे पहले रोका था। इस तरह वो बिना थके आराम से अपनी मंज़िल पर पहुँच गईं और अपने बेटे से मिलकर उसे अपने साथ स्कूटी पर बैठा लिया ।
जब रास्ते में अलग-अलग पुलिस बैरिकेड ने रोका तब उन्होनें अपने पास रखा इमरजेंसी पास दिखा दिया जिसके बाद उन्हें आगे जाने की इजाजत आसानी से मिलती चली गई।
इस समाचार को पढ़ने के बाद कहा जा सकता है कि माँ कि ममता उसे हर हाल में आगे बढ्ने की न केवल राह दिखाती है बल्कि राह में आने वाली मुश्किलों को पार करने का हौसला भी देती है।
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