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एक माँ ने भेजी अपने बच्चे की स्कूल टीचर को इ-मेल की अब से और नहीं करेगी उनकी बेटी होमवर्क !!

आजकल सोशल मीडिया ने पूरी पृथ्वी को एक घर जैसा वातावरण दे दिया है। कहीं किसी भी कोने पर अगर कुछ भी होता है तो उसका असर दुनिया के हर हिस्से पर होता है।

कुछ ऐसा ही हुआ 26 अप्रैल 2017 को जब क्यूबा की एक माँ ने अपनी बेटी को उसके होम वर्क के दबाव से बचाने के लिए उसके स्कूल में गुहार लगाई।

यह आवाज स्कूल की दीवारों से निकलकर फेसबुक के शब्दों पर चढ़कर सारी दुनिया में फैल गयी और हर वो माता-पिता जिनके बच्चे स्कूल के बस्ते के तले दबे हैं, इस आवाज के साथ अपने सुर मिलाने लगे। आइये देखें की असल वाक्या क्या था….

 

वो तूफानी मेल:

25 अप्रैल 2017 को क्यूबा के छोटे से इलाके की एक साधारण सी लगने वाली माँ को लगा की उसकी 10 साल की छोटी सी बेटी की सेहत में गिरावट आ रही है। इसका कारण उन्होने ढूंढा तो पता लगा की उस बच्ची को होम वर्क के कारण न तो खेलने का समय मिलता है और न ही अपने परिवार और दोस्तों से मिलने का समय मिलता है। उस नन्ही सी बच्ची पर होम वर्क का दबाव इतना जबर्दस्त है की उसका सोना और खाना भी कम हो गया है। 

My kid is done with homework. I just sent an email to her school letting her know she’s all done. I said “drastically…

Posted by Bunmi Laditan on Tuesday, 25 April 2017

एक माँ के लिए यह चिंता का विषय था और उन्होने फौरन इसकी सूचना उस बच्ची के स्कूल को दे दी। सोशल मीडिया के असर को पहचानते हुए उन्होने अपनी और स्कूल की लिखित बातचीत को एक पोस्ट के जरिये फेसबुक पर भी शेयर कर दिया। पलक झपकते ही दुनिया भर के घरों में यह पोस्ट पहुँच गयी और सभी माता-पिता का इसको समर्थन भी मिल गया।

 

मिलियन डॉलर का प्रश्न:

इस पोस्ट ने समाज के सामने यह सवाल खड़ा किया की क्या बच्चों को होम वर्क दिया जाना चाहिए या नहीं। ज़्यादातर बच्चों के माता-पिता जिसमें अध्यापक वर्ग भी शामिल है इस प्रश्न के नकारात्मक उत्तर के साथ खड़ा है। उन लोगों का मत है की एक छोटा बच्चा अपना अधिकतर समय स्कूल में बिता देता है। उसके बाद घर आते ही वही बच्चा अपने होम वर्क के दबाव में आ जाता है और उसके घर के समय का एक बड़ा हिस्सा उस काम में चला जाता है।

 कभी-कभी तो बच्चे काम के दबाव के चलते खाना-पीना भी भूल जाते हैं या फिर उन्हें समय नहीं मिलता है। ऐसे में सामाजिक व्यवहार का तो प्रश्न ही नहीं उठता है। इसलिए इन लोगों का मानना है की बच्चे स्कूल में जितना सीख लेते हैं उतना उनके सम्पूर्ण विकास के लिए काफी है।

इसके अलावा जब वे परिवार और समाज के साथ समय ही नहीं बिता पाएंगे तो व्यावहारिक ज्ञान और उससे जुड़ी बातें बच्चे कैसे सीख पाएंगे। कहा भी गया है की परिवार, मानव का पहला स्कूल होता है और माता-पिता पहले शिक्षक होते हैं। अब सबके सामने मिलियन डॉलर प्रश्न यह है की अगर कोई बच्चा न तो अपने पहले स्कूल में जाएगा और न ही अपने पहले शिक्षकों के संपर्क में आएगा तो क्या उसके द्वारा लिया गया ज्ञान सम्पूर्ण कहलाएगा।

बस्ते का दर्द :

आज के युग का नन्हा बालक चलना शुरू करते ही निंदियाती आँखों से और तुतलाती बोली से अपनी नन्ही आँखों को उन किताबों पर टीका देता है जो समाज के अनुसार उसे ज्ञान दे रही हैं।  

वास्तव में उन्हें ज्ञान मिल रहा है या दर्द…..यह सोचने का समय अब आ गया है।

Charu Dev

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