कल ही हमारी कॉलोनी के क्लब में एक सांस्कृतिक कार्यक्रम था । प्रोग्राम शुरू हो चुका था लेकिन मेरी फास्ट फ्रेंड आशिमा का कहीं अता-पता नहीं था।
कुछ देर बाद वह बेहद हैरान परेशान मन: स्थिति में, अस्त-व्यस्त वेशभूषा में, अपने 2 वर्षीय बेटे को गोद में उठाए आती दिखीं और मुझे देखते ही फट पड़ी, “अरे रेणु, क्या बताऊं? कल से काव्यम को वायरल फीवर हो रहा है। उसकी आया पिछले 2 दिनों से छुट्टी पर है। मेरे ऑफिस में ऑडिटिंग चल रही है। मेरे सीनियर ने सख्त ताकीद कर रखी है इस हफ्ते किसी की छुट्टी ग्रांट नहीं होगी, लेकिन मुझे छुट्टी लेनी पड़ रही है। अचानक छुट्टी लेने पर ऑफिस वाले मुझ पर क्या ऐक्शन लेंगे, यह सोच सोच कर ही मुझे दहशत हो रही है। कहीं नौकरी पर ही आंच ना आ जाए यूं इस तरह घर बैठ जाने पर। इस नौकरी की मुझे सख़्त जरूरत है। इसी के भरोसे मेरे फ्लैट और गाड़ी की किश्त जा रही हैं। उफ़, कितनी मुसीबतें एक साथ मेरे ऊपर आ पड़ी हैं।”
“चल, चल तसल्ली से बैठ और तनिक चैन की सांस ले। कोई नौकरी नहीं जाएगी तेरी। और ये तेरी आंखें क्यों सूज रही है इतनी?”
“अरे यार, क्या बताऊं? आज काव्यम की बीमारी के चलते फिर से अर्णव से मेरा झगड़ा हो गया। अर्णव के ऑफिस में उसकी कंपनी के चेयरमैन का इंस्पेक्शन है आज। तो वह भी लीव नहीं ले सकते थे। बस कौन छुट्टी लेकर काव्यम के साथ रहे घर पर, इसी बात पर हम दोनों के बीच महाभारत छिड़ गया और अर्णव गुस्से में सुबह बिना खाना पीना खाए ऑफिस चले गए।”
तो देखा आपने, यह थी एक बानगी एकल परिवार में रहने वाले एक नौकरी पेशा दंपति की जद्दोजहद की जिस का सामना उन्हें आए दिन करना पड़ता है। क्या आपको नहीं लगता आशिमा अर्णव अगर आज जॉइंट परिवार में रह रहे होते तो उन्हें इस तरह की मुसीबतों का सामना नहीं करना पड़ता। यहां आप कह सकती हैं कि जॉइंट फैमिली में रहने के अपने अलग नुकसान हैं। कदम-कदम पर एडजस्टमेंट और कॉम्प्रोमाइज करने पड़ते हैं। यदि सासू मां, ननद रानी और परिवार के अन्य सदस्यों से नहीं पटी तो मानसिक शांति भंग होती है। फिर जॉइंट फैमिली में वह प्राइवेसी और स्वतंत्रता नहीं मिल पाती जिसकी कि अधिकतर युवतियां अपेक्षा करती है। उन्हें कदम कदम पर घर के बड़े बुजुर्गों द्वारा खींची गई अनुशासन की लक्ष्मण रेखा के भीतर रहते हुए एक मर्यादित जीवन जीने की कष्टप्रद कवायद करनी पड़ती है। इन सब के संदर्भ में अब हम एकल परिवार वर्सस संयुक्त परिवार पर चर्चा करेंगे जिन्हें पढ़कर आप स्वयं निर्णय लें कि आपको एकल परिवार एवं संयुक्त परिवार में से कौन सा विकल्प चुनना है?
यदि आप अपने बच्चे को आया के भरोसे अकेले घर में छोड़कर नौकरी पर जाएंगी तो शायद ही आप कभी अपने बच्चे की सुरक्षा के प्रति पूर्ण पूरी तरह से आश्वस्त हो पाएंगी। आया द्वारा बच्चे को अफीम या अन्य नशीली चीज देकर देर तक सुलाये रखने या उसके फिजिकल अब्यूज़ की आशंका को भी आप पूरी तरह से नकार नहीं सकती हैं। जॉइंट फैमिली में बुआ दादी की गोद में बच्चा छोड़कर जाना आपको कितना मानसिक सुकून देगा आप ही सोचें।
परिवार में बच्चे को महज़ आया के भरोसे छोड़ने पर बच्चा उससे शायद ही कुछ पॉजिटिव ग्रहण करे जबकि जॉइंट परिवार में दादा, दादी, बुआ के सानिध्य में रहकर आपका बच्चा परस्पर ऐडजस्टमेंट, शेयरिंग एवं केयरिंग का जज्बा आत्मसात करेगा जो उसके व्यक्तित्व को एक पॉजिटिविटी प्रदान करने के साथ-साथ उसे एक बेहतर इंसान भी बनाएगा।
संयुक्त परिवार में बड़े बुजुर्ग जाने अनजाने जीवन के हर कदम पर बच्चों का मार्गदर्शन करते हैं, उन्हें सही गलत का भान करवाते हैं। इस तरह उनके व्यक्तित्व में नैतिक गुणों का समावेश होता है और किशोरावस्था में उनके भटकाव की संभावना अपेक्षाकृत कम हो जाती है। नौकरी पेशा माता-पिता की अनुपस्थिति में किशोरावस्था की राह पर कदम रखते बच्चों के लिए आज कदम कदम पर भटकाव के अनगिनत साधन मौजूद हैं। आज के परिदृश्य में पौर्न साहित्य अथवा वीडियो पढ़ना देखना, गलत कंपनी, ड्रग जैसे अनेक टेंप्टेशन हैं जिनके चंगुल में फंस कर अनेक किशोर अपनी जिंदगी बर्बाद कर लेते हैं। इसके विपरीत संयुक्त परिवार में बुजुर्गों की देखरेख में बच्चे बहुत हद तक महफूज रहते हैं।
एकल परिवार में अधिकांशतः माता-पिता की गैर मौजूदगी में बच्चे अंतर्मुखी हो जाते हैं जो उनके व्यक्तित्व में एक नेगेटिव आयाम जोड़ता है और यह आज के गला काट प्रतिस्पर्धा के युग में कतई उचित नहीं लेकिन जॉइंट परिवार में पले बढे बच्चों में यह प्रवृति कम देखने को मिलती है।
बच्चे वही करते हैं जो वह अपने अभिभावकों को करते हुए देखते हैं। यदि आज आपके बच्चे आपको अपने माता पिता की सेवा करते हुए देखते हैं तो यकीन मानिए वे निश्चित ही आपसे बड़े बुजुर्गों की केयरिंग एवं सेवा का सबक सीखते हुए भविष्य में आप के बताए मार्ग का अनुकरण करेंगे।
जॉइंट परिवार में रहना आपके पति को अपने माता-पिता के जीवन के सांध्य काल में उनके निकट रह उनकी वृद्धावस्था संवार पाने की सुखद संतुष्टि का अहसास कराएगा। इसमें आपकी बराबर की सहभागिता के चलते यकीनन वह आपके प्रति शुक्रगुजार होंगे और यह निश्चित ही आप दोनों की बौंडिंग को और मजबूती प्रदान करेगा।
यहां हम जॉइंट परिवार की वकालत करने के उद्देश्य से उनके प्लस पॉइंट नहीं गिना रहे। कई बार अनेक बुजुर्गों में समुचित समझदारी एवं मैच्योरिटी के अभाव और अहम की ज्यादती से जॉइंट परिवार के अन्य सदस्यों में अनावश्यक कटुता एवं कड़वाहट घर कर लेती है, जिसकी परिणति अंततोगत्वा उसके बिखराव में होती है।
यहां मैं यह कहना चाहूंगी कि यदि संयुक्त परिवार में आपको वह मान सम्मान और लाड़ दुलार नहीं मिल रहा जिसकी कि आप हकदार हैं तो फिर जॉइंट परिवार में रहने का कोई औचित्य नहीं। संयुक्त परिवार में नाखुश रहकर घुट घुट कर जीने से बेहतर है उनसे अलग होकर उनसे अच्छे संबंध बनाए हुए उन से दूर एकल परिवार में रहना परंतु यदि आपके ससुराल में आपको भरपूर प्यार मान-सम्मान मिल रहा है और वहां थोड़ी बहुत मामूली अड़चनों के साथ आप भरपूर मानसिक शांति एवं सुकून के साथ जी पा रही हैं तो उसे छोड़ने की भूल कदापि न करें।
याद रखें माता पिता के नि:स्वार्थ प्यार का कोई मोल नहीं और उनका जी दुखाने से गुरुतर कोई अपराध नहीं। प्यार, सम्मान, क्षमा भाव से परिपूर्ण एक संयुक्त परिवार एक ऐसी बेशकीमती नियामत है जो बिरलों को ही नसीब होती है। अतः इस मुद्दे पर बहुत सोच समझ कर ही निर्णय लें कि आपको इन दोनों विकल्पों में से कौन-सा चुनते हुए सुकून भरे इंद्रधनुषी जीवन के मार्ग पर आगे बढ़ना है।
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