मन मत और गुरुमत में क्या अंतर है? यह जाने से पहले हमे यह जान लेना चाहिए, कि मनमत किसे कहते और गुरुमत का क्या अर्थ होता है।
मनमत का मतलब यह है, कि आप अपनी मर्जी यानि कि अपनी मन की सोच के हिसाब से सारे काम करते हैं। अपनी सोच के मुताबिक ही जीवन के या कोई भी अन्य फैसले लेते हैं।
चाहे फिर वो सही दिशा में लिए गए हो या नहीं , चाहे फिर आपको उस चीज का ज्ञान हो या न हो, आपको उससे कोई भी मतलब नहीं होता है। आप अपनी मत के अनुसार ही सारे फैसले करते हैं।
गुरुमत का अर्थ होता है, कि आपके जीवन में कोई मार्गदर्शक है. जो आपके जीवन की सही राह दिखाने का कार्य कर रहा है। आप अपने फैसले उस गुरु की मदद से लेते हैं या उनके विचारो के अनुरूप ही कोई भी कार्य करते हैं।
आपके गुरु या इष्ट की सलाह आपके जीवन के अंधकार को दूर कर आपकी जिंदगी को नयी रोशनी की तरफ ले जाती है। जिस तरह से अर्जुन ने श्री कृष्ण की विचारधारा को मस्तिष्क में रखते हुए महाभारत का युद्ध जीता था।
यह गुरुमत का ही फल है, कि वह मनुष्य को बुरे कार्य और लोगों से बचाती है।
कंस जो बहुत ही अत्यधिक विद्वान था। धन की कोई कमी नहीं थी , राजपाठ से लेकर जीवन की हर सुख सुविधा थी उसके पास लेकिन उसका अंत भयावह हुआ। क्यों ? क्योंकि उसके पास कमी थी गुरु मत की, वह अपने ही विचारो में मगन था.
उसे यह तक नहीं पता था, कि उसके द्वारा किये कार्य असल में पाप है। अपने मनमत के कारण उसने असंख्य पाप किए , लोगों के साथ अन्याय किये, क्योंकि उसके पास कोई ऐसा गुरु ही नहीं था, जो उसके जीवन को सही दिशा में ले जा सके।
यही फर्क है, मनमत और गुरुमत में। अपने अनुसार हर कार्य को करना और उसका अपना ही सिद्धांत बना देना मन मत है। चाहे फिर यह सब वास्तविकता में हो या नहीं. इससे उन लोगो को कोई फर्क नहीं पड़ता है।
अन्धविश्वास भी मनमत से ही उपजता है। धर्म में क्या लिखा गया है, हमारे इष्ट या गुरु द्वारा क्या शिक्षा दी गयी है, कोई लेना देना नहीं होता बस अपने मन मुताबिक कोई भी चीज को सत्य करने की कोशिश करना।
जहाँ गुरुमत होती है, अपने गुरु की आज्ञा का ही पालन करना हमारा परम धर्म हैं.
उनपर पूर्ण रूप से विश्वास रख कर उनकी दिखाए हुए मार्ग पर बढ़ना। गुरुमत जहाँ जीवन को नयी ऊंचाइयों पर ले जाती है, वहाँ मनमत आपको डूबो भी सकती है
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