श्रावण मास के शुरुवात के साथ ही शुरू हो जाता है व्रत, त्योहार और पूजा का सिलसिला। ऐसी मान्यता है कि शिव शंकर और माँ पार्वती को श्रावण मास अधिक प्रिय है। इसीलिए इस मास में किए हुए व्रत का फल अति शीघ्र ही मिल जाता है। सावन सोमवार व्रत की पूजा विधि हम आपको पहले बता चुके हैं। आज चर्चा करते हैं मंगला गौरी व्रत की।
मंगला गौरी व्रत कुँवारी कन्याओं ओर सुहागनों द्वारा अपने जीवन-साथी की दीर्घ आयु के लिए रखा जाता है। जिस भी कन्या के विवाह में कोई बाधा आ रही हो या फिर दांपत्य जीवन मे किसी को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, तो वह इस व्रत को रखकर अपनी परेशानी का समाधान पा सकता है।
यह व्रत श्रावण मास के हर मंगलवार को रखा जाता है। इसकी एक बार शुरुवात करने के बाद इसे आने वाले पाँच वर्षों तक किया जाता है। इस वर्ष यह व्रत 23 जुलाई, 30 जुलाई, 6 अगस्त और 13 अगस्त को आएगा।
मंगला गौरी व्रत में उपयोग होने वाली ज़्यादातर सामग्री 16 की संख्या में होती है क्योंकि यह अंक सुहागनों के लिए अत्यंत शुभ होता है।
व्रत के दिन सुबह ब्रम्ह मुहूर्त में उठकर अपने नित्य कर्मो के पश्चात स्नान कर गौरी पूजन किया जाना चाहिए। इस व्रत में केवल एक बार अन्न धारण किया जाता है।
स्नान के बाद कोरे वस्त्रो को धारण कर पूर्व दिशा की ओर मुख कर पूजन की शुरुवात करें। एक बड़ी चौकी लें ओर उस पर आधी जगह लाल और आधी जगह सफेद कपड़े बिछाएं। सफेद वस्त्र पर चावल की 9 छोटी-छोटी ढेरी बनाये और लाल कपड़े पर गेंहू की 16 ढेरी बना कर रखे।
चौकी पर अब थोड़े से चावल लेकर उसके ऊपर पान रख कर गणेश जी की प्रतिमा रखे और उसी तरह थोड़े गेंहू पर कलश (लोटा रखकर उसमे पांच पान लगाकर नारियल) रखें। चौमुखी दीपक पर 16 तार वाली चार बत्तियां लगाकर उसे प्रज्वलित कर दें।
सबसे पहले गणेशजी की प्रतिमा को स्नान करवा कर उसका पूजन करें। तत्पश्चात चावल की 9 ढेरियों को नवग्रह स्वरूप ओर गेंहू की नौ ढेरी को माँ गौरी स्वरूप मानकर उसका पूजन करें।
इसके बाद एक थाली में मिट्टी लेकर माँ गौरी की प्रतिमा बनाएं या बनी हुई प्रतिमा को चौकी पर रखें। माँ गौरी को पूजन सामग्री, सुहागन पिटारी, फूल और माला चढ़ाएं।
फिर ‘मम पुत्रापौत्रासौभाग्यवृद्धये श्रीमंगलागौरीप्रीत्यर्थं पंचवर्षपर्यन्तं मंगलागौरीव्रतमहं करिष्ये’ मंत्र का जाप करें।
कुँवारी कन्याएं नीचे दिये मंत्र का जाप करें:
ओम् हीं मन वांछित वरम देहि वरम देहि हिरीम ओम गौरा पार्वती नम:!
ओम देहि सौभाग्यम, आरोगयम् देहि मम परम सुखम,
रुपम देहि जयम देहि यशो देहि दिशो जहि!!
इसके बाद ‘ कुंकुमागुरुलिप्तांगा सर्वाभरणभूषिताम्।
नीलकण्ठप्रियां गौरीं वन्देहं मंगलाह्वयाम्..।।’ मंत्र का जाप कर षोडशोपचार पूजन ( ध्यान-आवाहन, आसन, पाद्यं, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, यज्ञोपवीत, गंधाक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवैद्य, ताम्बूल, दक्षिणा, जल-आरती, मंत्र पुष्पांजलि, प्रदक्षिणा-नमस्कार स्तुति)।
इसके बाद मंगला गौरी की कथा कर आरती करें। अगले दिन माँ गौरी की प्रतिमा को विसर्जित कर दें।
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