भारतीय सिनेमा एवं टेलीविज़न में मंगलसूत्र ने प्रेम, परिवार एवं परंपरा को एक धागे में पिरोने का काम बखूबी निभाया हैं| 1981 की हॉरर थ्रिलर फिल्म मंगलसूत्र से लेकर घर की चहेती बहु तुलसी तक सबने इसकी महिमा के बखान में को कसार नहीं छोड़ी हैं | लेकिन बात अगर आज के बदलते समाज और धारणाओं की जाएं तो यह कहना गलत नहीं होगा की महिलाओं की मंगलसूत्र को लेकर सोच में काफी बदलाव आएं है | इस लेख का उद्देश्य किसी की व्यक्तिगत भावनाओं पर प्रहार करना नहीं बल्कि ऐसे विभिंन तर्कों का विश्लेषण करना हैं जो निरंतर बदलते समाज में महिलाओं और मंगलसूत्र के रिश्ते को रेखांकित करते हैं|
इस मुद्दे से जुडें कुछ प्रमुख दृष्टिकोण इस प्रकार हैं:
मंगलसूत्र के विषय में जब हमने ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों की कई अविवाहित और विवाहित महिलाओं से बात की, तब हमने ये जाना कि मंगलसूत्र से अधिक लगाव ग्रामीण क्षेत्रों या छोटे शहरों की कम पढ़ी–लिखी घरेलू महिलाओं को है| सुहाग के इन प्रतीक चिन्हों में मुख्य रूप से बिंदी, सिन्दूर, मंगलसूत्र, चूड़ी, बिछिया, महावर, नथनी, मेहंदी इत्यादि को विवाहित महिलायें विवाहित होने गर्व के साथ धारण करती हैं| सहारनपुर की आँचल गुप्ता के अनुसार “मंगलसूत्र एक विवाहित महिला के व्यक्तित्व का अभिन्न हिस्सा हैं और अपने परिवार एवं परम्पराओं को समर्पित गृहणी के लिए इसे पहनना सौभाग्य की बात होती हैं|”
जहाँ एक ओर मंगलसूत्र को श्रृंगार का अभिन्न अंग माना गया हैं वहीँ दूसरी ओर बहुत सारी महिलायें मंगलसूत्र को दासता का प्रतीक और स्त्री के पुरुष से कमजोर होने का सूचक मानती हैं | 2015 में चेन्नई में तमिल सुधारवादी संगठन ‘द्रविड़र कझगम (डीके)’ द्वारा आयोजित एक इवेंट में 21 विवाहित हिन्दू स्त्रियों ने अपने मंगलसूत्र को हमेशा के लिए अपने गले से उतार दिया | ऐसा उन्होंने इसलिए किया क्योंकि उनकी दृष्टि में मंगलसूत्र महिलाओं की गुलामी का प्रतीक है |
हाल ही में कानपुर की एक गरीब महिला लता देवी ने अपने घर में शौचालय बनवाने के लिए अपने सुहाग की निशानियों मंगलसूत्र, पायल, बिछिया, और इनके अलावा भैंस के एक बच्चे को बेचकर 10 हजार रूपये इकट्ठे करके घर में शौचालय बनवाया| गरीब होते हुए भी ऐसा कदम उठाकर लता देवी ने ये सिद्ध किया है कि मंगलसूत्र या अन्य सुहाग की निशानियों को धारण करने से भी ज्यादा महत्वपूर्ण ऐसे कई काम हैं जो महिलाओं के जीवन में ख़ास महत्त्व रखते हैं|
बड़े शहरों में रहनेवाली महिलाओं में जो उच्च शिक्षित महिलायें हैं, उनमें से अधिकतर मंगलसूत्र को एक पारंपरिक गहना मात्र समझती हैं | इसे हर दिन पहनना उनकी दृष्टि में अनावश्यक है | अपनी पढाई और कैरियर पर फोकस करने के कारण आधुनिक महिलाओं को दौड़भाग वाली जिन्दगी जीनी होती है | ऐसे में हर दिन मंगलसूत्र पहनना आधुनिक महिलाओं के लिए सहज भी नहीं है |
आधुनिक महिलायें अब पारंपरिक परिधानों को भी केवल विशेष अवसर पर पहनना ही पसंद करती हैं | हर रोज के लिए उन्हें जींस, टीशर्ट, स्कर्ट, टॉप, शर्ट, ट्राउजर जैसे आधुनिक और आरामदायक पहनावे ही ज्यादा पसंद आते हैं | कई बार महिलायें ऑफिस में अपनी छवि ट्रेडिशनल भारतीय महिला की नहीं दिखाना चाहती हैं | एक मॉडर्न, लॉजिकल, और प्रोग्रेसिव महिला की छवि दिखाना उनकी प्रोफेशनल ग्रोथ के लिए भी जरूरी होता है | इसलिए भी वो मंगलसूत्र जैसे जेवर नहीं पहनना चाहती हैं या मॉडर्न डिजाईन का मंगलसूत्र पहनती हैं जो किसी सिंपल नेकलेस की तरह दिखे |
आवश्यक हो या अनावश्यक, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि मंगलसूत्र को लेकर सबकी अपनी सोच हैं| हमारी राय में हर महिला को, शहरी या ग्रामीण, अपनी समझ एवं सहजता के अनुसार इसे धारण करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए | इस लेख का अंत हम लता देवी द्वारा कही गयी एक बेहद सुन्दर बात से करना चाहेंगे जो कहती हैं, “अच्छे वैवाहिक जीवन और परिवार की सुख शांति के लिए सुहाग की निशानियों से ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि पति और पत्नी के मन में एक–दूसरे के लिए और परिवार के अन्य सदस्यों के आदर और प्रेम के भाव बने रहें | रिश्तों में ईमानदारी बरतना और अपनी जिम्मेदारियों का एहसास होना सबसे ज्यादा मायने रखता है |”
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