पहले के ज़माने में धूम्रपान को सिर्फ मर्दो से जोड़कर देखा जाता था, मगर बदलते समय के साथ, महिलाओं में भी ये धूम्रपान की लत देखी जा रही है, और समय के साथ इस लत में इजाफा ही हुआ है.
आजकल तो हर जगह आपको सिगरेट पीते हुए महिलाएँ मिल जाएंगी. वैसे तो बड़े बुजुर्ग इसे विदेशी प्रथाओं का प्रभाव मानते हैं, और इसे गन्दी नज़रो से लोग देखते है. कुछ जगह तो इस पर पाबन्दी भी लगाई गयी है. मगर लड़कियां इसे एक अलग ही नज़रिये से देखती हैं.
हमारे समाज में लड़कों को तो तरह तरह की आज़ादी मिली, लेकिन जब बात लड़कियों की आई तो आज भी उन्हें वही बेरियों में जकड़ी ज़िन्दगी जीनी पड़ती है. लड़के रात भर बाहर घूमे , सिगरेट पिए कोई दिक्कत नहीं, पर लड़कियों को इनसब में पांबंदी है.
तो शायद इसलिए बढ़ते विकास के साथ लड़कियों ने भी इसे अपने सशक्तिकरण का जरिया बना लिया. अब कहने को तो ये आदतें सेहत के लिए नुक्सानदेह है, मगर महिलाओं को अगर इनसे रोको तो उनके लिए ऐसी बात हो जाएगी, कि उन्हें दुबारा बेरियो में जकरा जा रहा हो.
कुछ कारण हमारे समाज में घुल रहे पश्चिमीकरन का भी है, जिससे लोगो को ये लगता है, कि वे जो कुछ भी कर रहे है वो सही है, और इसमें कोई बुराई नहीं है. मगर असल में ये गलत है.
हम ये नहीं कह रहे,कि पश्चिमी पद्धति अपनाना गलत है या महिलाओं को आज़ादी मिलना गलत है. बुरी आदतों का संलग्न करना और उसे अपना सशक्तिकरण कहना गलत है. आज़ादी और गलत आदतें कभी एक साथ जोड़ी नहीं जा सकती. हर चीज़े अपने हद्द में सही है, लेकिन अगर चीज़े बुरी हो तो उनका साथ कभी नहीं देना चाहिए.
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