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महाभारत की छोटी-छोटी दिलचस्प कहानियां: श्रृंखला – १

महाभारत महाकाव्‍य के बारे में सभी जानते हैं, जिसमें पाँच पाण्‍डवों और सौ कौरवों के मध्‍य हुए भीष्‍ण युद्ध का विस्‍तृत वर्णन किया गया है। यह युद्ध कुरूक्षेत्र नामक स्‍थान पर लड़ा गया था। इस युद्ध के दौरान ही भगवान श्रीकृष्‍ण ने अर्जुन को महान उपदेश दिया था, जो आज भागवत गीता के रूप में हमारे पास उपलब्‍ध है।

परंतु इन सब के अलावा भी कई और रोचक कहानियां हैं महाभारत की, जिनके बारे में शायद कम ही लोग जानते हैं। तो चलिये महाभारत की छोटी-छोटी अनकही व दिलचस्‍प कहानियों से आपको अवगत कराते है।

कहानी # १: दुर्योधन vs गन्धर्व देव 

महाभारत युद्ध से काफी पहले जब पाण्डव वनवासी जीवन व्‍यतीत कर रहे थे, तब जिस तालाब के निकट पाण्‍डव विश्राम कर रहे थे, उसी तालाब के दूसरी छोर पर दुर्योधन स्‍नान कर रहा था। उसी समय वहाँ स्‍वर्ग से गंधर्व देव का आगमन होता है और किसी बात को लेकर दुर्योधन का उनसे युद्ध हो जाता।

इस युद्ध में दुर्योधन पराजित होता है और उसे बंदी बना लिया जाता है, तब अर्जुन वहाँ आकर दुर्योधन की सहायता करते है और उसे स्‍वतंत्र कराते है। क्षत्रिय होने के नाते दुर्योधन अर्जुन से वरदान मांगने को कहते है, जिस पर अर्जुन कहते है, कि समय आने पर वे मनचाहा वरदान मांग लेंगे।

2. दुर्योधन का वरदान 

युद्ध के दौरान, श्रीकृष्‍ण अर्जुन को उस वरदान के विषय में स्‍मरण कराते हुए कहते हैं, कि वह दुर्योधन के पास जाकर पाँच दिव्‍य स्‍वर्णिम तीरों को वरदान स्‍वरूप मांगें। जब अर्जुन दुर्योधन के पास जाते है, तब वह अचंभित हो जाता है, लेकिन क्षत्रिय धर्म को निभाते हुए दुर्योधन वरदान के रूप में अर्जुन को वह तीर दे देते है। इसके बाद दुर्योधन भीष्‍म पितामह के पास जाकर निवेदन करते है, कि वे उसे पाँच दिव्‍य स्‍वर्णिम तीर और प्रदान करें।

इस बात को सुनकर पितामह मुस्‍कुराते हुए कहते है, ” पुत्र, यह संभव नहीं है”।

कहानी #३: बलराम पुत्री वत्सला का विवाह

अभिमन्यु की पत्नि वत्‍सला बलराम की पुत्री थी। बलराम चाहते थे कि उनकी पुत्री का विवाह दुर्योधन के पुत्र लक्ष्मण से संपन्‍न हो, परंतु अभिमन्यु और वत्‍सला एक-दूसरे से प्रेम करते थे और विवाह करना चाहते थे। इस कार्य के लिए अभिमन्यु ने अपने भाई घटोत्‍कच की सहायता लेते है।

घटोत्‍कच लक्ष्मण को भयभीत कर वत्‍सला को अपने साथ ले जाकर भाई अभिमन्यु के साथ उनका विवाह संपन्‍न करा देते हैं। लक्ष्‍मण बहुत दुखी होते हैं और आजीवन विवाह न करने का संकल्प ले लेते है।

 

#४. इरावण का बलिदान

अर्जुन व राजकुमारी उलोपी का पुत्र इरावण, अपने पिता व उनके सहयोगियों की विजय सुनिश्चित करने के लिए अपना शीश माँ काली को अर्पित कर देता है।

परंतु मृत्‍यु पूर्व उसकी एक अंतिम इच्‍छा रहती है, कि वह किसी कन्‍या से विवाह करें। लेकिन उस परिस्थिति में ऐसा संभव नहीं हो सकता था, क्‍योंकि कोई भी स्‍त्री ऐसे व्‍यक्ति से विवाह नहीं करना चाहेगी, जो कुछ ही दिनों में मृत्‍यु को प्राप्‍त होने वाला हो। इरावण की इस इच्‍छापूर्ति हेतु श्रीकृष्‍ण स्‍वयं मोहनी का रूप धारण कर उससे विवाह करते है तथा उसकी मृत्‍यु के उपरांत किसी विधवा के समान विलाप भी करते हैं.

 

 

शिखा जैन

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