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महाभारत में कितने अध्याय हैं और अध्यायों के नाम क्या-क्या हैं?

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महाभारत एक बहुत ही पुरातन ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ को महर्षि वेद व्यास ने लिखा था। महाभारत सबसे लम्बा ग्रन्थ है, जिसे संस्कृत में लिखा गया था। महाभारत में कुल 18 अध्याय होते हैं। अध्यायों को पर्व भी कहा जाता है।

महाभारत की पूरी कथा कौरवों और पांडवों पर आधारित है। कौरवों और पांडवों ने हस्तिनापुर के सिंघासन के लिए कुरुक्षेत्र में लड़ाई लड़ी थी

महाभारत के अध्याय व उनके नाम

1. आदि पर्व :

इस पर्व में 19 उप पर्व हैं जिसमें 7190 श्लोक होते हैं।

2. सभा पर्व :

इस पर्व में कौरवों और पांडवों के बीच जो पासे का खेल हुआ था उसी के बारे में विस्तार से बताया गया है।

दुर्योधन, ध्रितराष्ट्र का जयेष्ठ पुत्र था और उसे अपनी सत्ता छिन जाने का डर था। उसने अपने मामा शकुनी से सलाह ली और पांडवों को पासे के खेल के लिए आमंत्रित किया।

पांडवों की ओर से युधिष्ठिर ने यह खेल खेला औए शकुनी ने धोके से पांडवों को हरा दिया। युधिष्ठिर ने इस खेल में खुद को, अपने भाइयों को और द्रौपदी को भी दाव पर लगा दिया। कौरवों की जीत के बाद द्रौपदी को घसीटकर सभा में बुलवाया और भरी सभा में उनके चीरहरण करने की कोशिस तक की गयी।

यह सब देखकर भीम ने दुशासन की छाती चीरकर उसका रक्तपान करने की प्रतिज्ञा ली। खेल फिर से खेला गया और इस बार भी पांडव हार गए, जिसके बदले उन्हें 12 वर्षों का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास (छिपकर रहना) दिया गया।

3. वन पर्व :

पांचों पांडव और द्रौपदी ने कमाक्या अरण्य की ओर प्रस्थान किया। इस अध्याय में पांडवों ने जो समय अरण्य में बिताया उसके बारे में बताया गया है।

4. वीरता पर्व :

इस अध्याय में पांडवों को 13वें वर्ष अपनी पत्नी द्रौपदी के साथ अपनी पहचान को छिपाकर रहना था।

इस दौरान सभी पांडव और द्रौपदी भेष बदलकर रह रहे थे। दुर्योधन ने पांडवों को ढूँढने का बहुत प्रयास किया लेकिन वह विफल रहा।

5. उद्योग पर्व :

13 वर्षों के बाद पांडव वापस हस्तिनापुर लौटे और उन्होंने अपना अधिकार मांगा तो दुर्योधन ने उन्हें साफ मना कर दिया। इस पर्व में इसी के बारे में बताया गया है।

6.भीष्म पर्व :

कौरवों और पांडवों के बीच में युद्ध छिड़ चूका था और भीष्म ने कौरवों की ओर से कमान संभाली।

युद्धके 10वें दिन भीष्म तीरों की शय्या पर लेटे थे।

7. द्रोण पर्व :

भीष्म के बाद गुरु द्रोण ने युद्ध की कमान संभाली। युद्ध के 13वें दिन उनकी मृत्यु हुई।

8. कर्ण पर्व :

गुरु द्रोण के बाद कर्ण ने युद्ध की कमान संभाली। 17वें दिन कर्ण की मृत्यु हुई। कर्ण कुंती के पहले पुत्र और पांडवों के बड़े भाई थे।

9. शल्य पर्व :

कर्ण के बाद शल्य ने युद्ध की कमान संभाली। १८वें दिन शल्य की मृत्यु हुई। इसके बाद दुर्योधन और भीम की लड़ाई हुई, जिसमें दुर्योधन को मृत्यु प्राप्त हुआ।

10.सौप्तिका पर्व :

कौरवों के युद्ध में हारने के बाद द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ने प्रतिशोध लेना चाहा। वह पांडवों को मरवाना चाहता था, लेकिन उनकी जगह पांडवों के पुत्रों की मृत्यु हो गयी।

11. स्त्री पर्व :

युद्ध में कई औरतों ने अपने पतियों को खोया था। पांडवों ने उन सभी स्त्रियों के पतियों के आत्मा की शांति की कामना की।

12. शांति पर्व :

धर्मराज युधिष्ठिर ने राजा बनने के बाद अपनी मन की शांति खो दी थी। तब भीष्म पितामह ने उनका मार्गदर्शन किया था।

➡ महाभारत के पांच रोचक किरदार 

13.अनुशासन पर्व :

भीष्म पितामह ने और भी उपदेश दिए। यहाँ इसी के बारे में बताया गया है।

14. अश्वमेध पर्व :

युधिष्ठिर ने अश्वमेध यज्ञ किया था। इस पर्व में इसी के संबंध में बताया गया है।

15.आश्रम्वासिका पर्व :

ध्रितराष्ट्र और उनकी पत्नी गांधारी ने कुंती के साथ वन की ओर प्रस्थान किया।

16.मौसला पर्व :

यादवों के वंश का एक श्राप की वजह से नाश हो गया। इस पर्व में इसी का जिक्र है।

17.महाप्रस्तानिका पर्व :

श्रीकृष्ण के मृत्यु के समाचार को सुनकर पांडवों ने द्रौपदी के साथ मेरु पर्वत की ओर प्रस्थानकिया और उनके पीछे एक कुत्ता भी चल रहा था। अंत में केवल युधिष्ठिर और वह कुत्ता ही जीवित बचा।

18.स्वर्ग आरोहन पर्व :

जब युधिष्ठिर की मृत्यु हुई तो उसे नरक के रास्ते पर ले जाया गया लेकिन अंत में वह स्वर्ग पहुँच गए, और वहां उसके सारे रिश्तेदार मौजूद थे। यह देखकर वे बहुत प्रसन्न हुए।

प्रेरणा झा

View Comments

  • 12 . No per appne Likha hai ki jab yudhister Raja bane the to shanti ke liye Bhisham Pitamah ne margdarshan Kiya tha galat hai Bhisham Pitamah yudh ke dauraan maare ja Chuke the.
    .

  • जी नहीं मदन,
    गंगा पुत्र भीष्म ने शुक्ल पक्ष के आरंभ होने के बाद अपने प्राण त्यागे, जो कि युद्ध समाप्ति के बाद हुआ। तब तक गंगा पुत्र भीष्म बाणों की शैय्या पर लेटे थे और युद्ध की समाप्ति तथा शुक्ल पक्ष के अरांभ होने की प्रतीक्षा कर रहे थे ।
    भागवत पुराण तथा महाभारत में यह बताया गया है।

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