लव कुश जयंती श्रावण पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। इस वर्ष, यह 7 अगस्त को मनाई जायेगी। इस पर्व को उत्त र भारत में विशेषतौर पर कुशवाह समाज के द्वारा बड़े हर्षोल्लानस के साथ मनाया जाता है। सभी जानते हैं, कि लव और कुश भगवान राम व माता सीता के जुड़वा पुत्र थे, जिनका उल्लेनख रामायण में मिलता है। ऐसा माना जाता है, कि इस दिन लव और कुश का जन्म ऋषि वाल्मीकि के आश्रम में हुआ था।
राम द्वारा त्यागने के पश्चात् माता सीता ने आश्रम में लव और कुश को जन्म दिया, उन दोनों को हर प्रकार से श्रेष्ठ बनाया, परंतु पिता राम के बारे में नहीं बताया। एक बार प्रभु राम ने अश्वनमेध यज्ञ का आयोजन किया और लव-कुश द्वारा उस अश्व को पकड़ा गया, जिसे यज्ञ के दौरान छोड़ा जाता था।
जब यह बात अयोध्याा नगरी के योद्धाओं तक पहुँची, तो उन्होंने आश्रम जाकर लव-कुश से अश्व लौटाने को कहा। जिसे उन दोनों भाईयों ने नहीं माना और युद्ध प्रारंभ हो गया। इस युद्ध में लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न समेत कई योद्धाओं को हार का सामना करना पड़ा, जिस कारण राम ने स्वयं युद्ध के लिए प्रस्थान किया । युद्ध क्षेत्र में लव-कुश की वीरता से प्रभावित होकर श्री राम ने उन दोनों को अपने महल में आने का निमंत्रण दिया।
वहाँ उन दोनों को अपनी सही पहचान का ज्ञान हुआ और फिर माता सीता को भी बुलाया गया । जहाँ फिर से माता सीता को अपनी पवित्रता सिद्ध करने को कहा गया, जिससे आहत होकर उन्होंने धरती माँ से अपने आपको समाहित करने का आग्रह किया। इससे दुखी होकर प्रभु राम ने राज्यों को पुत्रों को सौंपकर जल-समाधि ग्रहण की।
इस दिन भगवान विष्णुो की विशेष पूजा की जाती है, क्योंकि प्रभु राम को विष्णु का अवतार माना जाता है। इसके साथ रामायण के श्लोकों का उच्चारण, भजन-कीर्तन करके भगवान की भक्ति की जाती है।
बच्चों को लव-कुश की वेश-भूषा में तैयार किया जाता है और रामायण के मुख्य प्रसंगों को जीवंत भी किया जाता है। और भी कई धार्मिक व सांस्कृयतिक आयोजन करके जुलूस आदि निकाले जाते हैं। इस दिन बहुत से लोग अखंड रामायण पाठ का भी आयोजन करते हैं।
इस पर्व को पारिवारिक एकता व परिपूर्णता के दृष्टिकोण से मनाया जाता है, जिसमें राम का अपने परिवार से मिलने को मुख्य रूप से दर्शाया जाता है। इस त्यौाहार के माध्यंम से जीवन में घर-परिवार, माता-पिता, समाज व भाईचारे का महत्व और आवश्यकता पड़ने पर वीरता दिखाने का संदेश दिया जाता है।
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