दिल के हाल को शब्दों में पिरोकर एक कहानी बयां होने जा रही है। अनसुनी तो नही क्योंकि इन जज़्बातों से रूबरू सबको होना ही होता है। वक़्त कब कहाँ और कैसे एक अजनबी को आपकी रूह में समा देता है पता ही नही लगता। उम्र का कोई मतलब नहीं होता इस प्यार की दुनिया में। तभी तो कच्ची उम्र की एक अल्हड़, मस्तमौला लड़की में प्यार की इतनी गहरी समझ मिल पाना लगभग नामुमकिन है।
कहानी अद्भुत इसलिए भी है, क्योंकि शुरू भी यह उस जगह से हुई जहां खुद दो और प्यार करने वाले परिणय बंधन में बांधने जा रहे थे। एक शादी का वह पवित्र रिश्ता शायद जिसकी समझ मुझे न थी, बस उस शादी की चकाचौंध देखने शामिल हुए उन सारी रस्मो में। शुरू हुआ एक ख़ास सा आम दिन। ख़ास उस नवदम्पति के लिए, और आम मेरे लिए। जैसे जैसे रात चढ़ रही थी, विवाह की झिलमिल रोशनियाँ और तेज होने लगी थी। सब अपने अपने मशगूल थे – कोई खाने में व्यस्त, तो कोई गाने बजाने में
तभी मेरी किसी को न ढूंढ़ती हुई नजरें जा कर थम गई एक चेहरे पर। हाँ, “यह वही है जिससे मैं अभी कुछ देर पहले ही तो टकराई थी “, मेरे दिल ने मुझेसे कहा। हाँ तो क्या हुआ, लोग टकराते ही है इतनी बड़ी दुनिया में; टकराना कोई आठवां अजूबा तो नहीं। मैनें मेरे दिल के किसी कोने में कहीं उठती हुई लहरों को जैसे वास्तवकिता के दृश्य से रोकना चाहा। पर क्या सैलाब पर काबू पाना इतना आसान है?
शाम खत्म होने को आयी थी। सब अपने-अपने घर निकलने के लिए व्याकुल थे, लेकिन प्रकृति को यह इत्मीनान भरा समापन शायद पसंद नहीं आया। तभी तो दिसंबर की ठंड में अचानक तेज बारिश होने लगी। न कोई बिजली की कड़क, न चमक – रत्ती भर भी चेतावनी के बगैर आश्मान ने अपना दिल खोल दिया।
सब अपनी महंगी-महंगी ड्रेस को बारिश के इस कहर से बचाने के लिए इधर-उधर छुपने लगे। बड़े शहरों की पार्किंग व्यवस्ता के कारण सबकी गाड़ियां बहुत धीमे आने लगी। जिसे जो साधन मिला उसने उसमे बैठना मुनासिब समझा। मुझे बारिश से ऐसी कोई आपसी दुश्मनी नहीं है, लेकिन बादलों के इस अनायास कहर को देख मैं भी एक जगह छुप गई। मेरी बगल में मेरे भाई के खड़े होने के आभास ने मुझ आश्वस्त किया कि हम जल्दी घर पहुंच जायेंगे। तभी कड़ाके की बिजली की आवाज आई और डर की वजह से मैंने अपने भाई के हाथ को थाम लिया।
कुछ पलों के बाद जब एक बार बिजली फिर चमकी, तो मैं एकदम शर्म से पानी-पानी हो गई। भाई समझ जिसका हाथ मैंने थामा था, वह मेरा भाई नहीं बल्कि वह लड़का था जिससे मैं चंद मिनट पहले टकराई थी। इस असहज लम्हे को दूर किया एक मोटरगाड़ी की आती हुई रोशनी ने।
मैंने चैन की सास ली कि अब मैं यहाँ से आसानी से निकल सकती हूँ। लेकिन हुआ इसके बिलकुल विपरीत। बारिश की वजह से एक दर्जन लोगों को उसी गाडी में ठूसा गया और हम दोनों को एक ही गाडी में सफर करना पड़ा।
अब अपने आप को सहज महसूस करवाने के लिए मैनें अपनी सफाई प्रस्तुत की, और साड़ी बात उसके सामने रख दी। सुन वो मुस्कुरा दिया, मुझे उसकी यह हंसी पसंद नहीं आई। मेरे चेहरे के गुस्से वाले भाव को देखकर उसने कहा कि गलती तुम्हारी नहीं है, शायद हमें मिलाने की साजिश तो विधाता बहुत पहले ही लिख चूका था।
मेरे गुस्से से हुआ लाल चेहरा कब शर्म से लाल हुए चेहरे में परिवर्तित हो गया, मुझे खुद नहीं पता। पहली बार किसी का ऐसा दुस्साहस मुझे पसंद आया। मेरी झुकी नजरों को हाँ समझ उसने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा ” बाहर बारिश कहर ढ़ा रही है और अंदर आप; इस नाचीज को मारने का इरादा तो नहीं”!
प्यार की लौ तो जल ही चुकी थी , शायद उसकी साफगोई ने मेरे दिल को ही नहीं मेरी रुह तक तो अपने कब्जे में कर लिया और मेरे मुख से उस वक़्त बस इतना ही निकला:
” तेरे इश्क़ की इबादत में अब लफ्ज़ भी कम पड़ने लगे , तेरे चेहरे के नूर से ही अब हम सवरने लगे हैं ,
इन गालों के लिए हाय का यह लाल रंग ही काफी है, जबसे मेरे हाथ तेरे हाथो को थामने लगे हैं “
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