कोरोना आइसोलेशन वार्ड  में दूसरे अस्पताल से स्थानांतरित होकर आई डॉक्टर कस्तूरी एक मरीज का चेकअप कर निकली थी कि सामने से एक डॉक्टर को आते देखकर उसने उन्हें विश किया ।

“गुड मॉर्निंग डॉक्टर।”

“वेरी गुड मॉर्निंग । आपने शायद कल ही हमारी टीम को ज्वाइन किया है।  आप डॉक्टर कस्तूरी हैं  ना ?”

“जी, जी मैं ही डॉक्टर कस्तूरी हूं ।”

“कैसे हैं आप के पेशेंट्स?

“जी और सब तो ठीक है, बस बैड नंबर 5 के पेशेंट की ब्रीदिंग प्रॉब्लम बढ़ती ही जा रही है। उन्हें शायद आईसीयू में शिफ्ट करना पड़े ।”

“ओह ओके, वह एजेड लेडी। उन्हें डायबिटीज और ब्लड प्रेशर भी है न? उनका केस  दिन पर दिन कॉम्प्लिकेटेड होता जा रहा है।”

“यस डॉक्टर।”

“चलिए ऑल द बेस्ट। अब तो आपसे मिलना होता ही रहेगा।”

“थेंक्स सो मच डॉक्टर ।”

डॉक्टर कस्तूरी के ताजी हवा के झोंके से खनक भरे स्वर मानो डॉक्टर गौरांग के क्लांत  मन प्राण सहला गए थे। डॉक्टर गौरांग की ड्यूटी खत्म हो गई थी।

अगले दिन जब डॉक्टर गौरांग ने एक बार फिर से डॉक्टर कस्तूरी को अपने सामने देखा, उनकी  आंखें आंसुओं से लबालब थीं । उन्हें  देखकर डॉक्टर गौरांग ने उनसे पूछा, “क्या हुआ डॉक्टर आप बहुत अपसेट दिख रही हैं। क्या मैं आपकी कोई मदद कर सकता हूं?”

नहीं, नहीं, कोई बात नहीं।  मैं एकदम ठीक हूं, थैंक्यू।”

“नहीं, नहीं, कोई तो बात है, प्लीज बताइए ।”

“डॉक्टर, वह बेड नंबर पांच वाली पेशेंट आज गुजर गई।”

“ओह, डॉक्टर दिल पर मत लीजिए। क्रौनिक बीमारियों वाले उम्र दराज लोगों के लिए कई बार यह कोरोना जानलेवा साबित होता है।”

कस्तूरी की आंखें उस पेशेंट को याद कर फिर से भर आई और वह तेज कदमों से डॉक्टर गौरांग  को पीछे छोड़ अस्पताल से निकलकर खिन्न मन अकेली अपने होटल की ओर बढ़ गई।

डॉक्टर गौरांग  भी उसी होटल की ओर बढ़ गए। होटल में अपने कमरे में पहुंच, नहा धोकर, खा पीकर वह अपने पलंग पर लेट गए लेकिन कस्तूरी का आंसुओं से मलिन चेहरा मानो उनके जेहन में फ्रीज़ हो  गया।

डॉ गौरव एक बेहद संवेदनशील और भावुक व्यक्तित्व के इंसान थे। बेहद पढ़ाकू किस्म के थे। किशोरावस्था और जवानी में भी आम लड़कों की तरह लड़कियों के प्रति कभी आकर्षित नहीं हुए।  उनके लिए मानो  लड़कियों का अस्तित्व ही नहीं था, लेकिन डॉक्टर कस्तूरी के आंसुओं ने उनके हृदय में एक अबूझ हलचल मचा दी। डॉक्टर कस्तूरी के बारे में सोचते सोचते वे नींद के आगोश में समा गए।

उस दिन फिर से डॉक्टर कस्तूरी बेहद अपसेट थीं। उनकी ड्यूटी वाले बेड नंबर 7 की कोरोना  के मरीज का मृत शरीर अभी अभी आईसीयू से निकाला गया था। डॉक्टर कस्तूरी ने आईसीयू में जाने से पहले पूरे आठ-दस दिन उनको अटेंड किया था।  डॉक्टर कस्तूरी और गौरांग  की एक पखवाड़े की ड्यूटी के आखिरी दिन आज उनकी मृत्यु हो गई।

उस वृद्ध  मरीज का शव आईसीयू से बाहर निकाला ही जा रहा था कि सभी डॉक्टरों ने देखा, डॉक्टर कस्तूरी फूट-फूट कर रो पड़ी। उनका यूं बिलखना  देखकर वहां मौजूद सभी की आंखें नम हो आईं।

उस दिन के बाद उन्हें  पास के एक  होटल में 14 दिनों के लिए  क्वॉरेंटाइन में रहना था।

अगले दिन डाक्टर कस्तूरी होटल के डाइनिंग हॉल में सुबह ब्रेकफास्ट के समय एक टेबल पर अकेली बैठी ब्रेकफास्ट कर रही थी। तभी डॉक्टर गौरांग ने भी डाइनिंग हाल में प्रवेश किया और वह कस्तूरी की टेबल से सोशल डिस्टेंसिंग के तहत एक मीटर की दूरी पर रखी दूसरी टेबल की ओर बढ़ गए।

“गुड मॉर्निंग डॉक्टर।”

“गुड मॉर्निंग डॉक्टर कस्तूरी।”

डॉक्टर गौरांग ने आज डॉक्टर कस्तूरी को पहली बार बिना गाउन, गॉगल्स, कैप और मास्क के सामान्य कपड़ों में देखा था। लेकिन आज  उसका मासूम चेहरा बेहद थका थका क्लांत दिख रहा था जिसे देख डॉक्टर गौरांग उससे बोले, “और बताइए, रात को नींद तो ठीक-ठाक आई? कल भी आप बेहद अपसेट थीं।”

“कल रात एक  मिनट के लिए भी  नहीं सो  पाई। आंखों के सामने वह सात नंबर वाले पेशेंट का चेहरा घूमता रहा। मैं कुछ ज्यादा ही भावुक हूं, क्या करूं। आई कांट हेल्प इट। पिछले आठ दस दिनों में  उस पेशेंट से कुछ ज्यादा ही अटैच्ड हो गई थी।”

“डॉक्टर, इतनी सेंटीमेंटल होना हम डॉक्टर्स के लिए बिल्कुल ठीक नहीं। जीवन, मौत, यह सब ऊपर वाले के हाथ में है। यह हमारे प्रोफेशन का एक हिस्सा है। हमें किसी भी पेशेंट से इमोशनली अटैच नहीं होना चाहिए। अपना प्रोफेशन सिंसियरली निभाते हुए हर पेशेंट को उसकी आखिरी सांस तक हौसला देना चाहिए। बस, और बाकी सब ऊपर वाले पर छोड़ देना चाहिए।

अभी तो आपका करियर शुरू ही हुआ है।  ऐसे पेशेंट्स की मौत पर परेशान होंगी तो यह आपकी मेंटल हेल्थ के लिए बिल्कुल ठीक नहीं होगा । कोरोना रोग ही ऐसा है, जब तक कि इम्युनिटी बहुत स्ट्रांग ना हो, अधिकतर बड़ी उम्र के पेशेंट नहीं बच रहे।”

“मेरे पापा की मृत्यु अभी डेढ़ माह भर पहले ही हुई है डॉक्टर और मैं अपने पापा की इकलौती बेटी हूं। उस बेड नंबर 7 वाले  पेशेंट का चेहरा मोहरा, कद काठी, बात करने का ढंग मेरे पापा से बहुत मिलता था। बस इसीलिए।” यह कहते हुए डॉक्टर कस्तूरी का गला एक बार फिर भर आया और डॉक्टर गौरांग उसे देखते रह गए।

“आई एम सॉरी डॉक्टर कस्तूरी।  आपके पिता के बारे में सुनकर बहुत दुख हुआ।  और बताइए डॉक्टर कस्तूरी आप कहां की हैं?”

“जी मैं  दिल्ली की ही  हूं।”

आपके घर में कौन-कौन है?

“जी, बस मेरी मां हैं। पिता की मृत्यु के बाद एकदम अकेली हो गई हैं। उनकी भी बहुत चिंता रहती है। इसलिए उनका भी टेंशन रहता है।”

“वह तो खैर स्वाभाविक ही है। अभी फिलहाल इस स्थिति में हम बहुत दिनों तक घर भी नहीं जा सकेंगे। मां से आप वीडियो कॉल पर बात करती रहिए। उससे उनको और आपको बेहद तसल्ली रहेगी।”

“जी एक उसी का तो सहारा है।”

“जी बिल्कुल।” 

“और आप बताइए डॉक्टर गौरांग, आपके घर में कौन-कौन है?”

“जी,मेरी मम्मी और पापा।”

“ओके, ओके, मम्मी वर्किंग हैं? पापा क्या करते हैं?”

“मम्मी हाउसवाइफ हैं । पापा हार्ट सर्जन हैं  दिल्ली के ही एक अस्पताल में।”

इतनी बातचीत में दोनों की प्लेट का नाश्ता खत्म हो गया  और दोनों अपने-अपने कमरों में चले गए।

अगली सुबह डॉक्टर गौरांग  होटल के  बागीचे में वाकिंग कर रहे थे कि उन्होंने देखा था डॉक्टर कस्तूरी एक बेंच पर बैठी आंखें बंद कर प्राणायाम कर रही थीं।  ।

डॉक्टर गौरांग उनसे लगभग एक  मीटर की दूरी पर  बेंच पर बैठकर उनकी प्रतीक्षा करने लगे।

प्राणायाम खत्म होने पर डॉक्टर कस्तूरी ने मुस्कुराते हुए उनसे पूछा, “डॉक्टर सुबह-सुबह क्या कर रहे हैं?  आजकल योग वगैरह नहीं कर रहे?”

“नहीं, नॉर्मली मैं जिम जाता हूं, लेकिन आजकल जिम तो सब जगह बंद पड़े हैं तो क्या करूं?”

“आजकल कोरोना की वजह से हर किसी को इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए यह मेडिटेशन और प्राणायाम जरूर करनी चाहिए।”

“इच्छा तो मेरी भी है। बहुत सुन रहे हैं टीवी पर इसके विषय में, लेकिन मुझे बिल्कुल आईडिया नहीं है, यह किए कैसे जाते हैं।”

“आपको सीखना है, सच में?”

“यदि आप सिखा दें तो बहुत मेहरबानी होगी, मुस्कुराते हुए डॉक्टर गौरांग ने जवाब दिया।”

उस दिन डॉक्टर कस्तूरी ने डॉ गौरांग  को दूर से ही सभी प्राणायाम और मेडिटेशन सिखाएं और उन्हें सीख कर डॉक्टर गौरांग प्रसन्नचित्त  अपने कमरे में लौटे।

अब डॉक्टर गौरांग रोज सुबह सवेरे डॉक्टर कस्तूरी को ढूंढते ढूंढते होटल के बगीचे में आ जाते और इस तरह उनकी दोस्ती रफ्ता-रफ्ता आगे बढ़ चली।

क्वॉरेंटाइन के उन 14 दिनों में दोनों में एक मीठी सी बॉन्डिंग होती जा रही थी।  दोनों को ही एक दूसरे से बातें करना बेहद अच्छा लगता। सुबह सवेरे दोनों दूर-दूर बैठे हुए  एक दूसरे से तसल्ली से बातें करते।

क्वॉरेंटाइन के दो-तीन दिन और बचे थे। उस दिन दोनों अपनी अपनी टेबल पर बैठे बैठे अलग अलग ब्रेकफ़ास्ट  कर रहे थे कि डॉक्टर कस्तूरी को अपनी प्लेट में बहुत थोड़े से फ्रूट्स और  खूब सारा कॉर्नफ्लेक्स लाते देख डॉक्टर गौरांग ने  डॉक्टर कस्तूरी से कहा,” डॉक्टर, यह आप इतने कम फ्रूट्स कैसे लाई हैं?  कॉर्नफ्लेक्स प्रोसेस्ड फ़ूड है। कुछ हेल्दी  खाइए डॉक्टर। बीमारी के  इस माहौल में हमें इम्यूनिटी बढ़ाने वाला खाना खाना  चाहिये।  चलिए, यह कॉर्नफ़्लेक्स  अलग हटाइए।  मैं आपके लिए हेल्दी चीजें लेकर आता हूं।”

और फिर डॉक्टर गौरांग डॉक्टर कस्तूरी के लिए खूब सारे फ्रूट्स, स्प्राउट्स, मूंग की दाल का पनीर स्टफिंग वाला चीला,  विभिन्न नट्स, सीड्स  और फ्लेवर्ड दही लेकर आए और डॉक्टर कस्तूरी की टेबल पर उसे रखते हुए बोले “केवल प्राणायाम से ही इम्यूनिटी नहीं बढ़ेगी डॉक्टर साहिबा, आपकी डाइट भी इम्यूयूनिटी बढ़ाने वाली होनी चाहिए।”

डॉक्टर कस्तूरी कृतज्ञ नजरों से डॉक्टर गौरांग  की ओर देख कर मुस्कुरा दीं और ब्रेकफास्ट करने लगीं।”

क्वॉरेंटाइन का मात्र एक  दिन बाकी बचा था। शाम होने  आई थी। डॉक्टर गौरांग शाम  के झुरमुटे में यूं ही निर्रुद्देश्य होटल के बगीचे में जा पहुंचे थे कि उन्होंने देखा, एक सुर्ख लाल गुलाबों से लदे फ़दे पौधे के बगल में बैठी डाक्टर कस्तूरी सुबक सुबक कर रो रही थी।”

डॉक्टर गौरांग उसे यूं  रोता देख तनिक घबरा गए थे और उन्होंने दूर से ही उससे पूछा,” क्या हुआ डॉक्टर कस्तूरी आप रो क्यों रही हैं? आप को रोता हुआ देखना बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा।  प्लीज डॉक्टर, चुप हो जाइए।”

डॉक्टर कस्तूरी ने सायास  अपना रोना बंद किया।

“डॉक्टर कस्तूरी, प्लीज अब तो मैं आपका बहुत अच्छा फ्रेंड बन गया हूं। आप मुझसे अपनी परेशानी बेहिचक शेयर कर सकती हैं। प्लीज मुझे बताइए आप क्यों रो रही है?”

“कुछ नहीं डॉक्टर,  बस मां से बातें करते करते पापा का ज़िक्र आ गया। मां पापा को याद करके रोने लगीं,  और बस मुझे भी रोना आ गया।  आज पापा की बहुत याद आ रही है।  मन बहुत अशांत हो रहा है। एक महीना होने आया मां से दूर हुए। डॉक्टर गौरांग मां को देखने की बहुत इच्छा हो रही है। मेरे बिना अकेली बहुत परेशान हो रही हैं।”

“यह तो है डॉक्टर, लेकिन जरा सोचिए, देश को इस नाजुक समय में हमारी कितनी जरूरत है? क्या आपको अपना काम पसंद नहीं? देश के इतने क्रिटिकल समय में ड्यूटी देकर हम देश के इतिहास में अपना नाम दर्ज करवा रहे हैं।  कल को हम अपने बच्चों को फ़ख्र से बता सकते हैं इस महामारी और इसका मुकाबला करने में अपने  योगदान के  विषय में।”

“नहीं-नहीं डॉक्टर, आप मुझे गलत समझ रहे हैं। मुझे अपनी ड्यूटी को लेकर रत्ती भर भी शिकायत नहीं। बस पापा की डेथ को अभी डेढ़ महीना ही  हुआ है ना, कच्चा घाव है तो मां की बेहद चिंता है। यकीन करिए बस और कोई बात नहीं। यहां आने से पहले कितने ही रिश्तेदारों ने मुझसे कहा था, इस जानलेवा बीमारी के मरीजों के बीच जाकर तुम्हें भी इस बीमारी के होने का डर रहेगा, लेकिन मैंने उनकी एक न सुनी और यहां चली आई। इतनी मुश्किल से तो देश के काम आने का मौका मिला है।”

“जी बिल्कुल ठीक कह रही हैं। यही मौका है देश के प्रति अपनी ड्यूटी निभाने का।”

14 दिनों का क्वॉरेंटाइन  खत्म होने का  वह आखिरी दिन था।  इस मियाद में सभी डॉक्टर्स का नियमित रूप से कोरोना वायरस के संक्रमण का टेस्ट किया जाता था कि उसमें आज के आखिरी दिन डॉक्टर गौरांग  कोरोनावायरस पौज़ीटिव निकल गए।”

यह खबर सुनकर डाक्टर  कस्तूरी  हिल गई थी। पिछले एक माह में वह डॉक्टर गौरांग से मानसिक रूप से बेहद जुड़ गई थीं। दोनों ही दोस्ती के एक मधुर बंधन में बंध गए थे। उन्होंने पिछले एक  माह तक कदम कदम पर डॉक्टर कस्तूरी का साथ दिया था। मायूसी के उस दौर में उन्हें बेशर्त हौसला दिया था। अब समय आ गया था डॉक्टर गौरांग जैसे प्यारे दोस्त को अपनी दोस्ती का प्रतिदान देने का। सो  डॉक्टर कस्तूरी ने अपने सीनियर से अनुरोध कर डॉक्टर गौरांग  के बेड की ड्यूटी अपने लिए आवंटित करवाली ।

सुबह सवेरे डॉक्टर कस्तूरी डॉक्टर गौरांग के बेड के पास आई।

“गुड मॉर्निंग डॉक्टर गौरांग ।”

“गुड मॉर्निंग डॉक्टर कस्तूरी।”

वाह, वाह डॉक्टर, हमें ड्यूटी पर लगा कर खुद आराम फरमा रहे हैं। वेरी अनफ़ेयर डाक्टर, वेरी अनफ़ेयर,  हंसते हुए डॉक्टर कस्तूरी ने डॉक्टर गौरांग  से कहा।

“अरे डॉक्टर, हमारी लाचारी का मज़ाक मत उड़ाइए।  कोरोनावायरस ने पछाड़ दिया, नहीं तो हम भी आज लड़ाई के मैदान में जोर-शोर से डटे रहते।”

“कोई बात नहीं डॉक्टर  गौरांग, काम के साथ-साथ थोड़ा आराम तो बनता है। आप तो हमारे अस्पताल के हीरो हैं।  थोड़े दिन आराम कर लें,  फिर फ्रंटलाइन पर अपना जौहर दिखाना ही है।”

इस पर डॉ गौरांग ने बेहद मायूसी से उनसे कहा, “यह बीमारी मुझे ही क्यों हुई?  सोचा था देश ने इतना कुछ दिया है, अब देश को हमारी देने की बारी आई है, लेकिन सब गुड गोबर हो गया।  पता नहीं कितने दिन लगेंगे ठीक होने में?”

“आपको इतनी हताशा भरी बातें करना शोभा नहीं देता डॉक्टर। हिम्मत से मुकाबला करें डॉक्टर इस कोरोनावायरस का।  मैं आपके साथ हूं। अभी तो बहुत लंबी लड़ाई लड़नी है आपको। चलें उठें, और मेडिटेशंस और सारे प्राणायाम करलें। इससे ठीक होने में बहुत मदद मिलेगी।”

“जैसा आप कहें डॉक्टर, अब तो हम पूरी तरह से आपकी शरण में हैं”, तनिक  हंसते हुए डॉक्टर गौरांग ने कहा।

“तथास्तु वत्स, शरण में ही बने रहिए। देखिएगा हम बहुत जल्दी आपको अपने पैरों पर खड़ा कर देंगे।”

कि तभी डॉक्टर गौरांग  ने  डॉक्टर कस्तूरी से पूछा, ” मैं ठीक तो हो जाऊंगा ना कस्तूरी। बहुत घबराहट और बेचैनी हो रही है मुझे।”

“अरे इतनी निराशा भरी बातें क्यों डॉक्टर गौरांग?  देखिएगा, आप बहुत जल्दी चंगे हो जाएंगे।  बस आप पॉजिटिव बने रहिए और रोज प्राणायाम और मेडिटेशन कीजिए। अब आप आप मेडिटेशन और प्राणायाम करिए, मैं और पेशेंट्स को भी देख कर आती हूं।”

पिछले एक माह में कस्तूरी अपने इस स्वीट से फ्रेंड  से मानसिक रूप से बहुत गहराई से जुड़ चुकी थी।  वह रोजाना ही अपने दोस्त को अपनी  हौसले भरी बातों से बीमारी का बहादुरी से मुकाबला करने का हौसला देती। अपनी पॉजिटिव बातों से उसका मनोबल बढ़ाती।  उसके लिए चुन चुन कर प्रेरक किताबें और फिल्म्स  उसे ऑनलाइन भेजती।”

करीब 12 दिनों के बाद डॉक्टर गौरांग कोरोना नेगेटिव  आए। उस दिन बेपनाह खुशी से डॉक्टर कस्तूरी के पांव  जमीन पर नहीं पढ़ रहे थे। तो आखिरकार जंग जीत ही  ली  आपने। मैं ना कहती थी आप बहुत जल्दी ठीक हो जाएंगे।”

“डॉक्टर कस्तूरी, मेरे ठीक होने में आपका भी बहुत अहम हाथ है। आपने इस पूरे समय में मुझे इस कोरोना  से लड़ने का बेपनाह हौसला दिया। पूरे वक्त मुझे पॉजिटिव बनाए रखा। थैंक्स डॉक्टर कस्तूरी थैंक यू सो वेरी मच।”

“अरे, अरे अब आप हमारी दोस्ती की तोहीन कर रहे हैं डॉक्टर।  क्या आपको फ्रेंडशिप का ये गोल्डन रूल नहीं मालूम?  फ्रेंडशिप में नो थैंक्यू नो सॉरी।” 

“ओके, ओके, मैं अपनी थैंक्यू वापस लेता हूं,” कहते हुए वह खिल खिलाकर हंस दिए थे।  उनके साथ साथ डॉक्टर कस्तूरी की मुक्त हंसी भी गूंज उठी।”

 अंधेरा छंट  चुका था। नई उम्मीदों भरा नवजीवन बाहें फैलाए उनकी प्रतीक्षा कर रहा था।

Renu Gupta

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