हिन्दू धर्म में प्राचीन समय से त्रिवेणी संगम के दर्शन की मान्यता रही है। त्रिवेणी अर्थात् भारत की तीन प्रमुख नदियों गंगा, यमुना एवं सरस्वती का संगम स्थान। प्राचीन काल से ही यह तीनों पवित्र नदियाँ इलाहबाद के तट पर मिलती रही है। परन्तु कुछ समय से सरस्वती नदी का वहाँ संगम होता प्रतीत नहीं दिखता है। ऐसा माना जाता है, की सरस्वती नदी वहाँ से बहती तो है परन्तु वह दिखाई नहीं देती अर्थात् लुप्त हो गई है।
ऐसा कहा जाता है कि लगभग ४००० वर्ष पूर्व धरती में हुए उच्चावचनों के कारण सरस्वती नदी लुप्त हो गई। महाभारत काल में इसका उल्लेख मिलता है और कहा जाता है कि उस समय इस नदी का बहाव अत्यंत तेज़ होने से समस्त यात्राएँ इसी से संपन्न हुआ करती थी। ऋग्वेद में इस नदी का विस्तृत वर्णन मिलता है और इसे यमुना नदी के पूर्व व सतलज नदी के पश्चिम में बताया गया है, इसलिए इसे अन्नवती व उदकवती आदि नामों से भी जाना गया है। पौराणिक मान्यतानुसार यह नदी पंजाब के सिरमुर राज्य से होती हुई विभिन्न प्रदेशों को पार करके प्रयाग के समीप गंगा और यमुना से मिलकर त्रिवेणी संगम का निर्माण करती थी। यह नदी पुष्कर के ब्रह्म सरोवर से प्रकट हुई है एवं इसे भारतवर्ष की सबसे प्राचीन नदी माना जाता है। इसे मोहनजोधड़ो एवं हड़प्पा संस्कृति से भी प्राचीन माना गया है।
ऐसा कहा जाता है कि यह नदी आज भी बहती है परन्तु यह अब दिखाई नहीं देती। परन्तु हाल ही में सरस्वती नदी की लुप्त जलधाराओं के कुछ सुराग पाए गए है। सरकार एवं केंद्रीय भूजल विभाग द्वारा इन जलधाराओं पर गहन विचार किया गया । इनके मुताबिक राजस्थान राज्य के जैसलमेर जिले सहित अन्य स्थानों पर इसको खोजने का कार्य शुरू किया गया। यह कार्य वर्ष २०१५ से शुरू हुआ था एवं इसके वर्ष २०१९ तक समाप्ति की सम्भावना व्यक्त की गई है। सरकार द्वारा एक विशेष योजना के तहत लगभग ६९ करोड़ रूपए लगाकर 5 जिलों (जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर, गंगानगर एवं हनुमानगढ़) में सरस्वती नदी को ढूंढ़ने का कार्य प्रारम्भ किया गया है। इस परियोजना में गंगानगर जिले में लगभग २० कुए खोदे गए ताकि यह पता लग सके की सरस्वती नदी का प्राचीन प्रवाह आज भी वही जैसलमेर-बाड़मेर मार्ग पर बना हुआ है, जो गंगानगर से होकर गुजरता था। जल संसाधन एवं विकास मंत्रालय द्वारा भी इस नदी की उपलब्धता बताई गई है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए हरयाणा में “सरस्वती नदी पूर्ण उत्थान योजना” प्रारम्भ की गई है। इसके लिए लगभग ५० करोड़ रुपए तक का निवेश सरकार द्वारा किया जायेगा।
अतः सरकार द्वारा विभिन्न योजनाएँ बनाकर एवं विनियोग कर सरस्वती नदी की पुनः खोज की जा रही है। जिससे कि यह प्राचीन नदी फिर से दिखाई दे सके। उसके जल का उपयोग बाँध बनाकर पानी की मात्रा की पूर्ति करने में किया जायेगा ताकि आमजन को शुद्ध पानी उपलब्ध हो सके। इतना ही नहीं इससे देशभर में कई ग्रामीण एवं पिछड़े क्षेत्रों में पानी की उपलब्धता करवाकर सूखे की समस्या को भी हल किया जाएगा। सरकार द्वारा किए गए प्रयत्नों से अनुमानित है कि सरस्वती नदी निश्चित ही मिल जाएगी एवं आधुनिक तकनीकों द्वारा उसके जल का सही उपयोग कर देश का विकास किया जा सकेगा।
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